प्रकृति पर कविता: हेलो दोस्तों जैसे कि आप सभी लोग जानते हैं कि इस धरती का रचयिता भगवान है। भगवान ने कितनी ही खूबसूरती के साथ इस सृष्टि का निर्माण किया है। जिस तरह भगवान ने खूबसूरत दिल के साथ इंसानों को बनाया है उसे कहीं ज्यादा खूबसूरती प्रकृति में है। पेड़ पौधे, पहाड़, झरने, बहती नदियां, आसमान से होती बर्फ की बारिश प्रकृति की जितनी भी तारीफ की जाए उसके लिए अल्फाज कम पड़ जाएंगे लेकिन हम कुछ शब्दों में प्रकृति की सुंदरता का वर्णन नहीं कर सकते। चलिए दोस्तों आज हम आपको प्रकृति से संबंधित कुछ ऐसी कविताओं के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी प्रदान करने वाले हैं जहां बहुत ही खूबसूरत शब्दों के साथ प्रकृति की सुंदरता की व्याख्या की गई है। आप भी प्रकृति से संबंधित कविताओं को पढ़ना और सुनना चाहते हैं तो हमारे इस आर्टिकल में अंत तक बने रहे।
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1-प्रकृति पर कविता: प्रकृति की लीला न्यारी (लेखक नरेंद्र वर्मा)
प्रकृति की लीला न्यारी,
कहीं बरसता पानी, बहती नदियां,
कहीं उफनता समंद्र है,
तो कहीं शांत सरोवर है। प्रकृति का रूप अनोखा कभी,
कभी चलती साए-साए हवा,
तो कभी मौन हो जाती,
प्रकृति की लीला न्यारी है। कभी गगन नीला, लाल, पीला हो जाता है,
तो कभी काले-सफेद बादलों से घिर जाता है,
प्रकृति की लीला न्यारी है। कभी सूरज रोशनी से जग रोशन करता है,
तो कभी अंधियारी रात में चाँद तारे टिम टिमाते है,
प्रकृति की लीला न्यारी है। कभी सुखी धरा धूल उड़ती है,
तो कभी हरियाली की चादर ओढ़ लेती है,
प्रकृति की लीला न्यारी है। कहीं सूरज एक कोने में छुपता है,
तो दूसरे कोने से निकलकर चोंका देता है,
प्रकृति की लीला न्यारी है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि प्रकृति की सुंदरता कितनी प्यारी है जहां एक और बहती नदियां तू कहीं उफनता समुद्र है। कहीं एक और प्रति बर्फ की बारिश तो कहीं दूसरी और झमाझम पानी से लहलहाते पेड़ हैं। ऊपर वाले ने कितनी खूबसूरती के साथ प्रकृति को बनाया है जहां सुबह उठकर देखते हैं तो चारों तरफ हरियाली की चादर दिखाई देती है और सूरज का प्रकाश हमारी आंखों को भी इसी तरह ही चमकने का ख्वाब दिखा देता है दूसरी और ढलते सूरज के साथ चांद की रोशनी हमारे दिलों में ठंडक और नमी की ख्वाहिश जगह देती है। प्राकृतिक की सुंदरता से हमें कुछ ना कुछ सीखने की प्रेरणा मिलती है। जहां बारिश की लोगों को बचपन की मौज मस्ती याद दिला देती हैं वही बड़े-बड़े पेड़ हमें मजबूत बनने की प्रेरणा देते हैं।
2- बागों में जब बहार आने लगी (लेखक डी के निवातिया)
बागो में जब बहार आने लगे
कोयल अपना गीत सुनाने लगे। कलियों में निखार छाने लगे भँवरे जब उन पर मंडराने लगे। मान लेना वसंत आ गया, रंग बसंती छा गया। खेतो में फसल पकने लगे खेत खलिहान लहलाने लगे। डाली पे फूल मुस्काने लगे चारो और खुशबु फैलाने लगे। मान लेना वसंत आ गया रंग बसंती छा गया। आमो पे बौर जब आने लगे, पुष्प मधु से भर जाने लगे। भीनी भीनी सुगंध आने लगे तितलियाँ उनपे मंडराने लगे। मान लेना वसंत आ गया रंग बसंती छा गया।
सरसो पे पीले पुष्प दिखने लगे वृक्षों में नई कोंपले खिलने लगे। प्रकृति सौंदर्य छटा बिखरने लगे वायु भी सुहानी जब बहने लगे। मान लेना वसंत आ गया रंग बसंती छा गया। धूप जब मीठी लगने लगे सर्दी कुछ कम लगने लगे। मौसम में बहार आने लगे ऋतु दिल को लुभाने लगे। मान लेना वसंत आ गया रंग बसंती छा गया। चाँद भी जब खिड़की से झाकने लगे चुनरी सितारों की झिलमिलाने लगे। योवन जब फाग गीत गुनगुनाने लगे चेहरों पर रंग अबीर गुलाल छाने लगे। मान लेना वसंत आ गया रंग बसंती छा गया।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बागों में बाहर का समय कब आता है और प्रकृति में कैसे-कैसे बदलाव होते हैं बहुत ही प्यारे अल्फाजों में व्याख्या की गई है। कवि द्वारा बताया जा रहा है कि जब कोयल अपने गीत सुनाने लगते हैं तब बागों में बाहर आने का समय हो जाता है जहां कलियों पर भवरे मंडराना शुरू हो जाते हैं जब प्रकृति में बदलाव होने लगते हैं। जब खेतों में पतले पकाने लगते हैं और खेत खुशी से हवा के साथ-साथ लहलहाने और डाली पर फूल मस्ताने लगते हैं चारों तरफ फूलों की खुशबू महकने लगती है तब प्रकृति पर यौवन झूमने लगता है। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि भगवान ने जहां इतनी प्यारी प्रकृति को बनाया है हल्की बारिश में खेतों का हरा भरा हो जाना और सर्दी में धूप का खिल जाना किसी चमत्कार से काम नहीं।
3-प्रकृति पर कविता: प्रकृति से मिले कई उपहार
प्रकृति से मिले है ह़मे क़ई उपहार
ब़हुत अनमोल है ये स़भी उपहार।
वायु ज़ल वृक्ष आदि है इऩके नाम
ऩही चुक़ा सक़ते हम इऩके दाम।
वृक्ष जिसे हम़ क़हते है
क़ई नाम़ इसके होते है।
सर्दी ग़र्मी ब़ारिश ये सहते है
पर क़भी कुछ़ ऩही ये क़हते है।
हर प्राणी क़ो जीवन देते
पर ब़दले मे ये कुछ़ ऩही लेते।
सम़य रहते य़दि हम ऩही समझे ये ब़ात
मूक़ ख़ड़े इन वृक्षो मे भी होती है ज़ान।
क़रने से पहले इऩ वृक्षो पर वार
वृक्षो क़ा है जीवन में क़ितना है उपक़ार।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि भगवान द्वारा हमें प्रकृति से कई सारे उपहार हमें भेंट के रूप में मिले हैं। भगवान द्वारा दिए गए यह उपहार बहुत ही अनमोल और कीमती हैं हमारे नियम और उनके नाम है वृक्ष वायु और जल। इन तीनों के बिना हम अपने जीवन के कल्पना भी नहीं कर सकते। हमारे जीवन में इन तीनों में से कोई एक उपहार भी ना हो तो हमारा जीवन संकटों से भरा होगा। इस अनमोल तोहफे का दाम कोई भी इंसान किसी भी कीमत के रूप में नहीं चुका सकता।
सर्दी गर्मी बारिश में हमें वृक्ष धूप छांव देते हैं और खुद ऐसे ही सीना ताने खड़े रहते हैं कभी कुछ नहीं करते लेकिन फैक्ट्री का निर्माण होने के कारण इन वृक्षों को तेजी से काटा जा रहा है और जंगलों को खत्म किया जा रहा है जो की आने वाले समय में प्राकृतिक और नष्ट कर रहा है। इस कविता से हमें सीख मिलती है कि हमें वर्षों की कटाई पर रोक लगनी चाहिए क्योंकि यदि अगर समय रहते हमने इसके लिए आवाज नहीं उठाई तो आगे चलकर हमें भारी संकटों का सामना तो करना पड़ेगा ही और प्राकृतिक की खूबसूरती भी छिन जाएगी।
4- हरियाली (लेखक निधि अग्रवाल)
हरियाली क़ी चूऩर ओढ़े़,
यौंवन क़ा श्रृंग़ार किंए।
वऩ-वऩ डोले, उपवन डोले,
व़र्षा की फु़हार लिए।
क़भी इतराती, क़भी ब़लखाती,
मौसम की ब़हार लिए।
स्वर्ण रश्मिं के ग़हने पहने,
होठो पर मुस्क़ान लिए।
आईं हैं प्रकृति धरती पर,
अनुपम सौंन्दर्य क़ा उपहार लिए।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि यौवन का सिंगर किए हुए जब हम सुबह उठकर हरियाली की चुनर ओढ़े इन खूबसूरत वनों को देखते हैं तो हमारे मन में भी लोगों में प्यार बांटने की भावना का एहसास जागृत होता है। जिस तरह वर्षा की फुहार इतराती बलखाती हुई मौसम में बाहर लाती है इस तरह वर्ष के कारण लोग भी अपने बचपन की बहार में खो जाते हैं। भगवान द्वारा प्रकृति हमें अनुपम सौंदर्य के तोहफे के रूप में दी गई है जिसकी रक्षा हमें वक्त रहते करने चाहिए। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि हमें भी प्राकृतिक की तरह लोगों में प्यार बांटना चाहिए क्योंकि खुशियां बांटने से और भी ज्यादा बढ़ाते हैं।
5-प्रकृति पर कविता: खुशियों का सावन
हरीं हरीं खेतो मे ब़रस रही हैं बूंदें,
खुशीं खुशीं से आया हैं सावन,
भर ग़या खुशियो से मेरा आंग़न।
ऐसा लग़ रहा हैं जैंसे मन की कलिया खिल गईं,
ऐसा आया हैं ब़संत,
लेंकर फूलो की महक़ का ज़श्न।
धूप सें प्यासें मेरे तन कों,
बूदों ने भी ऐंसी अंग़ड़ाईं,
उछ़ल कूंद रहा हैं मेरा तऩ मन,
लग़ता हैं मैं हू एक़ दामन।
यह संसार हैं कितना सुंदर,
लेंकिन लोग़ नही है उतनें अक्लमंद,
यहीं हैं एक़ निवेदन,
मत क़रो प्रकृति क़ा शोषण।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि हरे हरे खेतों में बारिश की बूंदे जब बरसती हैं तब खुशियों से लोगों का घर आंगन झूम उठता है। जिस तरह बारिश के बाद कालिया खिल उठती है वैसे ही लोगों के चेहरों की मुस्कान कलियों की तरह खिल जाती है और प्यासे तन को बारिश की बूंद के साथ सुकून मिल जाता है। कई बार लोग जिम्मेदारियां के कारण जिंदगी को जीना भूल जाते हैं यही प्रकृति है जो हमें जीना सिखाती है जहां बारिश की बूंदे हमें बच्चा बनने पर मजबूर कर देती हैं वही गांव में जाकर खेतों में फसलों को लेलाहाता देखकर मन को शांति और सुकून मिलता है। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि यह संसार कितना सुंदर है और हमें संसार कि हर एक चीज से प्रेम करना चाहिए। प्रकृति से कुछ ना कुछ सीखना चाहिए।
हम उम्मीद करते हैं दोस्तों की आपको हमारा आज का प्रकृति से भरा लेख और कविताएं अवश्य ही पसंद आई होगी। आगे भी हम आपके लिए इसी तरह के प्यारे-प्यारे लेख लिखते रहेंगे। आपको हमारे द्वारा लिखी गई कविताएं पढ़ने अच्छा लगता है तो आप आगे भी अपने सर्किल में शेयर कर सकते हैं। हमेशा की तरह प्यार और सपोर्ट देते रहे।