सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविताएं: आज हम आपके लिए इस आर्टिकल में प्रसिद्ध लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की कविताएं लेकर आए इन प्रसिद्ध लेखक का जन्म 21 फरवरी 1896 को मोदीनीपुर में हुआ था। सूर्यकांत जी एक छायावादी युग के कवि थे और इसके अलावा वो उपन्यास, निबंध और रचनाएं के लिए भी प्रसिद्ध थे। लेकिन ज्यादातर यह अपनी कविताओं के कारण चर्चाओं में रहते थे। इनकी प्रसिद्ध कविताएं अणिमा, अनामिका, अपरा, अर्चना, आराधना, कुकुरमुत्ता, गीतगुंज आदि है। इस महान लेखक ने 15 अक्टूबर 1961 को अलविदा कहा। आगे भी हम आपके लिए इसी तरह आपकी मनपसंद कविताएं लिखते रहेंगे। आपको भी कविताएं लिखना और पढ़ना पसंद है तो हमारे इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पढ़ें।
1- अभी न होगा मेरा अन्त
अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त
अभी न होगा मेरा अन्त
हरे-हरे ये पात
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर
पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
है मेरे वे जहाँ अनन्त
अभी न होगा मेरा अन्त
मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण
इसमें कहाँ मृत्यु
है जीवन ही जीवन
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे
बालक-मन
मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बन्धु, दिगन्त
अभी न होगा मेरा अन्त
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी द्वारा कहा जा रहा है कि अगर आपके मन में वन के मृदुल बसंत की तरह चमक है तो आप का कभी अंत नहीं हो सकता। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि अपने आप हृदय को कलियों की तरह कोमल और फूलों की तरह इतना महकालो की आपके सपने पूरे होने में ज्यादा समय ना लगे। जीवन की शुरुआत का पहला पड़ाव आपको बहुत ही समझदारी और सूझबूझ के साथ पार करना है क्योंकि आपको अपना भविष्य उज्जवल और तारों की तरह चमकाना है।
2- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविताएं: मातृ वंदना
नर जीवन के स्वार्थ सकल
बलि हों तेरे चरणों पर, माँ
मेरे श्रम सिंचित सब फल
जीवन के रथ पर चढ़कर
सदा मृत्यु पथ पर बढ़ कर
महाकाल के खरतर शर सह
सकूँ, मुझे तू कर दृढ़तर
जागे मेरे उर में तेरी
मूर्ति अश्रु जल धौत विमल
दृग जल से पा बल बलि कर दूँ
जननि, जन्म श्रम संचित पल
बाधाएँ आएँ तन पर
देखूँ तुझे नयन मन भर
मुझे देख तू सजल दृगों से
अपलक, उर के शतदल पर
क्लेद युक्त, अपना तन दूंगा
मुक्त करूंगा तुझे अटल
तेरे चरणों पर दे कर बलि
सकल श्रेय श्रम संचित फल
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी जी द्वारा कहा जा रहा है कि मातृभूमि के लिए अगर हमें अपनी बलि देने की भी आवश्यकता पड़ जाए तो हम हस्ते हस्ते दे जाएंगे। इस मातृभूमि की रक्षा के लिए कई वर्षों से लाखों शूरवीरों ने अपना बलिदान दिया है। और आज भी कई नौजवान सैनिक हंसते-हंसते देश की रक्षा के लिए अपनी जान देश को अर्पण की है। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि हमें गर्व होना चाहिए कि हम भारत देश के निवासी हैं जहां पर मातृभूमि की रक्षा के लिए हजारों सर कटाने को तैयार हो जाते हैं। हमे गर्व है कि हमारे देश में इतने महान और इतने निडर शूरवीर माओ ने इस मातृभूमि को दिए।
3- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविताएं: गीत गाने दो मुझे
गीत गाने दो मुझे तो
वेदना को रोकने को
चोट खाकर राह चलते
होश के भी होश छूटे
हाथ जो पाथेय थे, ठग
ठाकुरों ने रात लूटे
कंठ रूकता जा रहा है
आ रहा है काल देखो
भर गया है ज़हर से
संसार जैसे हार खाकर
देखते हैं लोग लोगों को
सही परिचय न पाकर
बुझ गई है लौ पृथा की
जल उठो फिर सींचने को
व्याख्या
कविता के माध्यम से लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी जी द्वारा कहा जा रहा है कि जिंदगी के कठिन से कठिन पड़ाव को चोट खाकर भी बिना रुके उनके आगे बढ़ना चाहिए। मंजिल का रास्ता पार करने में चाहे कितनी भी विपत्ति क्यों ना आ जाए लेकिन कभी भी हार कर नहीं बैठना चाहिए बल्किगिर कर फिर से उठना चाहिए और आगे का सफर तय करना चाहिए। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि आज के समय में लोग हार खाकर इस तरह बैठ जाते हैं जैसे पूरा संसार जहर से भर गया। लेकिन हमें संसार के लिए जहर नहीं बल्कि अमृत बनना है और सफलता प्राप्त करनी है।
4- सच है
यह सच है
तुमने जो दिया दान दान वह
हिन्दी के हित का अभिमान वह
जनता का जन-ताका ज्ञान वह
सच्चा कल्याण वह अथच है।
यह सच है
बार बार हार हार मैं गया
खोजा जो हार क्षार में नया
उड़ी धूल, तन सारा भर गया
नहीं फूल, जीवन अविकच है
यह सच है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी द्वारा बताया जा रहा है कि जीवन के कुछ सत्य ऐसे हैं जिन्हें कभी झूठलाया नहीं जा सकता। आपका बोला गया सत्य एक दान और अभिमान की तरह है। कभी भी झूठ का सहारा लेकर आगे नहीं बढ़ना चाहिए बल्कि सत्य बोलकर अगर आप दो कदम पीछे भी जा रहे हो तो निश्चित ही अपने भविष्य में चार कदम आगे भी बड़ोगे।
5- भेद कुल खुल जाए
भेद कुल खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है
देश को मिल जाए जो पूँजी तुम्हारी मिल में है।
हार होंगे हृदय के खुलकर तभी गाने नये
हाथ में आ जायेगा, वह राज जो महफिल में है।
तरस है ये देर से आँखे गड़ी श्रृंगार में
और दिखलाई पड़ेगी जो गुराई तिल में है।
पेड़ टूटेंगे, हिलेंगे, जोर से आँधी चली
हाथ मत डालो, हटाओ पैर, बिच्छू बिल में है।
ताक पर है नमक मिर्च लोग बिगड़े या बनें
सीख क्या होगी पराई जब पसाई सिल में है।
व्याख्या
कविता के माध्यम से लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी जी द्वारा कहा जा रहा है कि आपने किसी की भलाई के लिए यह कोई भेद छुपाया है तो उसे छुपा ही रहने दे क्योंकि किसी का राज छुपाने से उसका भला हो रहा है तो उसे छुपाना ही बेहतर है। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि जिस तरह किसी मनुष्य के हृदय में उसके साथी की तस्वीर एक भेद के रूप में छुपी हुई है और देश की पूंजी भी हमारे दिल में छुपी हुई है। दुनिया में बहुत से लोग जहरीले सांप की तरह होते हैं जो किसी का भेद महफिलों में भी खोल देते हैं ऐसे लोगों से सदैव बचकर रहना चाहिए।
6- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविताएं: भर देते हो
भर देते हो
बार-बार, प्रिय, करुणा की किरणों से
क्षुब्ध हृदय को पुलकित कर देते हो
मेरे अन्तर में आते हो, देव, निरन्तर
कर जाते हो व्यथा-भार लघु
बार-बार कर-कंज बढ़ाकर
अंधकार में मेरा रोदन
सिक्त धरा के अंचल को
करता है क्षण-क्षण
कुसुम-कपोलों पर वे लोल शिशिर-कण
तुम किरणों से अश्रु पोंछ लेते हो
नव प्रभात जीवन में भर देते हो
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी जी द्वारा कहा जा रहा है कि अपने हृदय को दया की किरणों से इतना भर लेना चाहिए कि आप किसी की मुस्कान और खुशी की वजह बने ना कि दुख और तकलीफ की। जिस तरह सुबह सवेरे सूरज की किरने पूरे संसार में रोशनी कर देती हैं,उसी तरह आप भी अपने दया और नरम स्वभाव के कारण दूसरों की जिंदगी में प्रकाश भर सको।
7- प्राप्ति
तुम्हें खोजता था मैं
पा नहीं सका
हवा बन बहीं तुम, जब
मैं थका, रुका
मुझे भर लिया तुमने गोद में
कितने चुम्बन दिये
मेरे मानव-मनोविनोद में
नैसर्गिकता लिये
सूखे श्रम-सीकर वे
छबि के निर्झर झरे नयनों से
शक्त शिराएँ हुईं रक्त-वाह ले
मिलीं – तुम मिलीं, अन्तर कह उठा
जब थका, रुका
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी द्वारा बताया जा रहा है कि यदि अगर आपको कोई वस्तु खोजने पर नहीं मिलती है तो उसे अपने अंदर हवा की तरह बसा लेना चाहिए। यदि रास्ते में कभी थक जाओ या रुक जाओ तो उस वस्तु या मनुष्य के बारे में सोच कर उसकी यादों के सहारे आगे बढ़ने की कोशिश किया करो। जीवन में कुछ मिलना या ना मिलना वह तो आपकी किस्मत पर निर्भर करता है लेकिन उस चीज को पाने के लिए निरंतर प्रयास करना भी आवश्यक है।
8- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविताएं: भिक्षुक
वह आता
दो टूक कलेजे को करता, पछताता
पथ पर आता
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक
चल रहा लकुटिया टेक
मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए
बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते
और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाए
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए
ठहरो अहो मेरे हृदय में है अमृत, मैं सींच दूँगा
अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम
तुम्हारे दुख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी जी द्वारा एक भिक्षुक की मजबूरी का वर्णन किया जा रहा है। जब कोई भिक्षुक आपके दरवाजे पर भिक्षा मांगने पछताते हुए आता है तो उसे देख कर बड़ा ही दुख होता है। एक भिकारी खाली पेट मुट्ठी भर दाने मांगते हुए फटी झोली आपके सामने फैला कर भिक्षा घर घर जाकर भिक्षा मांगता है। भिक्षा मांगते हुए भिकारी के साथ में दो बच्चे साथ होते हैं बेचारे भूख से पेट सहलाते और आस भरी नजरों से लोगों को देखते हुए आगे बढ़ते हैं और आंसुओं के घूंट पीकर खामोश रह जाते हैं। बिचारे अभागे बच्चों की यह दुर्दशा देखकर हृदय में एक अजीब सा दुख का आभास होता है।
9- तुम हमारे हो
नहीं मालूम क्यों यहाँ आया
ठोकरें खाते हुए दिन बीते
उठा तो पर न सँभलने पाया
गिरा व रह गया आँसू पीते
ताब बेताब हुई हठ भी हटी
नाम अभिमान का भी छोड़ दिया
देखा तो थी माया की डोर कटी
सुना वह कहते हैं, हाँ खूब किया
पर अहो पास छोड़ आते ही
वह सब भूत फिर सवार हुए
मुझे गफलत में ज़रा पाते ही
फिर वही पहले के से वार हुए
एक भी हाथ सँभाला न गया
और कमज़ोरों का बस क्या है
कहा – निर्दय, कहाँ है तेरी दया
मुझे दुख देने में जस क्या है
रात को सोते यह सपना देखा
कि वह कहते हैं तुम हमारे हो
भला अब तो मुझे अपना देखा
कौन कहता है कि तुम हारे हो।
अब अगर कोई भी सताये तुम्हें
तो मेरी याद वहीं कर लेना
नज़र क्यों काल ही न आये तुम्हें
प्रेम के भाव तुरंत भर लेना
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेकर सूर्यकांत त्रिपाठी जी द्वारा बताया जा रहा है कि मनुष्य की जिंदगी कितनी कठिन होती है। ठोकर खाते हुए दिन बीत रहे हैं और संभलने का मौका भी नहीं मिल रहा है। गिरता हूं और आसू पीकर संभालता हूं लेकिन आगे बढ़ने का निरंतर प्रयास नहीं छोड़ता। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि यदि एक मनुष्य में अभिमान और घमंड की भावना है तो उसे त्याग कर नरम हृदय और सरल स्वभाव के साथ कठिनाइयों को पार करना चाहिए। कवि द्वारा कहा रहा है कि आप को कमजोर देखकर आपके दुश्मनों को मौका मिल जाता है आप पर वार करने का, लेकिन आपको गफलत में नहीं बल्कि नींद से जागकर उनके वार का जवाब प्रेम के भाग से देना चाहिए।
10- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविताएं: बैठ ले कुछ देर
बैठ लें कुछ देर
आओ,एक पथ के पथिक-से
प्रिय, अंत और अनन्त के
तम-गहन-जीवन घेर
मौन मधु हो जाए
भाषा मूकता की आड़ में
मन सरलता की बाढ़ में
जल-बिन्दु सा बह जाए
सरल अति स्वच्छ्न्द
जीवन, प्रात के लघुपात से
उत्थान-पतनाघात से
रह जाए चुप,निर्द्वन्द
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेकर सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी द्वारा कहा जा रहा है कि यदि आप मंजिल के पड़ाव में चलते चलते थक जाते हैं तो थोड़ी देर बैठ कर आराम कर लेना चाहिए। कुछ देर रुक कर आगे बढ़ने पर दिमाग संतुष्ट हो जाता है और मंजिल के रास्ते में आने वाली विपत्तियों का सामना करने के लिए तैयार हो जाता है।
हम उम्मीद करते हैं कि आपको लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी द्वारा लिखी गई कुछ बेहतरीन कविताएं अवश्य ही पसंद आई होंगी। आगे भी हम आपके लिए इसी तरह कुछ प्रसिद्ध लेखकों की कविताएं लेकर आते रहेंगे। और आप इसी तरह हमारे आर्टिकल को पढ़ते रहें और अपना प्यार देते रहें।