कोशिश करने वालों की कविता: जिंदगी का एक बहुत बड़ा सच है और वह यह है कि बिना हाथ पर मारे बिना कठिन परिश्रम किया कभी भी सफलता नहीं मिलती इसीलिए कहा जाता है की कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। बहुत सारे लोगों में सब्र नाम की चीज नहीं होती और वह बहुत जल्दी हार मान जाते हैं। लेकिन दोस्तों जीवन में कामयाब होना है तो उस कामयाबी को पाने के लिए बहुत वक्त लग जाता है।
बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जिन्हें कामयाबी बहुत कम समय में मिल जाती है। लेकिन यह भी सच है कि कुछ लोगों को जिंदगी बहुत ज्यादा आजमाती है। तो चलिए दोस्तों आज हम आपको अपने आर्टिकल के माध्यम से कुछ ऐसी कविताओं के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं जिन्हें पढ़कर अवश्य ही आप मोटिवेट होंगे और अपनी मंजिल के रास्ते पर चल पड़ेंगे। आपको भी मोटिवेशन कविताएं पढ़कर जीवन में आगे बढ़ाने की प्रेरणा मिलती है, तुम्हारे इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पड़े।
1-कोशिश करने वालों की कविता: तुम मन की आवाज सुनो (लेखक नरेंद्र वर्मा)
तुम मन की आवाज सुनो
जिंदा हो, ना शमशान बनो,
पीछे नहीं आगे देखो
नई शुरुआत करो।
मंजिल नहीं, कर्म बदलो
कुछ समझ ना आए,
तो गुरु का ध्यान करो
तुम मन की आवाज सुनो।
लहरों की तरह किनारों से टकराकर
मत लौट जाना फिर से सागर,
साहस में दम भरो फिर से
तुम मन की आवाज सुनो।
सपनों को देखकर आंखें बंद मत करो
कुछ काम करो,
सपनों को साकार करो
तुम मन की आवाज सुनो।
इम्तिहान होगा हर मोड़ पर
हार कर मत बैठ जाना किसी मोड़ पर,
तकदीर बदल जाएगी अगले मोड़ पर
तुम अपने मन की आवाज सुनो।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक नरेंद्र वर्मा जी द्वारा बताया जा रहा है कि हिंदी में आगे बढ़ाने के लिए कभी भी पीछे देखकर नहीं आगे बढ़ना चाहिए बल्कि अपना लक्ष्य और फॉक्स केवल सामने रखना चाहिए। केवल अपने मन की आवाज सुनो और खुद को शमशान की भांति कर लो जहां आपका मन में कोई भी तुच्छ विचार दस्तक ना दे पाए। आपकी मंजिल के रास्ते में बहुत ज्यादा परेशानी आ रही है तो मंजिल कभी भी नहीं बदलना चाहिए बल्कि अपने कार्य करने की नीति को बदले।
यदि आप सफलता पाने में बार-बार असफल हो रहे हैं तो गुरु का ध्यान करें और कभी भी अपने सपनों को देखकर उन्हें पैसे ही नहीं छोड़े सपनों को साकार करने का प्रयास हमेशा करते रहना चाहिए। क्या कोशिश करती रहनी चाहिए कि आपको कैसे और किस तरह से सफल इंसान बनना है। इस कविता से हमें यही सीख मिलती है कि यदि हमें अपने सपनों को साकार करना है तो उनके लिए दिन रात मेहनत तो करनी ही है और कोशिश भी करनी है क्योंकि लोहा तप कर ही कुंदन बनता है।
2- चल अकेला (लेखक रवींद्र नाथ ठाकुर)
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए,
तो तू चल अकेला,
चल अकेला,चल अकेला,
चल तू अकेला।
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए
तो चल तू अकेला,
जब सबके मुंह पे पाश।
ओरे ओरे ओ अभागी
सबके मुंह पे पाश,
हर कोई मुंह मोड़के बैठे,
हर कोई डर जाय।
तब भी तू दिल खोलके,
अरे जोश में आकर
मनका गाना गूंज तू अकेला।
जब हर कोई वापस जाय,
ओरे ओरे ओ अभागी
हर कोई बापस जाय।
कानन-कूचकी बेला पर
सब कोने में छिप जाय।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक ठाकुर जी द्वारा बताया जा रहा है कि यदि अपने सपनों को साकार करना है और जीवन में सफलता प्राप्त करनी है तो आपको अकेले ही चलना पड़ेगा। किसी को साथ चलने की इच्छा रखोगे तो कभी भी कामयाब नहीं होंगे। आज चलने वाला इंसान या तो आपकी कामयाबी के बीच काटा बनेगा या फिर आपकी सफलता के कारण आपका दुश्मन बनेगा उससे बेहतर यही है कि खुद ही अकेले स्थिति का सामना करें और आगे बढ़े और अपने सपनों की मंजिल को जल्द ही पाले। कविता से हमें यह सीख मिलती है कि यदि एक सफल इंसान बनना है तो बिना फल की चिंता किए बिना किसी को साथ चलाएं अकेले ही मंजिल की ओर चल पड़े हो सकता है अकेले चलने में डर लगेगा जोश कम होगा लेकिन अपने मन मे अभी भी ऐसे विचारों को पानपने ना दें।
3-कोशिश करने वालों की कविता: तूफानों में चलने का आदी (लेखक गोपालदास नीरज)
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं,
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो।
हैं फ़ूल रोकते, काटें मुझे चलाते
मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढाते,
सच कहता हूं जब मुश्किलें ना होती हैं
मेरे पग तब चलने में भी शर्माते,
मेरे संग चलने लगे हवायें जिससे
तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो।
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं,
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो।
अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूं
मैं मर्घट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूं,
हूं आंख-मिचौनी खेल चला किस्मत से
सौ बार मृत्यु के गले चूम आया हूं,
है नहीं स्वीकार दया अपनी भी
तुम मत मुझपर कोई एहसान करो।
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं,
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो।
शर्म के जल से राह सदा सिंचती है
गति की मशाल आंधी में ही हंसती है,
शोलो से ही श्रिंगार पथिक का होता है
मंजिल की मांग लहू से ही सजती है,
पग में गति आती है, छाले छिलने से
तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो।
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं,
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो।
फूलों से जग आसान नहीं होता है
रुकने से पग गतिवान नहीं होता है,
अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगति भी
है नाश जहां निर्मम वहीं होता है,
मैं बसा सुकून नव स्वर्ग,धरा पर जिससे
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो।
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं,
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो।
मैं पन्थी तूफ़ानों मे राह बनाता
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता,
वेह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर
मैं ठोकर उसे लगाकर बढ्ता जाता,
मैं ठुकरा सकूं तुम्हें भी हंसकर जिससे
तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो।
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं,
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक गोपाल दास जी द्वारा कहा जा रहा है कि बहुत सारे लोग बचपन से ही ऐसी परिस्थितियों का सामना करते हैं कि उन्हें तूफानों में चलने की आदत हो जाती है जैसे कि उन्होंने अपने बचपन में बहुत सारे संघर्ष देखे हुए होते हैं एक तरह से यह एक बहुत अच्छी बात है जिंदगी को समझने के लिए क्योंकि जिस इंसान ने संघर्षों को पार करके अपने जीवन को सफल बना लिया उससे बड़ी सफलता आपके लिए कुछ भी नहीं। सारे लोग अपनी मंजिल को पाने के लिए इतने जुनून होते हैं कि उन्हें आसान रास्तों पर नहीं बल्कि परीक्षा भरे रास्तों पर चलना अच्छा लगता है और वह चाहते हैं कि उनके रास्ते में ठोके भी आए और कांटों पर चलना भी पड़े क्योंकि आसानी से मंजिल मिल जाए ऐसा तो कभी हो ही नहीं।
अपने सपनों को साकार करने के लिए सबसे पहले आपको खुद को इतना मजबूत बनाना होगा कि आपके रास्ते में कितने भी तूफान आपका रास्ता क्यों ना रोक ले लेकिन आपके कदम रुकने नहीं चाहिए इंसान के कदम ठहर गए समझो वह कभी अपने सपनों को साकार नहीं कर सकता। सपने हर कोई देखता है लेकिन सपने उनके ही पूरे होते हैं जिनके हौसलों की उड़ान उनसे कई गुना ज्यादा होती है।
अपने अपने मन में जुनून की चिंगारी लगा ली उसे दिन आपको जो भी चाहिए होगा वह आपके पास होगा। आज के समय में ही नहीं यह सदियों से चला आ रहा है कि जब कोई इंसान सफलता की सीढ़ी चढ़ना है तो उसे पीछे खींचने के लिए सब लोग दौड़ पढ़ते हैं यह भी आपके लिए एक परीक्षा है कि आपको नीचे नहीं उनको पीछे छोड़कर आगे बढ़ाना है। कोशिश हमेशा करते रहे निरंतर प्रयास ही आपकी सफलता का सबसे बड़ा कारण है।
3- सच है विपत्ति जब आती है (लेखक रामधारी सिंह दिनकर)
सच है, विपत्ति जब आती है
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विचलित होते
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं
काँटों में राह बनाते हैं।
मुहँ से न कभी उफ़ कहते हैं
संकट का चरण न गहते हैं,
जो आ पड़ता सब सहते हैं
उद्योग-निरत नित रहते हैं,
शूलों का मूल नसाते हैं
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं।
है कौन विघ्न ऐसा जग में
टिक सके आदमी के मग में,
ख़म ठोंक ठेलता है जब नर
पर्वत के जाते पाव उखड़,
मानव जब जोर लगाता है
पत्थर पानी बन जाता है।
गुन बड़े एक से एक प्रखर
हैं छिपे मानवों के भितर,
मेंहदी में जैसी लाली हो
वर्तिका-बीच उजियाली हो,
बत्ती जो नहीं जलाता है
रोशनी नहीं वह पाता है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक रामधारी जी द्वारा कहा जा रहा है कि विपत्तियों से वही लोग डरते हैं जो कायर होते हैं जिनमे अपने सपने पूरा करने का हौसला और जुनून नहीं होता। जो लोग वीर होते हैं और अपने सपनों के प्रति जुलुनी होते हैं उन्हें कोई भी विपत्ति देहला नहीं सकती। वह वीर लोग वह होते हैं जो कभी भी आने वाली कठिन परिस्थितियों में उफ नहीं करते और उनका डटकर सामना करते हैं। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि सपनों को साकार करने के लिए इतनी मजबूत बन जाओगी कभी भी कोई भी परिस्थिति आपको तोड़ नहीं पाए यदि आपको कुछ जीवन में हासिल करना है तो डट जाओ और भिड़ जाओ। आज के समय में सपनों को पूरा करना बहुत मुश्किल है लेकिन नामुमकिन आज भी नहीं है।
हम उम्मीद करते हैं दोस्तों की आपको हमारा आज का यह लेख अवश्य ही पसंद आया होगा और आपको अपने जीवन में आगे बढ़ाने के लिए मोटिवेशन भी मिला होगा और निरंतर प्रयास करने से भी आपको अवश्य ही कामयाबी मिलेगी। वह हमारे द्वारा लिखे गए लेख अच्छे लगते हैं तो हमेशा की तरह अपना प्यार और सपोर्ट बनाए रखें और आगे शेयर करें।