कुमार विश्वास की कविताएं: आज हम आपके लिए बहुत ही मशहूर कवि कुमार विश्वास जी द्वारा लिखी गई कुछ चुनिंदा और बेहतरीन कविताएं अपने इस आर्टिकल के माध्यम से लेकर आए हैं। कुमार विश्वास का जन्म 10 फरवरी 1970 को गाजियाबाद में हुआ था। बचपन से ही इनकी रूचि हिंदी साहित्य कविताओं की और थी और इनकी प्रसिद्ध कविताएं होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो,मैं तो झोंका हूँ,बात करनी है, बात कौन करे,देवदास मत होना,साल मुबारक,तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा,एक पगली लड़की के बिन,रंग दुनिया ने दिखाया हैहो काल गति से परे चिरंतन,महफ़िल महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है, बाँसुरी चली आओ आदि है। बात यह है कि इंटरनेट पर सबसे ज्यादा इन्ही की कविताएं और शायरी सर्च की जाती है। उम्मीद करते हैं कि आप हमारे इस आर्टिकल में अंत तक बने रहे।
1- जिद
नजर में ‘शोखीयां” लब पर ‘मोहब्बत’ का तराना है,
मेरी उम्मीद की ज़िद में अभी सारा जमाना है।
कई जीते हैं दिल के देश पर मालूम है मुझको,
सिकंदर हूं मुझे एक रोज खाली हाथ जाना है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक कुमार विश्वास जी द्वारा कहा जा रहा है कि आप अपने हुनर से लोगों का दिल कितना भी जीतने कितने भी सिकंदर बन जाए लेकिन इस दुनिया से जाते वक्त राजा हो या रंक वह खाली हाथ ही जाता है।
2- कुमार विश्वास की कविताएं: ठिकाना
उसी की तरह मुझे सारा जमाना चाहे,
वह मेरा होने से ज्यादा मुझे पाना चाहे।
मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा,
यह मुसाफिर तो कोई ठिकाना चाहे।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक कुमार विश्वास जी द्वारा बताया जा रहा है कि कैसे एक प्रेमी अपने साथी के प्रति अपनी भावनाओं को प्रकट करता है।कवि द्वारा कहा जा रहा है कि वह एक मुसाफिर है और उन्हें अपने साथी के साथ मंजिल का सफर तय करना है। जिस तरह उन्हें सारा जमाना चाहता है वह केवल अपने प्रेमी की चाहत चाहते हैं।
3- कुमार विश्वास की कविताएं: अंजान
जिस्म का आखिरी मेहमान बना बैठा हूं,
एक उम्मीद का उन्वान बना बैठा हूं।
वह कहां है यह हवाओं को भी मालूम है,
एक बस में हूं जो अनजान बना बैठा हू।
व्याख्या
कविता के माध्यम से लेखक कुमार विश्वास जी द्वारा बताया जा रहा है कि एक मनुष्य किस तरह अपनों से उम्मीद की एक किरण जगाए अपनों का इंतजार करता है। कवि कह रहा है कि वह अपनों के लिए अंजान बने बैठे हैं लेकिन उन्होंने अपने दिल से अपनों को दूर नहीं दिया और उनके चिंता उन्हें हर वक्त रहती है।
4- कोई दीवाना कहता है
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है,
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है।
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है,
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है।
मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है,
कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है।
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं,
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है।
समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता,
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता।
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले,
जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता।
व्याख्या
यह कविता लेखक कुमार विश्वास जी की सबसे प्रसिद्ध कविता है। इस कविता के बोल आज के बच्चे बच्चे को भी बहुत अच्छे तरीके से याद हैं। इस कविता के माध्यम से कवि कह रहा है कि संसार के लोग एक प्रेमी को पागल या दीवाना समझते हैं। जिस तरह धरती की बेचैनी बादल समझ सकता है उसी तरह दो प्यार करने वालों का दर्द केवल वही इंसान समझ सकता है जिसके दिल में प्रेम की भावनाएं होती हैं। दो लोग एक दूसरे से दूर होकर अपना दर्द स्वयं ही समझ सकते हैं। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि जब दो लोग आपस में मिल नहीं सकते तो उस रिश्ता को वही रूप देना चाहिए क्योंकि इस तरह सिर्फ दर्द ओरआसू ही मिलेंगे और कुछ नही।
5- भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा।
अभी तक डूबकर सुनते थे सब किस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा।
कभी कोई जो खुलकर हंस लिया दो पल तो हंगामा
कोई ख़्वाबों में आकर बस लिया दो पल तो हंगामा।
मैं उससे दूर था तो शोर था साजिश है , साजिश है
उसे बाहों में खुलकर कस लिया दो पल तो हंगामा।
जब आता है जीवन में खयालातों का हंगामा
ये जज्बातों, मुलाकातों हंसी रातों का हंगामा।
जवानी के क़यामत दौर में यह सोचते हैं सब
ये हंगामे की रातें हैं या है रातों का हंगामा।
कलम को खून में खुद के डुबोता हूँ तो हंगामा
गिरेबां अपना आंसू में भिगोता हूँ तो हंगामा।
नही मुझ पर भी जो खुद की खबर वो है जमाने पर
मैं हंसता हूँ तो हंगामा, मैं रोता हूँ तो हंगामा।
इबारत से गुनाहों तक की मंजिल में है हंगामा
ज़रा-सी पी के आये बस तो महफ़िल में है हंगामा।
कभी बचपन, जवानी और बुढापे में है हंगामा
जेहन में है कभी तो फिर कभी दिल में है हंगामा।
हुए पैदा तो धरती पर हुआ आबाद हंगामा
जवानी को हमारी कर गया बर्बाद हंगामा।
हमारे भाल पर तकदीर ने ये लिख दिया जैसे
हमारे सामने है और हमारे बाद हंगामा।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक कुमार विश्वास जी द्वारा कहा जा रहा है कि दुनिया के लोग तो हर मुद्दे पर हंगामा खड़ा करना बड़ा अच्छा लगता है। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि लोग तो ब्राह्मण के कुमुदनी पर बैठने पर भी हंगामा कर देते हैं और अगर मन में कोई इच्छा उत्पन्न होती है उस पर भी हंगामा करते हैं। दूसरों के किस्से सुनने में लोगों को बड़ा मजा आता है और जब बात उसको हकीकत मैं बदलने की आती है तो लोग हंगामा खड़ा कर देते हैं। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि आपको अपनी तकदीर खुद लिखनी है ना कि दूसरों को। लोग क्या कहते हैं लोग करते हैं आप कौन से फर्क नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि वह कुछ दिन बोलेंगे आप पर उंगली उठाएंगे और मजे लेकर चले जाएंगे। जिंदगी आपकी है सवारना आपको है और बर्बाद करना भी आपके हाथ में है। लोगों की बातें सुनकर अपने कदम पीछे हटाए या फिर लोगों को नजरअंदाज कर अपनी मंजिल का सफर तय करें।
6- बाँसुरी चली आओ
तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा।
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है।
रात की उदासी को याद संग खेला है
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है।
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।
तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से।
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है।
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक कुमार विश्वास जी द्वारा कहा जा रहा है कि जिस तरह भगवान कृष्ण की बांसुरी बजाने पर राधा उनका साथ देने चली आती थी उसी तरह कवि भी अपने साथी (बसुरी)से कह रहा है कि अगर तुम नहीं आई तो मैं गीत नहीं गाऊंगा। बजते हुए अगर सांस साथ छोड़ देती है तो मैं सुर नहीं सजा पाऊंगा। तान की भावना से शब्द के दर्पण से कभी बांसुरी बजाने की इच्छा मन में लिए साथ की कामना कर रहा है। कवि कह रहा है कि जिस तरह राधा-कृष्ण से दूर है उसी तरह मेरे हाथ की हर लकीर तुम बिन अधूरी है। जिस तरह प्यासे को पानी की, भूखे को खाने की, दिमाग को दवाई की जरूरत होती है उसी तरह एक संगीतकार को बांसुरी के साज की जरूरत है।
7- कुमार विश्वास की कविताएं: आना तुम
आना तुम मेरे घर
अधरों पर हास लिये।
तन-मन की धरती पर
झर-झर-झर-झर-झरना
साँसों मे प्रश्नों का आकुल आकाश लिये।
तुमको पथ में कुछ मर्यादाएँ रोकेंगी
जानी-अनजानी सौ बाधाएँ रोकेंगी
लेकिन तुम चन्दन सी, सुरभित कस्तूरी सी
पावस की रिमझिम सी, मादक मजबूरी सी
सारी बाधाएँ तज, बल खाती नदिया बन
मेरे तट आना।
एक भीगा उल्लास लिये
आना तुम मेरे घर
अधरों पर हास लिये।
जब तुम आओगी तो घर आँगन नाचेगा
अनुबन्धित तन होगा लेकिन मन नाचेगा
माँ के आशीषों-सी, भाभी की बिंदिया-सी
बापू के चरणों-सी, बहना की निंदिया-सी
कोमल-कोमल, श्यामल-श्यामल, अरूणिम-अरुणिम
पायल की ध्वनियों में
गुंजित मधुमास लिये
आना तुम मेरे घर
अधरों पर हास लिये
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक कुमार विश्वास जी द्वारा कहा जा रहा है कि अंधेरों में रोशनी लिए एक दिन तुम मेरे घर आना। निश्चित ही रास्ते में तुम्हें कई विपत्तियों का सामना करना पड़ेगा लेकिन उनको पार करते हुए तुम्हें मेरे घर अवश्य ही आना होगा। कवि अपनी भावनाओं को प्रकट करते हुए और अपनी खुशी का इजहार करते हुए कह रहा है कि जब तुम मेरे घर आओगे तो मेरे घर का आंगन जगमगा उठेगा और मेरा परिवार हर्ष और उत्साह के साथ खुशी-खुशी तुम्हारा स्वागत और सत्कार करने में लग जाएगा।
8- उनकी ख़ैरो-ख़बर नही मिलती
उनकी ख़ैरो-ख़बर नही मिलती
हमको ही खासकर नही मिलती
शायरी को नज़र नही मिलती
मुझको तू ही अगर नही मिलती।
रूह मे, दिल में, जिस्म में, दुनिया
ढूंढता हूँ मगर नही मिलती
लोग कहते हैं रुह बिकती है
मै जिधर हूँ उधर नही मिलती।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक कुमार विश्वास जी द्वारा बताया जा रहा है कि जब दो लोग एक दूसरे से अलग होकर रास्ते में नहीं होते तो उन्हें एक दूसरे की हर खबर नहीं मिलती। बारा कहा जा रहा है कि वह अपने साथी को रूम में अपने दिल में अपनी दुनिया में हर जगह ढूंढते हैं लेकिन उन्हें उसकी खेरो खबर कहीं से नहीं मिलती।
9- नयन हमारे सीख रहे हैं हँसना झूठी बातों पर
सूरज पर प्रतिबंध अनेकों
और भरोसा रातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं
हँसना झूठी बातों पर
हमने जीवन की चौसर पर
दाँव लगाए आँसू वाले
कुछ लोगों ने हर पल, हर दिन
मौके देखे बदले पाले
हम शंकित सच पा अपने,
वे मुग्ध स्वयं की घातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं
हँसना झूठी बातों पर
हम तक आकर लौट गई हैं
मौसम की बेशर्म कृपाएँ
हमने सेहरे के संग बाँधी
अपनी सब मासूम खताएँ
हमने कभी न रखा स्वयं को
अवसर के अनुपातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं
हँसना झूठी बातों पर
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक और विश्वास जी द्वारा कहा जा रहा है कि आज के समय में लोग झूठी बातों पर भी हंसने लगते हैं। इस संसार के लोग ही ऐसे हैं कि दिल में बदले की भावना लेकर दूसरों से इस तरह मिलते हैं जैसे उनसे ज्यादा सगा कोई नहीं। लोग अपनी झूठी बातों और कृपाओ से ऐसे दिखाते हैं कि वह हमारे लिए अपनी जान भी दे सकते हैं लेकिन वक्त आने पर ऐसे ही लोग पीठ पीछे छूरा घोंपने जैसा कार्य करते हैं। हमने तो लोगों के रवैया समझ कर उनकी झूठी बातें और झूठी परवाह पर सीख लिया है हंसना सीख लिया। यह तो वक्त आने पर पता चल जाता है कि कौन आपका सगा है और कौन दुश्मन।
10- कुमार विश्वास की कविताएं: मै तुम्हे अधिकार दूँगा
मैं तुम्हें अधिकार दूँगा
एक अनसूंघे सुमन की गन्ध सा
मैं अपरिमित प्यार दूँगा
मैं तुम्हें अधिकार दूँगा।
सत्य मेरे जानने का
गीत अपने मानने का
कुछ सजल भ्रम पालने का
मैं सबल आधार दूँगा
मैं तुम्हे अधिकार दूँगा।
ईश को देती चुनौती,
वारती शत-स्वर्ण मोती
अर्चना की शुभ्र ज्योति
मैं तुम्हीं पर वार दूँगा
मैं तुम्हें अधिकार दूँगा।
तुम कि ज्यों भागीरथी जल
सार जीवन का कोई पल
क्षीर सागर का कमल दल
क्या अनघ उपहार दूँगा
मै तुम्हें अधिकार दूँगा।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक कुमार विश्वास जी द्वारा कहा जा रहा है कि हर व्यक्ति को अपने जीवन में कुछ ऐसे अधिकार देनी चाहिए जिन पर उसके स्वयं का निर्णय हो। कई बार आप दूसरों पर अपना हक जता कर उन पर कुछ फैसले थोप देते हैं जोकि जो कि गलत है। हर व्यक्ति की अपनी जिंदगी है और आज के समय में सभी अपनी मंजिल को पाने के लिए अपने अधिकार का उपयोग कर सही निर्णय ले सकते हैं।
हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारी दिलचस्प कविताएं अवश्य ही पसंद आई होंगी आगे भी हम आपके लिए इसी तरह प्रसिद्ध लेखकों की उत्साह से भरपूर कविताएं लिखते रहेंगे। आप भी इसी तरह हमारी कविताएं हमारे पोस्ट के माध्यम से ऐसे ही पढ़ते रहे और अपना प्यार बनाए रखें।