मोटिवेशनल कविताएं: आरती तरक्की और कामयाबी के इस दौर में हर किसी को मोटिवेशन की आवश्यकता पड़ती हैं क्योंकि कामयाबी का रास्ता कभी आसान नहीं होता। अपनी मंजिल को पाने के लिए हमें जिस कांटों भरे रास्ते पर चलना पड़ता है उसके लिए मोटिवेशन कि जरूरत पड़ती हैं। खुद में आत्मविश्वास और उत्साह बढ़ाने के लिए सबसे अच्छा तरीका है मोटिवेशनल कविताएं पढ़ना। कभी भी आपको लगे कि मंजिल के पड़ाव में कोई आपको पीछे खींच रहा है तो मोटिवेशनल कविताएं अवश्य पढ़ें। आज हम आपके लिए बहुत सारी प्रसिद्ध Hindi कविताएं लेकर आए हैं जिसे पढ़कर अवश्य ही आपका दिन बन जाएगा तो हमारे इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पढ़ें।
1- दिन जल्दी जल्दी ढलता है (लेखक – हरिवंश राय बच्चन)
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।
हो जाय न पथ में रात कहीं,
मंज़िल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थका दिन का पंछी भी जल्दी-जल्दी चलता है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगॆ
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक हरिवंश राय बच्चन द्वारा बताया जा रहा है कि दिनभर की भागदौड़ और थकने के बाद भी पथ पर चलने वाला व्यक्ति में उत्साह और उल्लास की भावना कम नहीं होती। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि दिन बहुत जल्दी जल्दी ढलता है।उस व्यक्ति मे थकावट का एहसास इसलिए नहीं होता क्योंकि उसे घर जाकर अपनों से मिलने की खुशी होती हैं। यही खुशी उसे काम खत्म करके जल्दी जल्दी घर पहुंचने की हिम्मत देती हैं।
2- इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के (लेखक- प्रदीप)
तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के,
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के।
देखो कहीं बरबाद न होवे ये बगीचा ,
इसको हृदय के खून से बापू ने है सींचा,
रक्खा है ये चिराग़ शहीदों ने बाल के,
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के।
दुनियाँ के दांव पेंच से रखना न वास्ता,
मंजिल तुम्हारी दूर है लंबा है रास्ता ,
भटका न दे कोई तुम्हें धोखे में डाल के,
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के।
एटम बमों के जोर पे ऐंठी है ये दुनियाँ ,
बारूद के इक ढेर पे बैठी है ये दुनियाँ,
तुम हर कदम उठाना जरा देखभाल के,
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के।
आराम की तुम भूल-भुलैया में न भूलो ,
सपनों के हिंडोलों में मगन हो के न झूलो ,
अब वक़्त आ गया मेरे हंसते हुए फूलों ,
उठो छलांग मार के आकाश को छू लो,
तुम गाड़ दो गगन में तिरंगा उछाल के ,
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के।
व्याख्या
इस Hindi कविता के माध्यम से कवि प्रदीप जी द्वारा देश प्रेम और भक्ति को बयान किया जा रहा है। इस कविता के माध्यम से कवि द्वारा कहा जा रहा है कि दुनिया के दावपेच से दूर रहकर बिना अपनी मंजिल से भटके युवाओं को देश की लाज रखनी है और जो हमारा महत्वपूर्ण कर्तव्य है उसे हर हाल में निभाना है। इस कविता आने के बाद युवाओं के मन में देश के प्रति देश भक्ति, सम्मान और मर मिटने वाली भावना पैदा होती है। जिस तरह से के हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं उस स्थिति में युवाओं को आगे आकर देश की रक्षा करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। देश को आजाद कराने में गांधीजी से लेकर कहीं महान हस्तियों ने अपना रक्त बहाकर समर्पण किया है उसी तरह युवाओं को इसकी रक्षा और सम्मान के नहीं अपना योगदान देने के लिए आगे आना होगा। देश के सममान और रक्षा के लिए कई शूरवीर बॉर्डर पर हर रोज अपना बलिदान देते आ रहे हैं उसी तरह युवाओं को आगे बढ़कर देश के प्रति अपना कर्तव्य निभाना है।
3- तुम मन की आवाज सुनो ( लेखक- नरेंद्र वर्मा )
तुम मन की आवाज सुनो
तुम मन की आवाज सुनो,
जिंदा हो, ना शमशान बनो,
पीछे नहीं आगे देखो,
नई शुरुआत करो।
मंजिल नहीं, कर्म बदलो,
कुछ समझ ना आए,
तो गुरु का ध्यान करो,
तुम मन की आवाज सुनो।
लहरों की तरह किनारों से टकराकर,
मत लौट जाना फिर से सागर,
साहस में दम भरो फिर से,
तुम मन की आवाज सुनो।
सपनों को देखकर आंखें बंद मत करो,
कुछ काम करो,
सपनों को साकार करो,
तुम मन की आवाज सुनो।
इम्तिहान होगा हर मोड़ पर,
हार कर मत बैठ जाना किसी मोड़ पर,
तकदीर बदल जाएगी अगले मोड़ पर,
तुम अपने मन की आवाज सुनो।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक नरेंद्र वर्मा द्वारा कहा जा रहा है कि कभी भी अपने मन की बात को अनसुना नहीं करना चाहिए। हमेशा सबसे पहले अपने मन की सुननी चाहिए। जिंदगी के रास्ते में हर मोड़ पर आने वाली परीक्षा से गुजर कर बढ़ते रहना चाहिए अधूरा रास्ता नहीं छोड़ना चाहिए। जिस प्रकार सागर की लहरें से किनारों से टकराकर वापस लौट कर फिर से आती है उसी तरह अपनी मंजिल को पाने के लिए कठिनाइयों से डरकर मंजिल ना छोड़े बल्कि अपना रास्ता बदले लेकिन निडर डटे रहें। किसी भी परिस्थिति में हार कर बैठना जिंदगी का नाम नहीं बल्कि तूफानों से लड़ कर नौका को पार करना ही असल जिंदगी है।
4- घुटघुट कर जीना छोड़ दे
घुट-घुट कर जीना छोड़ दे।
तू रुख हवाओं का मोड़ दे,
हिम्मत की अपनी कलम उठा,
लोगों के भरम को तोड़ दे,
तू छोड़ ये आंसू उठ हो खड़ा,
मंजिल की ओर अब कदम बढ़ा,
हासिल कर इक मुकाम नया,
पन्ना इतिहास में जोड़ दे,
घुट-घुट कर जीना छोड़ दे।
तू रुख हवाओं का मोड़ दे,
हिम्मत की अपनी कलम उठा,
लोगों के भरम को तोड़ दे।
उठना है तुझे नहीं गिरना है,
जो गिरा तो फिर से उठना है,
अब रुकना नहीं इक पल तुझको,
बस हर पल आगे बढ़ना है,
राहों में मिलेंगे तूफ़ान कई,
मुश्किलों के होंगे वार कई,
इन सबसे तुझे न डरना है,
तू लक्ष्य पे अपने जोर दे,
घुट-घुट कर जीना छोड़ दे।
तू रुख हवाओं का मोड़ दे,
हिम्मत की अपनी कलम उठा,
लोगों के भरम को तोड़ दे।
चल रास्ते तू अपने बना,
छू लेना अब तू आसमान,
धरती पर तू रखना कदम,
बनाना है अपना ये जहाँ,
किसी के रोके न रुक जाना तू,
लकीरें किस्मत की खुद बनाना तू,
कर मंजिल अपनी तू फतह,
कामयाबी के निशान छोड़ दे,
घुट-घुट कर जीना छोड़ दे।
तू रुख हवाओं का मोड़ दे,
हिम्मत की अपनी कलम उठा,
लोगों के भरम को तोड़ दे।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है घुट घुट कर जीने से बेहतर है जिंदगी की चुनौतियों का सामना करना और अपनी मंजिल को पाकर कामयाबी हासिल करना। एक मनुष्य चाहे तो अपनी मंजिल खुद बना सकता है और उस मंजिल को पाने के लिए रास्ता भी ढूंढ सकता है। अगर आपने हौसला और आत्मविश्वास की कमी नहीं है तो आप कुछ भी कर सकते हैं। लोगों का क्या है दुनिया तो आगे बढ़ते कदम हमेशा रोकती हैं लेकिन मायने यह रखता है कि आप अपने कदम पीछे रखकर घुट-घुट कर जीते हैं या फिर संघर्ष करके आगे बढ़कर अपनी शर्तों पर जीना पसंद करते हैं। यह कविता एक हौसला देती है कि किस तरह से आपको लोगों के भरम को तोड़कर अपनी हिम्मत का कलम उठाकर अपनी किस्मत सुनहरे अक्षरों में लिखनी है। सफलता के रास्ते में कितनी ही मुश्किल भरे काटे चुभ जाए उन पर चलना है रुकना नहीं है, अपना आसमान खुद बनाना है। अपनी दृष्टि केवल अपनी मंजिल की ओर रखें और धीरे-धीरे कदम आगे बढ़ाते जाएं तो आवश्य ही आप असंभव को भी संभव कर पाएंगे।
5- वीर (लेखक – रामधारी सिंह दिनकर)
सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
मुहँ से न कभी उफ़ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं,
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग-निरत नित रहते हैं,
शुलों का मूळ नसाते हैं,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक रामधारी सिंह दिनकर द्वारा बताया जा रहा है कि किस तरह से विपत्ति आने पर एक कायर दहल जाता है और एक शूरवीर निडरता के साथ उस विपत्ति का सामना करता है। जो शूरवीर विपत्ति से नहीं डरते वो कांटों में भी बिना डरे अपनी राह बना लेते हैं। उस विपत्ति का सामना करने के लिए आगे बढ़कर अपने प्राण भी वीर त्याग देते हैं। जो कायर होते हैं वह कठिन परिस्थिति में अपने कदम पीछे खींचते हैं और उल्टे पैरों भाग खड़े होते हैं।
6-वरदान माँगूँगा नहीं ( लेखक – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’)
यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं ।
वरदान माँगूँगा नहीं ।
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खण्डहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की सम्पत्ति चाहूँगा नहीं ।
वरदान माँगूँगा नहीं ।
क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही ।
वरदान माँगूँगा नहीं ।
लघुता न अब मेरी छुओ
तुम हो महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं ।
वरदान माँगूँगा नहीं ।
चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्त्तव्य पथ से किन्तु भागूँगा नहीं ।
वरदान माँगूँगा नहीं।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से कवि शिवमंगल सिंह जी द्वारा वरदान ना मांगने की बात कहीं जा रहे हैं। जो वीर होते हैं वह अपने हृदय को ताप में झोंक देते हैं अभिशाप की ज्वाला भी झेल लेते हैं लेकिन अपने कर्तव्य पथ से ना ही पीछे भागते हैं और ना ही वरदान मांगते हैं। वीर हमेशा जीवन को महासंग्राम की दृष्टि से देखते हैं और दया की भीख ना मांगते हुए तिल तिल मिटने को तैयार रहते हैं।जो बहादुर होते है वो हार जीत की परवाह नहीं करते और न ही कठिन परिस्थितियों से भयभीत होते हैं बल्कि वह बिना फल की चिंता के कठिनाइयों का सामना करते हैं और उनमें विजय भी होते हैं।
7- आसमान को जमीन पर लाने वाला चाहिए (लेखक-लोकेश्वरी कश्यप)
जो आसमान को जमीन पर लाना चाहिए,
हौसला उनका बुलंद होना चाहिए।
तिनके की तरह बिखरे ना जिनके हौसले,
बाज़ की तरह ऊंची उड़ान होना चाहिए।
जितनी बार उतनी बार उठकर फिर चले,
अनवरत लक्ष्य की ओर बढ़ने वाला चाहिए।
सितारे उनको गर्दिश में भी राह दिखाएंगे,
जिगर में काम का जुनून उनके होना चाहिए।
आसमान भी जमीन पर एक रोज उतर आएगा,
बस आसमान को जमीन पर लाने वाला चाहिए
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लोकेश्वरी कश्यप जी द्वारा कहां जा रहा है कि जिन लोगों के हौसले बुलंद होते हैं वह आसमान को जमीन पर लाने का हुनर रखते हैं। आसमान को जमीन पर लाने के लिए बाज़ की तरह हौसला की ऊंची उड़ान भरनी है और बिना रुके अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाना है। अगर यही हौसला और आत्मविश्वास के साथ हम आगे बढ़ते हैं तो यकीनन एक दिन आसमान को जमीन पर ले आएंगे।
8- हुनर (लेखक – राकेश चौहान)
वक़्त की शाख को तोड़ लाने का हुनर रखते हैं,
ऐ ज़िन्दगी हम ग़म में भी मुस्कुराने का हुनर रखते हैं।
इतने आसानी से नहीं तोड़ पायेगा वक़्त हमें,
हम बिख़र कर संवर जाने का हुनर रखते हैं।
लहज़ा शीरीं रखते हैं पर मुनाफ़क़त नही रखते,
मग़रूर नहीं हैं पर इक दायरा अहद रखते हैं।
नफ़रतें कुछ कम कर सकें दिल-ए-इंसान से,
इसलिए हम मोहब्बतों का ज़्यादा ज़िकर रखते हैं।
फ़र्क़ नहीं कोई समझे हमें अच्छा या बुरा,
‘शान’ हम सिर्फ अल्लाह को राज़ी की फ़िकर रखते है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से राकेश चौहान जी द्वारा बताया जा रहा है कि जिंदगी केवल सुख और खुशी में मुस्कुराने का नाम नहीं बल्कि दुख और गम में भी मुस्कुराने का नाम है। व्यक्ति को हमेशा वक्त के हाथों टूटना नहीं चाहिए बल्कि बिखर कर अपनी जिंदगी को सवारने का हौसला रखना चाहिए। हालात चाहे जो भी हो लेकिन आपको नफरत भूलकर प्यार से अच्छे रवैया के साथ सबसे मिलना चाहिए और खुदा को राज़ी रखना चाहिए। कोई आपके साथ अच्छा है या बुरा उससे आपको फर्क नहीं पड़ना चाहिए बल्कि बिना फल की इच्छा किए कर्म करते रहना चाहिए।
9- गलती से सीख (लेखक – राकेश चौहान)
खुद की काबिलियत पर भरोसा रख,
जो गलती आज की है उससे सीख,
मत मांग किसी के आगे,
अपनी सफलता के लिए भीख।
तू जलता हुआ रेगिस्तान है,
तेरे अंदर कुछ करने की ठान है,
तू रुक मत तुझे करना कुछ महान है।
तू अपने घर वालों की आस है,
उनकी उम्मीदों की सांस है,
इनको यूं ही नहीं जाया करना है,
तुझे अपनी सफलता के लिए लड़ना है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक राकेश चौहान जी द्वारा खुद पर भरोसा कर अपनी गलतियों से सीखने की सीख दी जा रही है। कवि के रहे हैं की सफलता के रास्ते में बहुत सारे ऐसे पड़ाव आते हैं, जहां पर हम से गलतियां होती हैं। लेकिन उन गलतियों को दोहराने के बजाय हमें उन गलतियों से सीखना चाहिए। आपसे आपके परिवार की उम्मीदें जुड़ी हुई है और उम्मीदों को तोड़ना नहीं है बल्कि उसको सवारना है और इतना महान बनाना है कि आसमान को अपनी मुट्ठी में कर लेना है।
10- रुके न तू (लेखक – प्रसून जोशी)
धरा हिला, गगन गुंजा,
नदी बहा, पवन चला।
विजय तेरी, विजय तेरी,
ज्योति सी जल, जला।
भुजा-भुजा, फड़क-फड़क,
रक्त में धड़क-धड़क,
धनुष उठा, प्रहार कर
तू सबसे पहला वार कर।
अग्नि सी धधक-धधक,
हिरन सी सजग-सजग,
सिंह सी दहाड़ कर,
शंख सी पुकार कर।
रुके न तू, थके न तू,
झुके न तू, थमे न तू,
सदा चले, थके न तू,
रुके न तू, झुके न तू।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक प्रसून जोशी जी द्वारा बिना थके अपने पथ पर निरंतर चलने की बात की जा रहे हैं। कवि बताना चाह रहे हैं कि हालत चाहे जो भी हो बिना थके बिना रुके बिना झुके चलते रहना है। यदि आपने कुछ कर जाने का हौसला और साहस है तो आपको कोई भी किसी भी क्षेत्र में पराजय नहीं कर सकता। आप जहां भी जाएंगे हां अपने नाम की छाप छोड़ कर ही आएंगे। आपको अपना किरदार ऐसा बनाना है कि हर कोई आप जैसे बनने की चाह रखें।
11- कोने में बैठकर क्यों रोते हो (लेखक – नरेंद्र वर्मा)
कोने में बैठ कर क्यों रोता है
कोने में बैठ कर क्यों रोता है,
यू चुप चुप सा क्यों रहता है।
आगे बढ़ने से क्यों डरता है,
सपनों को बुनने से क्यों डरता है।
तकदीर को क्यों रोता है,
मेहनत से क्यों डरता है।
झूठे लोगो से क्यों डरता है,
कुछ खोने के डर से क्यों बैठा है।
हाथ नहीं होते नसीब होते है उनके भी,
तू मुट्ठी में बंद लकीरों को लेकर रोता है।
भानू भी करता है नित नई शुरुआत,
सांज होने के भय से नहीं डरता है।
मुसीबतों को देख कर क्यों डरता है,
तू लड़ने से क्यों पीछे हटता है।
किसने तुमको रोका है,
तुम्ही ने तुम को रोका है।
भर साहस और दम, बढ़ा कदम,
अब इससे अच्छा कोई न मौका है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेकर नरेंद्र वर्मा जी द्वारा कहा जा रहा है कि बहुत से लोग सपने देखने से डरते हैं और आगे बढ़ने से डरते हैं इस वजह से वे अपने जीवन में कभी सफलता को गले नहीं लगा पाते और कोने में बैठ कर रोते रहते हैं। और जब जीवन में असफलता मिलती है तो अपनी किस्मत को बैठ कर रोते हैं। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि अपनी किस्मत को कोसने से बेहतर है कि निर्भय होकर सपने देखो और उन्हें पूरा करने के रास्ते खोजो और उन रास्तों पर चलकर सफलता प्राप्त करो। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि अपने अंदर थोड़ा सा साहस और वीरता लेकर बिना किसी भय के पहला कदम अपनी मंजिल के पड़ाव में रख दो। इससे अच्छा मौका जीवन में आगे बढ़ने का आपको कभी नहीं मिलेगा।
12- रहा में मुश्किल होंगी हजार (लेखक – विनोद तांबी)
राह में मुश्किल होगी हजार,
तुम दो कदम बढाओ तो सही,
हो जाएगा हर सपना साकार,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।
मुश्किल है पर इतना भी नहीं,
कि तू कर ना सके,
दूर है मंजिल लेकिन इतनी भी नहीं,
कि तु पा ना सके,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।
एक दिन तुम्हारा भी नाम होगा,
तुम्हारा भी सत्कार होगा,
तुम कुछ लिखो तो सही,
तुम कुछ आगे पढ़ो तो सही,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।
सपनों के सागर में कब तक गोते लगाते रहोगे,
तुम एक राह चुनो तो सही,
तुम उठो तो सही, तुम कुछ करो तो सही,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।
कुछ ना मिला तो कुछ सीख जाओगे,
जिंदगी का अनुभव साथ ले जाओगे,
गिरते पड़ते संभल जाओगे,
फिर एक बार तुम जीत जाओगे।
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक विनोद जी द्वारा कहा जा रहा है कि सफलता के रास्ते में आगे बढ़ते समय और बांध आए तो आती ही है लेकिन उन बाधाओं से बिना डरे आगे कदम बढ़ाने हैं। यदि आप कदम आगे बढ़ाते हैं तो आपका हर सपना साकार होगा। हर रास्ता मुश्किल होता है लेकिन नामुमकिन जैसा कुछ नहीं। भले ही आपकी मंजिल दूर है लेकिन तब तक जब तक आप कदम आगे नहीं बनाते हैं। निश्चित ही एक दिन आपके काम से आपका नाम होगा। सपने देखना अच्छी बात है लेकिन सिर्फ देखते रहना सही तो नहीं बल्कि उनको पूरा करने का प्रयास भी आवश्यक है। यदि आपको असफलता मिलती भी है तो उससे आपको एक अनुभव एक सीख मिलती है जो आपकी जिंदगी में आगे काम आती है।
13- माना हालात प्रतिकूल है
माना हालात प्रतिकूल हैं, रास्तों पर बिछे शूल हैं
रिश्तों पे जम गई धूल है
पर तू खुद अपना अवरोध न बन
तू उठ…… खुद अपनी राह बना।
माना सूरज अँधेरे में खो गया है……
पर रात अभी हुई नहीं, यह तो प्रभात की बेला है
तेरे संग है उम्मीदें, किसने कहा तू अकेला है
तू खुद अपना विहान बन, तू खुद अपना विधान बना।
सत्य की जीत हीं तेरा लक्ष्य हो
अपने मन का धीरज, तू कभी न खो
रण छोड़ने वाले होते हैं कायर
तू तो परमवीर है, तू युद्ध कर – तू युद्ध कर।
इस युद्ध भूमि पर, तू अपनी विजयगाथा लिख
जीतकर के ये जंग, तू बन जा वीर अमिट
तू खुद सर्व समर्थ है, वीरता से जीने का हीं कुछ अर्थ है
तू युद्ध कर – बस युद्ध कर।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि आपके रास्ते में कितने भी कांटे क्यों ना पीछे हो और आपके अपने आपका साथ छोड़ चुके हो लेकिन आपको उससे हताश और निराश ना होकर अपनी राह खुद बनानी है और अकेले ही आगे बढ़ना है और मंजिल को पाना है। यदि आपके साथ आपके सपने और उम्मीदें हैं तो आप अकेले नहीं हैं। जिंदगी की पड़ाव में हमेशा सत्य को साथ रखना चाहिए क्योंकि वही आपकी जीत निश्चित कराता है। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि अपना धीरज ना खोकर युद्ध के मैदान में कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिए। पीछे हटना आपको आपकी मंजिल से कई गुना दूर कर सकता है। युद्ध भूमि में अगर आपको परास्त भी होना पड़े तो हो जाना चाहिए पीछे कदम हटाने से यही बेहतर है।
14- तू खुद की खोज में निकल (लेखक- तनवीर गाज़ी)
तू किसलिए हताश है
तू चल तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
जो तुझसे लिपटी बेड़ियाँ
समझ न इनको वस्त्र तू
ये बेड़ियाँ पिघाल के
बना ले इनको शस्त्र तू
तू ख़ुद की खोज में निकल
तू किसलिए हताश है
तू चल तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
चरित्र जन पवित्र है
तोह क्यों है ये दशा तेरी
ये पापियों को हक़ नहीं
की लें परीक्षा तेरी
तू ख़ुद की खोज में निकल
तू किसलिए हताश है
तू चल तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
जला के भस्म कर उसे
जो क्रूरता का जाल है
तू आरती की लौ नहीं
तू क्रोध की मशाल है
तू ख़ुद की खोज में निकल
तू किसलिए हताश है
तू चल तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
चूनर उड़ा के ध्वज बना
गगन भी कपकपाएगा
अगर तेरी चूनर गिरी
तोह एक भूकंप आएगा
तू ख़ुद की खोज में निकल
तू किसलिए हताश है
तू चल तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक तनवीर गाज़ी जी द्वारा बताया जा रहा है कि जिंदगी में कभी निराश और हताश ना होकर पूरा करने में जुट जाओ। यदि आपको अपने रातों की नींद भी त्याग नहीं पड़े तो हंसते-हंसते त्याग दो क्योंकि आने वाले समय में आप अपना एक मुकाम हासिल कर लोगे। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि आप अपना वजूद ऐसा बनाओ कि लोग आपका हाथ छोड़कर नहीं बल्कि आपके साथ चलने की ख्वाहिश रखें। सफलता प्राप्त करने के लिए सबसे अहम चीज है आपका खुश मिजाज व्यवहार आपकी मुस्कान जिसे आप हर किसी का दिल चुटकियों में जीत सकते हैं। धूप में भी आपको अपनी मुस्कान का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए। सुख और दुख जीवन के ऐसे पहलू है जो आते जाते रहते हैं लेकिन हमेशा हर परिस्थिति में खुश रहना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए।
15- बैठ जाओ सपनो की नाव में (लेखक- नरेंद्र वर्मा)
बैठ जाओ सपनों के नाव में,
मौके की ना तलाश करो,
सपने बुनना सीख लो।
खुद ही थाम लो हाथों में पतवार,
माझी का ना इंतजार करो,
सपने बुनना सीख लो।
पलट सकती है नाव की तकदीर,
गोते खाना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।
अब नदी के साथ बहना सीख लो,
डूबना नहीं, तैरना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।
भंवर में फंसी सपनों की नाव,
अब पतवार चलाना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।
खुद ही राह बनाना सीख लो,
अपने दम पर कुछ करना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।
तेज नहीं तो धीरे चलना सीख लो,
भय के भ्रम से लड़ना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।
कुछ पल भंवर से लड़ना सीख लो,
समंदर में विजय की पताका लहराना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेकर नरेंद्र वर्मा जी द्वारा कहा जा रहा है कि यदि जीवन में कुछ करना है तो मौके की तलाश में ना रहो बल्कि अपने सपनों को अपनी नाव बनाकर उसे पार करने का प्रयास करो। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि यदि सपने आपके हैं तो उन्हें पूरा करने का प्रयास भी आपको करना होगा। कभी द्वारा कहा जा रहा है कि आपकी किस्मत कभी भी किसी भी समय पलट सकती है आपको आने वाले समय के लिए खुद को हमेशा तैयार रखना चाहिए। आपके सपने पूरा करने में यदि कोई रुकावट डालता है या कोई बांधा आती है तो उससे निकलने का प्रयास करना चाहिए ना कि निराश होकर बैठना चाहिए। यदि आप तेज नहीं चल सकते तो धीरे-धीरे ही सही लेकिन अपने सपनों को पूरा करने का प्रयास निरंतर करते रहना चाहिए।
16- घने बादलों के साए में
घने बादलों के साये मँडराते है आज
चारो ओर छाया है अन्धेरा
ना कोइ रौशनी, ना कोई आस्
फिर भी चला है यह मन अकेला.
ना डरे यह काले साये से
ना छुपा सके इसे कोहरा
अपनी ही लौ से रोशन करे यह दुनिया
चले अपनी डगर…
हो अडिग, फिर भी अकेला …
ना झुकता है यह मन किसी तूफान में
ना टूटे होंसला इसका कभी कही से
एक तिनके को भी अपनी उम्मीद बना ले…
ऐसा है विश्वास बांवरे मन का…
ना थके वो, ना रुके वो
मंज़िल है दूर, दूर् है सवेरा
चला जाए ऐसे, पथ पर निरंतर
ऐ मन, तू है चिरायु …
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि यदि आपके जीवन में जीवन में चारों ओर अंधेरा है और आसमान में काले बादल छाए हैं तो आपको उन परिस्थिति में घबराने की आवश्यकता नहीं है बल्कि आपके हौसलो और उम्मीदों का प्रकाश इतना होना चाहिए कि उस अंधेरे को मिटा सके। यदि रास्ते में साथ देने वाला कोई ना हो तो घबराना नहीं चाहिए बल्कि निडर होकर आगे बढ़कर सफलता प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि आगे बढ़ते समय ना किसी से डरना चाहिए और ना किसी के आगे झुकना चाहिए। यदि आपके पास एक तिनका भर भी उम्मीद है तो उसे अपनी ताकत बनाकर आगे बढ़ते रहो।
17- ना खड़ा तू ना देख गलत को (लेखक- बबली निषाद)
ना खड़ा तू देख गलत को
अब तो तू बवाल कर
चुप क्यों है तू
ना तो अपनी आवाज दबा
अब तो तू सवाल कर
ना मिले जवाब
तो खुद जवाब तलाश कर
क्यों दफन है सीने में तेरे आग
आज आग को भी
तू जलाकर राख कर
कमियों को ना गिन तू
ना उसका तू मलाल कर
कुछ तो अच्छा ढूंढ ले
ना मन को तू उदास कर
जो भी पास है तेरे
तू उससे ही कमाल कर
तू उठ कुछ करके दिखा
ना खुद को तू बेकार कर
खुद मिसाल बनकर
जग में तू प्रकाश कर
सोचता है क्या तू
तू वक्त ना खराब कर
जिंदगी जो है तो
जी के उसका नाम कर
रास्ते जो ना मिले
तो खुद की राह निर्माण कर
काल के कपाल पर
करके तांडव तू दिखा
दरिया जो दिखे आग का
प्रचंड अग्नि बन कर
तू उसे भी पार कर।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेकर बबली निषाद जी द्वारा कहा जा रहा है कि यदि आपके सामने कहीं पर या आपके साथ कुछ गलत हो रहा है तो उसे चुपचाप देखना नहीं चाहिए, बल्कि उसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और सत्य का साथ देना चाहिए। अपने अंदर की कमियों को हटाकर मन में एक ज्वाला भड़का और सत्य का साथ देंना चाहिए। मन को उदास करने से बेहतर है कि खुद की राह में नया रास्ता बनाएं और अपनी मंजिल की ओर सफलता पाने का प्रयास करें। भगवान ने जो जिंदगी दी है उसे बेहतर बनाना हमारे खुद के हाथ में होता है। इसे व्यर्थ कामों से बचा कर अच्छे कामों में लगाकर अपना एक मुकाम हासिल करना ही हमारी जिंदगी का लक्ष्य होना चाहिए। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि जग में रोशनी करके अपना नाम ऐसा बनाओ की लोग हजारों में नहीं बल्कि लाखों की भीड़ में भी आपको पहचान ले।
18- किस्तों में मत जिया करो (लेखक- विनोद तांबी)
हर पल हैं जिन्दगी का उम्मीदो से भरा,
हर पल क़ो बाहो मे अपनी भरा करों,
किस्तो मे मत ज़िया करों।
सपनो का हैं ऊंचा आसमान,
उडान लम्बी भरा करों,
ग़िर जाओं तुम कभीं,
फ़िर से ख़ुद उठा करों।
हर दिन मे एक़ पूरी उम्र,
ज़ीभर के तुम ज़िया क़रो,
किस्तो मे मत ज़िया क़रो।
आये जो ग़म के बादल कभीं,
हौंसला तुम रख़ा करों,
हो चाहें मुश्कि़ल कईं,
मुस्क़ान तुम बिख़ेरा करो।
हिम्मत सें अपनी तुम,
वक्त क़ी करवट ब़दला क़रो,
जिन्दा हो ज़ब तक तुम,
जिन्दगी का साथ ना छोडा क़रो,
किस्तो मे मत ज़िया क़रो थोडा पानें की चाह मे,
सब़ कुछ अपना ना ख़ोया क़रो,
औरो की सुनतें हो
क़ुछ अपनें मन क़ी भी क़िया करों,
लग़ा के अपनो को गलें गैरो के संग भी हसा क़रो,
किस्तो में मत ज़िया क़रो।
मिलें ज़हां ज़ब भी जो ख़ुशी,
फ़ैला के दामन ब़टोरा क़रो,
जीनें का हो अग़र नशा,
हर घूट मे जिन्दगी को पिया क़रो,
किस्तो मे मत ज़िया करों।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक निजी द्वारा कहा जा रहा है कि जिंदगी को किस्तों में जीना छोड़ कर हर पल उम्मीदों से भरकर जिया करो। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि यदि तुम्हारे सपनों का आसमान ऊंचा है तो उसके लिए लंबी उड़ान भरने के लिए हमेशा तैयार रहो। यदि रास्ते में कई बार आसफलता हासिल होती है तो उसे निराश होकर थक कर नहीं बैठना चाहिए, बल्कि दोबारा और ज्यादा तैयारी के साथ खड़े होना चाहिए। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि अपना हर दिन में पूरी जिंदगी जिया करो क्या पता कल आप हो ना हो। कितनी भी मुश्किले कभी भी आपकी जिंदगी में आ जाए हौसलों की उड़ान कभी कम नहीं होनी चाहिए। हर परिस्थिति में हमेशा मुस्कुराते रहना चाहिए। दूसरों की सुनने से ज्यादा अपने मन की बात सुननी चाहिए और हिम्मत के साथ अपनी असफलता को सफलता में बदलने की कोशिश करनी चाहिए। जिंदगी में अगर किसी रास्ते में थोड़ी सी भी खुशी मिलती है तो उस पल को जी भर के जिया करो।
19- सफर में धूप तो होगी (लेखक- निदा फ़ाज़ली)
सफ़र में धुप तो होग़ी जो चल सक़ो तो चलों
सभी है भीड मे तुम भी निक़ल सक़ो तो चलों
ईधर उधर कईं मंजिल हैं जो चल सक़ो तो चलों
ब़ने बनाए है सांचें जो ढ़ल सक़ो तो चलों
सफ़र मे धुप तो होग़ी जो चल सक़ो तो चलों
क़िसी के वास्तें राहें कहा बदलती है
तुम अपनें आपको ख़ुद ही ब़दल सक़ो तो चलों
यहा कोईं किसी को रास्ता नही देता
मुझ़े गिराक़े गर तुम सम्भल सक़ो तो चलों
यहीं हैं जिन्दगी कुछ ख्वाब़ चन्द उम्मीदे
इन्ही ख़िलौनो से तुम भी ग़र बहल सक़ो तो चलों
सफ़र में धुप तो होग़ी जो चल सक़ो तो चलों
कही नही सूरज़ धुआ धुआ हैं फिज़ा
ख़ुद अपने आप से ब़ाहर निक़ल सक़ो तो चलों
हर एक़ सफ़र को हैं महफ़ूज रास्तो की तलाश
हिफ़ाजतो के रिवायतें बदल सक़ो तो चलों
सफ़र में धुप तो होगी, ज़ो चल सक़ो तो चलों।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखिका निदा फाजली द्वारा बताया जा रहा है कि जिंदगी में अगर सफलता हासिल करनी है तो कड़ी धूप में चलना ही पड़ेगा। यदि जीवन में कुछ करना है तो आप कड़ी धूप और काटो भरे रास्ते पर चल सकते हो तो चलो। अपना ध्यान केवल अपनी मंजिल की ओर रखो और भीड़ में आगे बढ़ने का प्रयास करो। मंजिल में चलते वक्त रास्ते में कई रुकावटें आएंगी और कई लोग आपको आगे बढ़ने से रोकेंगे लेकिन आपको अपने कदम रोकने नहीं है। किसी के लिए आपको अपनी राह बदलने की आवश्यकता नहीं है। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि कुछ ख़्वाब और उम्मीदो को खिलौना बना कर उन्हें पूरा करने में लग जाओ। मंजिल हमें चलते समय खुद की हिफाजत खुद कर सको तो आगे बढ़ते रहो निश्चिती एक दिन आप अपने लक्ष्य को अवश्य ही प्राप्त कर पाएंगे।
20- पढ़ती है जब कठिनाई (लेखक संदीप कुमार सिंह)
दर-दर भटक़-भटक क़र मैने
जीवन सीख़ यहीं पाई,
साथ छोडते संक़ट मे सब
पडती हैंं ज़ब कठिनाईं।
स्वय भाग्य से लडना होगा
वीर तुझें बनना होगा
विज़य हाथ मे आयेगी ब़स
धींर तुझें बनना होगा,
दुख़ आया, सुख़ भी आयेगा
ध्यान रख़ो मेरे भाई
साथ छोडते संक़ट मे सब़
पडती हैं ज़ब कठिनाईं।
हाथ मिलाक़र चलनें वाले
हाथ जोडकर ज़ाते है
कितनें भी अपनें हो सब
साथ छोडकर ज़ाते है,
कहनें को सब़ अपने है पर
पडे ना कोई दिख़ाई
साथ छोडते संक़ट मे सब
पडती हैं ज़ब कठिनाईं।
रख़ संयम इस अन्धकार मे
पग-पग बढते ज़ाना हैं
भौर नही ज़ब तक हों साथी
गींत यहीं बस गाना हैं,
डटा रहें जो वहीं विजेता
यहीं ज़गत की सच्चाईं
साथ छोडते संकट मे सब
पडती हैं ज़ब कठिनाई।
दर-दर भटक़-भटक़ कर मैने
जीवन सीख़ यहीं पाई,
साथ छोडते संक़ट मे सब
पडती हैं ज़ब कठिनाई।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक संदीप कुमार सिंह जी द्वारा बताया जा रहा है कि जिंदगी के पड़ाव में दर-दर भटकते बॉक्स मनुष्य को केवल एक सीख मिलती है कि कठिनाई में अपने भी साथ छोड़ देते हैं। अपने भाग्य से लड़कर अपनी कठिनाइयों को देवी के साथ सफलता में बदलना होगा। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि सुख में तो अंजान भी अपने बन जाते हैं, लेकिन दुख में लोगों को हाथ छोड़कर जाते देखा है। अच्छे वक्त में लोग आपकी कामयाबी को देखकर आपके सामने हाथ जोड़कर जाते हैं, जो कभी आपको देखकर हंसते थे। अंधकार में संयम रख जीवन में आगे बढ़ते रहिए और जब तक रोशनी की किरण ना दिख जाए तब तक किसी भी हाल में रुकना नहीं चाहिए।
21- कर्मवीर (लेखक अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)
देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं
रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नही
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं।
हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले,
आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही।
मानते जो भी है सुनते हैं सदा सबकी कही
जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही, भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं।
जो कभी अपने समय को यों बिताते है नहीं
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं,
आज कल करते हुए जो दिन गँवाते है नहीं
यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं।
बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिये
वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिये,
व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर
वे घने जंगल जहां रहता है तम आठों पहर।
गर्जते जल राशि की उठती हुई ऊँची लहर
आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट,
ये कंपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं
भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि जो लोग हिम्मत वाले होते हैं वह आने वाली मुसीबत से कभी भी घबराया नहीं करते और जिन लोगों को खुद पर भरोसा होता है वह कभी दुखों से पछताते नहीं। आपके जीवन में कोई कार्य कितना ही कठिन क्यों ना हो लेकिन आपकी हिम्मत से उसे कार्य को भी आसान किया जा सकता है। किसी भी इंसान को कभी भी भीड़ से घबराना नहीं चाहिए बल्कि चंचलता और सूझबूझ के साथ उसे भीड़ में आपको खुद को खोने नहीं देना है बल्कि उसे भीड़ में खुद को ऐसा बनाएं कि लोग आपको खुद बा खुद निकलने की जगह दे।
जीवन में कितना ही अंधकार क्यों ना भरा हो लेकिन उसे अंधकार को मिटाकर दिन की रोशनी भी आपको ही लानी पड़ेगी। किसी ने बहुत प्यारी बात कही है कि एक खूबसूरत सुबह लाने के लिए आपको कहीं खौफनाक रातों से गुजरना पड़ता है, और यह ज़िंदगी की हकीकत है। इसलिए कभी भी किसी भी परेशानी में हार नहीं करने चाहिए आप गिरते हैं तो गिरने दे फिर से उठे और अपने कर्म करना शुरू करें क्योंकि सफल होने के लिए आपको कई बार नीचे गिरना पड़ेगा और गिरकर उठना पड़ेगा। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि जिस मनुष्य ने गिरकर खुद को खड़ा कर लिया वह एक न एक दिन अवश्य ही कामयाब होगा लेकिन जो इंसान गिरकर टूट जाता है उसके लिए बहुत मुश्किल हो जाता है।
22- वह प्रदीप जो दिख रहा है (लेखक रामधारी सिंह दिनकर)
वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है
थककर बैठ गये क्या भाई, मंजिल दूर नहीं है।
चिनगारी बन गई लहू की
बूँद गिरी जो पग से,
चमक रहे, पीछे मुड़ देखो
चरण – चिह्न जगमग से,
शुरू हुई आराध्य-भूमि यह
क्लान्ति नहीं रे राही,
और नहीं तो पाँव लगे हैं
क्यों पड़ने डगमग से,
बाकी होश तभी तक,जब तक जलता तूर नहीं है
थककर बैठ गये क्या भाई,मंजिल दूर नहीं है।
अपनी हड्डी की मशाल से
हॄदय चीरते तम का,
सारी रात चले तुम दुख
झेलते कुलिश निर्मम का,
एक खेय है शेष किसी विधि
पार उसे कर जाओ,
वह देखो, उस पार चमकता
है मन्दिर प्रियतम का,
आकर इतना पास फिरे, वह सच्चा शूर नहीं है,
थककर बैठ गये क्या भाई, मंजिल दूर नहीं है।
दिशा दीप्त हो उठी प्राप्त कर
पुण्य-प्रकाश तुम्हारा,
लिखा जा चुका अनल-अक्षरों
में इतिहास तुम्हारा,
जिस मिट्टी ने लहू पिया
वह फूल खिलायेगी ही,
अम्बर पर घन बन छायेगा
ही उच्छवास तुम्हारा,
और अधिक ले जाँच, देवता इतना क्रूर नहीं है,
थककर बैठ गये क्या भाई, मंजिल दूर नहीं है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि कई बार हमें दूर कहीं चमकती चीज दिखती है लेकिन यदि आप उसको देखकर यह सोचकर बैठ जाएं कि यह बहुत दूर है तो आप कभी भी उसे चीज तक नहीं पहुंच सकते बल्कि अपने दिमाग में केवल इसी बात को रखी है कि मंजिल दूर नहीं फिर चाहे आपकी मंजिल कितनी ही दूर क्यों ना हो। आप एक दिन उसे जगह पर अवश्य पहुंचेंगे जहां आप जाना चाहते हैं। वह कहते हैं ना की निरंतर प्रयास करते रहने से आपका रास्ता जल्दी बाहर होता है यही सोच आपको आपकी सफलता पाने के लिए भी रखनी है।
यदि आपके मन में एक छोटी सी भी चिंगारी आपके सपनों के लिए जली हुई है तो चाहे आपके रास्ते में कितने ही कांटे क्यों न बिछ जाए यकीनन आप उन कठिनाइयों को पार करते-करते अपनी मंजिल को अवश्य पाएंगे। कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि किसी भी व्यक्ति के लिए उसके सपने या उसकी मंजिल पाना आसान नहीं होता लेकिन नाम मुमकिन भी कुछ नहीं होता। कदम लड़खड़ाएं या लोग आपके पीछे खींचे उनसे पीछा छुड़ाकर आगे बढ़ाना है और कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखना है। अपनी शरीर की हड्डियों को मशाल की तरह जला लो जिस तरह वे आपके रास्ते में रोशनी करती चले।
23- वह राहे़ं ही इंसान की असल मंजिल होती है (लेखक आदित्यराज)
जिन राहों पर दुश्मनों की निगाह होती है वो राहें ही हमारे लिए सर्वोपरि होती हैं।
मुश्किलों के राह मे चलने के कारण
वे राहें ही इंसान की असल मंजिल होती हैं। लोगों को कुछ पाने की तड़प होती है
पर उनकी ये ख्वाब पूरी नहीं होती है।
चूंकि उनके जीवन में आलस्य होती हैं
वे राहें ही इंसान की असल मंजिल होती हैं। बीते हुए समय कभी नहीं लौटते हैं
उन राहों में अपने भी खो जाते हैं।
फूलों और कांटों के ऊपर बनी
वे राहें ही इंसान की असल मंजिल होती हैं। काबिलियत से ही लोगों की पहचान होती है
कर्मों से ही सपने स्वीकार होती हैं
उन सब कर्मों को आज का अभी करें क्योंकि
वे राहें ही इंसान की असल मंजिल होती हैं।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक आदित्यराज द्वारा बताया जा रहा है कि अक्सर मनुष्य को जिस रस्ते पर चलना होता है, उन पर हमारे दुश्मनों की निगाह अवश्य होती है और वही हमारी असल परीक्षा भी होती है और उन्हीं रास्तों से गुजर कर हमें हमारी मंजिल भी अवश्य मिलते हैं। हमने अक्सर देखा है कि कुछ लोगों को अपने सपने पूरे करने की बहुत तड़प होती है लेकिन वह सिर्फ सोचते हैं कि सपने पूरे कैसे करें उनको पाने के लिए उनकी कोई कोशिश नहीं होती इस तरह से आपको आपकी मंजिल कभी नहीं मिलेगी।
जो मंजिल आसानी से मिल जाए वह मंजिल कैसी? मंजिल तो वह होती है जिसे आपने अपने बलबूते पर पाया हो और उसे पाने के लिए खुद को जलाया हो। बिना कोई मेहनत किया अगर कुछ मिल जाता है तो वह जल्दी को भी जाता है क्योंकि हमें उन चीजों की कदर नहीं होती।
हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे इस पोस्ट में प्रसिद्ध मोटिवेशनल कविताएं अवश्य ही पसंद आई होंगी। इन मोटिवेशनल कविताएं पढ़ने से आपका स्ट्रेस अवश्य ही कम हुआ होगा और आपको आगे बढ़ने के लिए काफी हौसला भी मिला होगा। यदि आप आगे और भी Hindi कविताएं पढ़ना और सुनना चाहते हैं तो हमारे साथ बने रहे हम आपके लिए ऐसे ही प्रसिद्ध कविताएं अपने लेख के माध्यम से लाते रहेंगे।