Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi: हरिवंश राय बच्चन 20वी सदी के बहुत ही महान और प्रसिद्ध कवियों में से एक थे। हिंदी भाषा के इस महान कवि का जन्म 27 नवंबर 1907 को यूपी के प्रतापगढ़ के एक छोटे से गांव में हुआ था। यह हिंदी छायावाद के महान लेखक,कवि और साहित्यकार थे। हरिवंश जी को बचपन से ही लिखने का शोक था और इसी के साथ साथ उन्होंने उर्दू की शिक्षा भी ली थी जो उनके खानदान की परंपरा थी। हरिवंश जी ने कई फारसी की कविता का हिंदी अनुवाद किया था जिससे वो प्रोत्साहित हुए थे। हरिवंश राय बच्चन की कविताएं बहुत अलग-अलग भावनाओं पर लिखी हुई हैं।
सबसे ज्यादा हरिवंश जी अपनी कविता मधुशाला के लिए प्रसिद्ध है। इस महान हिंदी कवि को कई सारे अवॉर्ड्स से भी सम्मानित किया गया जैसे 1968 में “दो चट्टानें” कविता के लिए भारत सरकार द्वारा “साहित्य अकादमी” उसके बाद उन्हें “सोवियत लैंड नेहरू” पुरुस्कार और एफ्रो एशियाई सम्मेलन का “कमल” पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। 1976 में उनके हिंदी भाषा के विकास में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए अभूतपूर्व योगदान के लिए “पद्म भूषण” भी दिया गया। हरिवंश राय बच्चन जी ने 18 जनवरी वर्ष 2003 में अपनी अंतिम सांस ली और दुनिया को अलविदा कहा। आइए देखते हैं Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi।
1- Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi: जिंदगी
रब नवाजा हमें जिंदगी देकर,
और हम शौहरत मांगते रह गए,
जिंदगी गुजार दी शौहरत के पीछे
फिर जीने की मोहलत मांगते रह गए।
यह कफन, यह जनाजे, यह कब्र
सिर्फ बातें हैं मेरे दोस्त,
वरना मर तो इंसान तभी जाता है,
जब याद करने वाला कोई ना हो।
यह समंदर भी तेरी तरह खुदगर्ज निकला,
जिंदा थे तो तैरने न दिया और,
मर गए तो डूबने ना दिया।
क्या बात करें इस दुनिया की,
हर शख्स के अपने फसाने हैं,
जो सामने उसे लोग बुरा कहते हैं,
जिसको देखा नहीं उसे सब “खुदा” कहता हूं।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक हरिवंश जी द्वारा बताया जा रहा है कि इंसान को जिंदगी में जितना भी मिलता है उसके बाद भी उसके पाने की चाहत कभी कम नहीं होती है। खुदा ने इतनी खूबसूरत जिंदगी आता कि उसके बाद मनुष्य शोहरत, दौलत और कामयाबी के पीछे भागता है। जब एक उम्र सफलता के पीछे गुजार दी तो खुदा से जीने की मोहलत मांगते रह गए है। हर शख्स अपनी दुनिया में जी रहा है और बाद में अपनों को दोष देता है की याद नहीं करता है। प्यारी बात किस कविता में कही गई है कि जिंदा थे तो समंदर ने तैयारनै ना दिया और मरने के बाद डूबने ना दिया।
2- हार जीत (लेखक – हरिवंश राय बच्चन)
हारना तब आवश्यक हो जाता है,
जब लड़ाई “अपनों” से हो।
और जीतना तक आवश्यक हो जाता है,
जब लड़ाई अपने आप से हो।
मंजिल मिले यह तो मुकद्दर की बात है,
हम कोशिश भी ना करें यह तो गलत बात है।
किसी ने बर्फ से पूछा ,
इतने ठंडे क्यों हो ?
बर्फ ने बड़ा अच्छा जवाब दिया :
मेरा अतीत भी पानी,
और मेरा भविष्य में पानी
फिर गर्मी किस बात पर रखूं।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से कवि हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा बताया जा रहा है कि सफलता पाने के लिए अगर आप की लड़ाई खुद से है तो आपको हर परिस्थिति का सामना करते हुए जीत हासिल करनी होगी और अगर आप की लड़ाई अपनों से है तो वहां आपका हारना आवश्यक हो जाता है। अगर आप के नसीब में सफलता है तो आप को कोई रोक नहीं सकता लेकिन अगर आप बिना कोशिश किए पहले ही हार मान लेते हैं तो यह सही बात नहीं है। आपका अतीत चाहे कुछ भी हो लेकिन आपको अपना भविष्य उससे बेहतर बनाना है और उसके लिए निरंतर अभ्यास करते रहना है।
3- कोशिश वालों की कभी हार नहीं होती (लेखक – हरिवंश राय बच्चन)
लहरों से डरकर नौका,
पार नहीं होती।
कोशिश करने वालों की,
कभी हार नहीं होती।
नन्ही चींटी जब,
दाना लेकर चढ़ती है,
चढ़ती दीवारों पर,
सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास,
रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना गिरकर चढ़ना,
ना अखरता है।
मेहनत उसकी बेकार,
नहीं हर बार होती,
कोशिश करने वालों की,
हार नहीं होती।
व्याख्या
इस कविता में लेखक हरिवंश राय बच्चन द्वारा बताया जा रहा है कि विपदाओं से डर कर कभी भी जिंदगी की नौका पार नहीं होती। परिस्थितियों से डरकर कभी भी कोशिश करनी नहीं छोड़नी चाहिए। मन में विश्वास और मंजिल पाने की इच्छा हो तो मेहनत करके जिंदगी की आई को आसानी से जीता जा सकता है। जैसे कि एक चींटी जब दाना लेकर पहाड़ पर चढ़ती है तो एक नहीं दो नहीं बल्कि कई बार फिसलती है लेकिन अपनी मेहनत करना नहीं छोड़ती लगातार अभ्यास करती है और उसमें सफल भी होते हैं इसी तरह हमें भी लगातार अभ्यास करते रहना चाहिए।
4- Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi: चुनाव
चुनाव नजदीक सुनो भई साधो,
नेता मांगे भी सुनो भई साधो।
गंगाजल का पात्र आज सिर धरे,
कल थूकेंगे पीक सुनो भई साधो।
निकल ना जाए सांप, तान लो लाठी,
फिर पिटोगे लीक सुनो भई साधो।
खद्दरधारी हिरण बड़े मायावी,
झूठी इनकी चीख सुनो भई साधो।
करतूतों की पोल चौक में खोलो,
लोकतंत्र की सीख सुनो भई साधो।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से कवि हरिवंश राय जी द्वारा चुनाव प्रचार के समय नेताओं के झूठे वादों के बारे में बड़े अच्छे से वर्णन किया गया है। आप सभी लोग जानते हैं कि चुनाव के समय नेताओं के बड़े-बड़े वादे और जीत के बाद उन वादों को भूल जाना आम बात है। बहुत सारे नेता आए और गए और सरकारें भी चलाएं लेकिन आज तक कोई भी अपने वादों पर खरा नहीं उतरा, कुछ इसी तरह इस कविता में भी नेताओं की प्रशंसा की जा रही है।
5-अग्निपथ (लेखक – हरिवंश राय बच्चन)
वृक्ष हों भले खड़े,
हो घने हो बड़े,
एक पत्र छाव भी ,
मांग मत, मांग मत,मांग मत
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।
तू ना थकेगा कभी,
तू ना रुकेगा कभी,
तू ना मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ
अग्निपथ, अग्निपथ,अग्निपथ।
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ, लथपथ, लथपथ
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।
व्याख्या
हरिवंश राय बच्चन जी की यह कविता बहुत ही प्रसिद्ध और पसंदीदा कविताओं में से एक है। इस कविता के माध्यम से कवि द्वारा कभी ना थकने, कभी ना रुकने और कभी ना पीछे मुड़ने का संदेश दिया जा रहा है। जिस तरह एक वृक्ष धूप, छांव और तूफान में सीधा खड़ा रहता है, लोगों को छाव देता है लेकिन फल देना नहीं छोड़ता उसी तरह हमें भी अपने जीवन में बिना रुके आगे बढ़ते रहना चाहिए।
6- बीत गई सो बात गई (लेखक – हरिवंश राय बच्चन)
जो बीत गई सो बात गई।
जीवन में एक सितारा था,
माना वह बेहद प्यारा था ,
वह डूब गया तो डूब गया।
अंबर के आनन को देखो,
कितने इसके तारे टूटे,
कितने इसके प्यारे छूटे,
जो छूट गए फ़िर कहां मिले,
पर बोलो टूटे तारों पर,
कब अंबर शोक मनाता है,
जो बीत गई सो बात गई।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से कवि द्वारा बताया जा रहा है कि बीते हुए वक्त को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए। हो सकता है बीते हुए वक्त में बहुत सारा अच्छा वक्त और बुरा वक्त गुजरा हो, लेकिन बुरे वक्त को याद करके आगे बढ़ना ठीक बात नहीं। बीते हुए वक्त में अपनों का साथ भी छूटता है। कौन अपना है और कौन पराया वह भी पता चलता है लेकिन उन यादों का शोक नहीं मनाना क्योंकि उन्हें याद करके सिर्फ दुख और तकलीफ ही मिलती है।
7- कदम मिलाकर चलना होगा (लेखक – हरिवंश राय बच्चन)
बाधाएं आती हैं आएं,
घिरे प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं,
निज हाथों से हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्य बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा।
उजाले में, अंधकार में,
कल कछार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को दलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा।
सम्मुख फैला अमर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अथ,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफ़ल, सफ़ल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा।
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
पर-हित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा।
व्याख्या
इस के माध्यम से महान कवि हरिवंश जी द्वारा बताया जा रहा है कि आगे बढ़ने के लिए कदम मिलाकर चलना होगा चाहे कितने ही घने बादल हो पांव के नीचे गर्म अंगारे और सर पर कितना ही बोल क्यों ना हो लेकिन हमें हंसते-हंसते अपने जीवन में आगे बढ़ते रहना चाहिए। जीवन के पड़ाव में अपमान हो सम्मान हो, सफलता और असफलता हो या फिर उजाला हो या अंधकार लेकिन हमें अपने मन में संपूर्ण विश्वास के साथ अपना सर उठा कर कदम से कदम मिलाकर निरंतर आगे बढ़ना होगा।
हर किसी की जिंदगी में उतार-चढ़ाव सुख दुख तरक्की ना कामयाबी हर तरह का पड़ाव आता है लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको उन चुनौतियों का सामना डटकर निडरता के साथ करना है और अपने कदमों को लड़खड़ाने नहीं देना है बल्कि कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ना है। आपको एक मजबूत चट्टान की तरह खड़े रहना है और भविष्य में चट्टान बनकर ही निकलना है ताकि कोई भी आपको कभी चोट न पहुंचा पाए।
8- Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi: कोशिश कर हल निकलेगा
कोशिश कर, हल निकलेगा,
आज नहीं तो, कल निकलेगा।
अर्जुन के तीर सा सध,
मरूस्थल से भी जल निकलेगा।
मेहनत कर, पौधों को पानी दे,
बंजर जमीन से भी फल निकलेगा।
ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे,
फ़ौलाद का भी बल निकलेगा।
जिंदा रख, दिल में उम्मीदों को,
गरल के समंदर से भी गंगाजल निकलेगा।
कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की,
जो है आज थमा-थमा सा, चल निकलेगा।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से कवि द्वारा बताया जा रहा है कि यदि कोई परेशानी आने पर कोशिश करने से ही उसका हल निकलता है। हाथ पर हाथ रखकर बैठने से किसी परेशानी का हल नहीं निकलता। यदि एक बार आपने अपने मन में ठान लिया तो आप बहुत कुछ कर सकते हैं चाहे घर से गंगाजल निकालना हो या फिर बंजर जमीन से फल पैदा करना ही क्यों न हों। जब आप अपने मन में कुछ करने की सोच लेते हैं तो आपका मस्तिष्क उसका रास्ता ढूंढने में लग पड़ता है। जिसके बाद अवश्य ही आपको अपनी मंजिल का रास्ता मिलने लगता है।
9- नफरतों का असर (लेखक – हरिवंश राय बच्चन)
नफरतों का असर देखो,
जानवरों का बंटवारा हो गया,
गाय हिंदू हो गई,
और बकरा मुसलमान हो गया ।
मंदिरों में हिंदू देखे,
मस्जिदों में मुसलमान,
शाम को जब मयखाने गया तब जाकर दिखे इंसान।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से कभी द्वारा बताया जा रहा है कि किस तरह से इंसान ने दुनिया ने रहने वाले लोगों को अलग-अलग धर्मों में बाट दिया। ऊपर वाले ने तो केवल एक खूबसूरत दुनिया बनाई थी और उसमें रहने वाले लोगों ने इंसान को ही हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई धर्मों में बाट दिया। इंसान लोगों ने तो जानवरों को भी धर्मों में बांट दिया गाय को हिंदू और बकरे को मुसलमान ही कर दिया।
10- गिरना भी अच्छा हैं (लेखक – हरिवंश राय बच्चन)
गिरना भी अच्छा है,
औकात का पता चलता है।
बढ़ते हैं जब हाथ उठाने को,
अपनों का पता चलता है।
जिन्हें गुस्सा आता है,
वह लोग सच्चे होते हैं।
मैंने झूठों को अक्सर,
मुस्कुराते हुए देखा है।
सीख रहा हूं अब मैं भी इंसानों को पढ़ने का हुनर,
सुना है चेहरे पर किताबों से ज्यादा लिखा होता है।
व्याख्या
इस हरिवंश राय बच्चन की कविताएं के माध्यम से लेखक हरिवंश जी द्वारा बताया जा रहा है कि सुख में तो हर कोई साथ देता है लेकिन अपनों का असल पता तो तब चलता है जब इंसान लडखड़ाता है या फिर गिरता है। यदि अगर आपका समय अच्छा है और आप सफलता की सीढ़ियों पर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं तो जो आपको नहीं भी जानते होंगे वह भी आपका साथ देने चले आते हैं। लेकिन कौन आपका अपना है और कौन पराया है वह उसके विपरीत समय में पता चलता है।
11- Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi: आज मुझसे दूर दुनिया
आज मुझसे दूर दुनिया,
भावनाओं से विनिर्मित,
कल्पनाओं से सुसज्जित,
कर चुकी मेरे हृदय का स्वप्न चकनाचूर दुनिया।
आज मुझसे दूर दुनिया,
‘बात पिछली भूल जाओ,
दूसरी नगरी बसाओ’
प्रेमियों के प्रति रही है, हाय, कितनी क्रूर दुनिया।
आज मुझसे दूर दुनिया,
वह समझ मुझको न पाती,
और मेरा दिल जलाती,
है चिता की राख कर मैं माँगती सिंदूर दुनिया।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा कहा जा रहा है कि पिछली बातों को भूल कर आगे बढ़ना ही जिंदगी का नाम है। पिछली बातों को याद करने से दुनिया में रहने वाले लोगों से दूरियां बढ़ती जाती हैं। कवि कह रहा है कि इस दुनिया के लोग आपकी भावनाओं को नहीं समझ सकते और ना ही आपके सपनों को पूरा कर सकते हैं।
12- न तुम सो रही हो, न मैं सो रहा हूँ (लेखक- हरिवंश राय बच्चन)
न तुम सो रही हो, न मैं सो रहा हूँ,
मगर यामिनी बीच में ढल रही है।
दिखाई पड़े पूर्व में जो सितारे,
वही आ गए ठीक ऊपर हमारे,
क्षितिज पश्चिमी है बुलाता उन्हें अब,
न रोके रुकेंगे हमारे-तुम्हारे।
न तुम सो रही हो, न मैं सो रहा हूँ,
मगर यामिनी बीच में ढल रही है।
उधर तुम, इधर मैं, खड़ी बीच दुनिया,
हरे राम! कितनी कड़ी बीच दुनिया,
किए पार मैंने सहज ही मरुस्थल,
सहज ही दिए चीर मैदान-जंगल,
मगर माप में चार बीते बमुश्किल,
यही एक मंज़िल मुझे ख़ल रही है।
न तुम सो रही हो, न मैं सो रहा हूँ,
मगर यामिनी बीच में ढल रही है।
नहीं आँख की राह रोकी किसी ने,
तुम्हें देखते रात आधी गई है,
ध्वनित कंठ में रागिनी अब नई है,
नहीं प्यार की आह रोकी किसी ने,
बढ़े दीप कब के, बुझे चाँद-तारे,
मगर आग मेरी अभी जल रही है।
न तुम सो रही हो, न मैं सो रहा हूँ,
मगर यामिनी बीच में ढल रही है।
मनाकर बहुत एक लट मैं तुम्हारी
लपेटे हुए पोर पर तर्जनी के
पड़ा हूँ, बहुत ख़ुश, कि इन भाँवरों में
मिले फ़ॉर्मूले मुझे ज़िंदगी के,
भँवर में पड़ा-सा हृदय घूमता है,
बदन पर लहर पर लहर चल रही है।
न तुम सो रही हो, न मैं सो रहा हूँ,
मगर यामिनी बीच में ढल रही है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा कहा जा रहा है कि ढलती रात में तुम सो रही थी और ना में। कवि कह रहा है कि जो सितारे हमें पूर्व में दिखाई दे रहे थे वही हमारे ऊपर आ गए। अपने सपनों को साकार करने के लिए अपना तुम्हें रुकना है और ना मुझे बस आगे बढ़ना है। सपनों को साकार करने के लिए नींद को त्यागना पड़ता है। मन में एक आग चलानी पड़ती है सफलता प्राप्त करने के लिए। मंजिल के रास्ते में जो भी काटे हैं आपके पैरों में चुभते हैं उन्हें निकालकर चेहरे पर मुस्कान सजाए आगे बढ़ना जरूरी है। यदि अगर आप एक बार रुक गए तो आपको पीछे खींचने के लिए हजारों हाथ आगे बढ़ पड़ेंगे। इस कविता के माध्यम से कवि कह रहा है कि मुझे सिर्फ और सिर्फ अपनी मंजिल दिख रही है और उसे पार करने के लिए रास्ता कितना ही कठिन क्यों ना हो उसे पाकर सिर्फ अपनी मंजिल को पाना है।
13- Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi: मुझे पुकार लो
ज़मीन है न बोलती
न आसमान बोलता,
जहान देखकर मुझे
नहीं ज़बान खोलता,
नहीं जगह कहीं जहाँ
न अजनबी गिना गया,
कहाँ-कहाँ न फिर चुका
दिमाग़-दिल टटोलता,
कहाँ मनुष्य है कि जो
उमीद छोड़कर जिया,
इसीलिए अड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा कहा जा रहा है कि जमी आसमा नहीं बोलते और ना ही मुझे देखकर यह जहान बोलता है लेकिन फिर भी मनुष्य कहां उम्मीद छोड़ता है। कवि कह रहा है कि मनुष्य अपनी जिद पर अड़ा हुआ है कि हे जिंदगी तुम मुझे एक बार पुकार लो।
14- साथी, सो न, कर कुछ बात
साथी, सो न, कर कुछ बात।
बोलते उडुगण परस्पर,
तरु दलों में मंद ‘मरमर’,
बात करतीं सरि-लहरियाँ कूल से जल-स्नात।
साथी, सो न, कर कुछ बात,
बात करते सो गया तू,
स्वप्न में फिर खो गया तू,
रह गया मैं और आधी बात, आधी रात।
साथी, सो न, कर कुछ बात,
पूर्ण कर दे वह कहानी,
जो शुरू की थी सुनानी,
आदि जिसका हर निशा में, अंत चिर अज्ञात।
साथी, सो न, कर कुछ बात
व्याख्या
इस के माध्यम से कवि अपने साथी से कह रहा है कि साथी सो ना कर कुछ बात। कवि अपने साथी से कह रहा है कि जो कहानी अधूरी रह गई है उसे पूरा करदो। एक साथी अपने सपनों में खोया हुआ है और दूसरा उसके मन की बात सुनना चाहता है। एक और मन में एक उमंग है और हृदय में कुछ लहरें उथल-पुथल मचा रही हैं वहीं दूसरी ओर एक साथी चैन की नींद सो रहा है।
15- Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi: आओ, हम पथ से हट जाएँ
आओ हम पथ से हट जाएँ,
युवती और युवक मदमाते
उत्सव आज मानने आते,
लिए नयन में स्वप्न, वचन में हर्ष, हृदय में अभिलाषाएँ।
आओ, हम पथ से हट जाएँ,
इनकी इन मधुमय घड़ियों में,
हास-लास की फुलझड़ियों में,
हम न अमंगल शब्द निकालें, हम न अमंगल अश्रु बहाएँ।
आओ, हम पथ से हट जाएँ।
यदि इनका सुख सपना टूटे,
काल इन्हें भी हम-सा लूटे,
धैर्य बँधाएँ इनके उर को हम पथिकों की किरण कथाएँ।
आओ, हम पथ से हट जाएँ
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा कहा जा रहा है कि यदि कोई मनुष्य अपनी आंखों में सपने लिए और हृदय में अभिलाषा लिए हुए आगे बढ़ रहा है तो उसके रास्ते से हट जाना चाहिए। उसकी इस खूबसूरत घड़ियों में हर्ष और उल्लास भरा हुआ है तो यह आपकी जिम्मेदारी है उसके रास्ते से हटकर उसे प्रोत्साहित करके और आगे बढ़ने की हिम्मत देनी चाहिए। उसका धैर्य बनाना चाहिए कि उसे सूर्य की किरणों में तपकर सूर्य की तरह चमकना है।
16- कवि की वासना
आज मिट्टी से घिरा हूँ
पर उमंगें हैं पुरानी,
सोमरस जो पी चुका है
आज उसके हाथ पानी,
होंठ प्यालों पर झुके तो
थे विवश इसके लिए वे,
प्यास का व्रत धार बैठा
आज है मन, किंतु मानी;
मैं नहीं हूँ देह-धर्मों से
बँधा, जग, जान ले तू,
तन विकृत हो जाए लेकिन
मन सदा अविकार मेरा!
कह रहा जग वासनामय
हो रहा उद्गार मेरा!
व्याख्या
कविता के माध्यम से लेखक हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा एक कवि की वासना को दर्शाया जा रहा है। कवि यह रहा है कि मिट्टी के दलदल में फंसने के बाद भी उमंगे पुराने हैं। कवि कह रहा है कि आज भी वह जब के बंधन में बंधा हुआ है इसलिए इस जग में वासना में उद्धार हो रहा है।
17- चल मरदाने, सीना ताने (लेखक – हरिवंश राय बच्चन)
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
एक हमारा देश, हमारा
वेश, हमारी कौम, हमारी
मंज़िल, हम किससे भयभीत ।
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
हम भारत की अमर जवानी,
सागर की लहरें लासानी,
गंग-जमुन के निर्मल पानी,
हिमगिरि की ऊंची पेशानी
सबके प्रेरक, रक्षक, मीत ।
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
जग के पथ पर जो न रुकेगा,
जो न झुकेगा, जो न मुडेगा,
उसका जीवन, उसकी जीत ।
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा कहा जा रहा है कि हे मनुष्य हाथ हिलाते कदम बढ़ाते हैं होठों पर मुस्कान सजाकर आगे बढ़ते जाना है। कवि कह रहा है कि एक देश है एक कौन है मनुष्य भी एक समान है तो हमें साथ मिलकर बिना डरे आगे बढ़ना है। कवि कह रहा है कि हम भारत की अमर जवान है, हम सागर की लहरों की तरह चट्टानों से टकराकर मजबूत बनना है। हिमालय की तरह ऊंचा बनना है। अपनी मंजिल को पाने के लिए बिना रुके, बिना डरे और साहस और वीरता के साथ आगे बढ़ना है।
18- Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi: साथी, सब कुछ सहना होगा
मानव पर जगती का शासन,
जगती पर संसृति का बंधन,
संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधों में रहना होगा।
साथी, सब कुछ सहना होगा!
हम क्या हैं जगती के संसार में!
जगती क्या, संसृति सागर में!
एक प्रबल धारा में हमको लघु तिनके-सा बहना होगा।
साथी, सब कुछ सहना होगा!
आओ, अपनी लघुता जानें,
अपनी निर्बलता पहचानें,
जैसे जग रहता आया है उसी तरह से रहना होगा,
साथी, सब कुछ सहना होगा।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा कहा जा रहा है कि संसार के जगत शासन में संस्कृति के बंधन में सब कुछ सहना होगा। कवि कह रहा है कि हमारे मन में जगी प्रबल धारा में खुद को तिनके की तरह ही बहाना होगा और सब कुछ सह कर आगे बढ़ना होगा। जिस तरह से जिस तरह से जग में चलता आ रहा है उसी तरह अपनी निर्मलता को पहचान कर सब कुछ सहना होगा।
19- था तुम्हें मैंने रुलाया
हा, तुम्हारी मृदुल इच्छा!
हाय, मेरी कटु अनिच्छा!
था बहुत माँगा ना तुमने किन्तु वह भी दे ना पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!
स्नेह का वह कण तरल था,
मधु न था, न सुधा-गरल था,
एक क्षण को भी, सरलते, क्यों समझ तुमको न पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!
बूँद कल की आज सागर,
सोचता हूँ बैठ तट पर –
क्यों अभी तक डूब इसमें कर न अपना अंत पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!हा, तुम्हारी मृदुल इच्छा!
हाय, मेरी कटु अनिच्छा!
था बहुत माँगा ना तुमने किन्तु वह भी दे ना पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा कहा जा रहा है कि एक प्रेमी अपने साथी के लिए अपनी भावनाओं को प्रकट कर रहा है। एक प्रेमी कह रहा है कि तुमने मुझसे बहुत कुछ नहीं मांगा था लेकिन जो भी मांगा था मैं तुम्हें वह भी नहीं दे पाया और तुम्हें मैंने बहुत रुलाया। मैं तुम्हारी भावनाओं को तुम्हारी सरलता को नहीं समझ पाया। तुम्हारी नादान इच्छाओं को मैं क्यों समझ नहीं पाया। मैं तुम्हारी भावनाओं के सागर में डूब कर भी तुम्हें समझ नहीं पाया और तुम्हें मैंने बहुत रुलाया।
20- Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi: दुखी मन से कुछ ना कहो
व्यर्थ उसे है ज्ञान सिखाना,
व्यर्थ उसे दर्शन समझाना,
उसके दुख से दुखी नहीं हो तो बस दूर रहो !
दुखी मन से कुछ भी न कहो !
उसके नयनों का जल खारा,
है गंगा की निर्मल धारा,
पावन कर देगी तन-मन को क्षण भर साथ बहो !
दुखी मन से कुछ भी न कहो !
देन बड़ी सबसे यह विधि की,
है समता इससे किस निधि की ?
दुखी दुखी को कहो, भूल कर उसे न दीन कहो ?
दुखी मन से कुछ भी न कहो !
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से कवि द्वारा कहा जा रहा है कि कभी भी दुखी मन से कुछ नहीं करना चाहिए। कवि कह रहा है कि अगर आपका मन ज्ञान सीखने और उसे दर्शाने का नहीं है तो अधूरे मन से कभी उस काम को नहीं करना चाहिए। कवि कह रहा है कि गंगा की निर्मल धाराओं के समान अपने मन को शुद्ध और साफ करके परिस्थितियों को पूरे मन के साथ सफल करना चाहिए। आधे अधूरे मन से हासिल किया गया ज्ञान हो या फिर कोई परीक्षा आप कभी उसमें सफल नहीं हो सकते।
21- ओ गगन के जगमगाते दीप
ओ गगन के जगमगाते दीप!
दीन जीवन के दुलारे
खो गये जो स्वप्न सारे,
ला सकोगे क्या उन्हें फिर खोज हृदय समीप?
ओ गगन के जगमगाते दीप!
यदि न मेरे स्वप्न पाते,
क्यों नहीं तुम खोज लाते
वह घड़ी चिर शान्ति दे जो पहुँच प्राण समीप?
ओ गगन के जगमगाते दीप!
यदि न वह भी मिल रही है,
है कठिन पाना-सही है,
नींद को ही क्यों न लाते खींच पलक समीप?
ओ गगन के जगमगाते दीप।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से कवि हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा कहा जा रहा है कि मनुष्य को अपना जीवन जगमगाते दीपो की तरह गुजरना चाहिए। भले ही आपके सपने आपसे पीछे छूट जाए लेकिन उनको अपने मन के नजदीक रख कर एक नई उम्मीद के साथ पूरा करने में लग जाओ। अपनी जिंदगी को बेहतरीन बनाने के लिए अगर नींद भी त्यागनी पढ़ जाएं तो खुशी खुशी त्याग देना चाहिए तभी आप आसमान के जगमगाते हुए सितारों बन पाओगे।
22- मैने गाकर दुख अपनाए
मैंने गाकर दुख अपनाए
कभी न मेरे मन को भाया,
जब दुख मेरे ऊपर आया,
मेरा दुख अपने ऊपर ले कोई मुझे बचाए!
मैंने गाकर दुख अपनाए!
कभी न मेरे मन को भाया,
जब-जब मुझको गया रुलाया,
कोई मेरी अश्रु धार में अपने अश्रु मिलाए!
मैंने गाकर दुख अपनाए!
पर न दबा यह इच्छा पाता,
मृत्यु-सेज पर कोई आता,
कहता सिर पर हाथ फिराता-
’ज्ञात मुझे है, दुख जीवन में तुमने बहुत उठाये!
मैंने गाकर दुख अपनाए।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से कवि हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा कहा जा रहा है कि जिंदगी में हार का स्वाद चखना भी जरूरी है भले ही आप के साथ आंसू बहाने वाला कोई ना हो लेकिन अपने दुख को खुद ही अपनाना पड़ता है। प्रत्येक मनुष्य जीवन में बहुत सारे दुख उठाता है और उन दुखों को सुख में बदलना है आपका सबसे बड़ा चैलेंज होता है। मनुष्य को हमेशा दुख में मुस्कुराते रहना चाहिए और कढ़ी विपत्तियों का सामना करना चाहिए।
23- दुखी मन से कुछ भी न करो
दुखी-मन से कुछ भी न कहो!
व्यर्थ उसे है ज्ञान सिखाना,
व्यर्थ उसे दर्शन समझाना,
उसके दुख से दुखी नहीं हो तो बस दूर रहो!
दुखी-मन से कुछ भी न कहो!
उसके नयनों का जल खारा,
है गंगा की निर्मल धारा,
पावन कर देगी तन-मन को क्षण भर साथ बहो!
दुखी-मन से कुछ भी न कहो!
देन बड़ी सबसे यह विधि की,
है समता इससे किस निधि की?
दुखी दुखी को कहो, भूल कर उसे न दीन कहो?
दुखी-मन से कुछ भी न कहो!
मैं जीवन में कुछ न कर सका!
जग में अँधियारा छाया था,
मैं ज्वाला लेकर आया था
मैंने जलकर दी आयु बिता, पर जगती का तु म हर न सका।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा कहा जा रहा है कि कभी भी मनुष्य को दुखी मन से कुछ भी नहीं करना चाहिए और ना ही किसी को कुछ सिखाना चाहिए। कवि द्वारा कहा जा रहा है दुखी व्यक्ति को कुछ सिखाना और समझाना समय की बर्बादी करना है। जब तक मनुष्य में कुछ सीखने की इच्छा ही नहीं होगी तो उसको उसको कुछ भी समझाना बारिश में दिया जलाना जैसा है। अगर आप किसी की जिंदगी को सितारों की तरह जगमग आना चाहते हो तो सबसे पहले उसमें इतनी ज्वाला भड़का दो कि वह अपने सपनों को साकार करने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाए।
24- मैं जीवन में कुछ भी न कर सका
मैं जीवन में कुछ न कर सका।
अपनी ही आग बुझा लेता,
तो जी को धैर्य बँधा देता,
मधु का सागर लहराता था, लघु प्याला भी मैं भर न सका!
मैं जीवन में कुछ न कर सका!
बीता अवसर क्या आएगा,
मन जीवन भर पछताएगा,
मरना तो होगा ही मुझको, जब मरना था तब मर न सका!
मैं जीवन में कुछ न कर सका।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि बहुत से मनुष्य ऐसे होते हैं कि वह अपने जीवन में कुछ नहीं करना चाहते क्योंकि उनके हृदय में कुछ करने की उम्मीद ही नहीं होती। लेकिन मनुष्य लेकिन मनुष्य यह क्यों भूल जाता है कि समय बीतने के बाद केवल पछतावा हाथ आता है इसीलिए बेहतर है कि जीवन में इतने कामयाब बनो के आप के काम से आपका नाम हो जाए ।
25- मैंने मान ली तब हार
मैंने मान ली तब हार।
पूर्ण कर विश्वास जिसपर,
हाथ मैं जिसका पकड़कर,
था चला, जब शत्रु बन बैठा हृदय का गीत,
मैंने मान ली तब हार!
विश्व ने बातें चतुर कर,
चित्त जब उसका लिया हर,
मैं रिझा जिसको न पाया गा सरल मधुगीत,
मैंने मान ली तब हार!
विश्व ने कंचन दिखाकर
कर लिया अधिकार उसपर,
मैं जिसे निज प्राण देकर भी न पाया जीत,
मैंने मान ली तब हार।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक हरिवंश राय बच्चन के द्वारा कहा जा रहा है कि कई बार हम जिन अपनों पर सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं वही अपने हमारा विश्वास तोड़ते हैं, जिसके बाद हम हार मान जाते हैं। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि जिस अपने का हाथ पकड़कर हम आगे बढ़ रहे थे कई बार वही लोग हमें धोखा दे जाते हैं। जिंदगी में एक बात हमेशा याद रखना अगर कामयाब होना है तो अकेले ही विपत्तियों का सामना करना और अकेले ही काटो भरे रास्ते पर चलना। किसी के साथ की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।
26- आज फिर से मुस्कुराने का मन किया (लेखक – हरिवंश राय बच्चन)
आज मेरा फिर से मुस्कुराने का मन किया,
माँ की ऊँगली पकड़कर घूमने जाने का मन किया।
उंगलियाँ पकड़कर माँ ने मेरी मुझे चलना सिखाया है,
खुद गीले में सोकर माँ ने मुझे सूखे बिस्तर पे सुलाया है।
माँ की गोद में सोने को फिर से जी चाहता है,
हाथो से माँ के खाना खाने का जी चाहता है।
लगाकर सीने से माँ ने मेरी मुझको दूध पिलाया है,
रोने और चिल्लाने पर बड़े प्यार से चुप कराया है।
मेरी तकलीफ में मुझ से ज्यादा मेरी माँ ही रोयी है,
खिला-पिला के मुझको माँ मेरी, कभी भूखे पेट भी सोयी है।
कभी खिलौनों से खिलाया है, कभी आँचल में छुपाया है,
गलतियाँ करने पर भी माँ ने मुझे हमेशा प्यार से समझाया है।
माँ के चरणो में मुझको जन्नत नजर आती है,
लेकिन माँ मेरी मुझको हमेशा अपने सीने से लगाती है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि हमारे जीवन में हमारी मां जन्नत है और उनके बारे में हम जितना भी कलम से कागज पर उतार सकते हैं वह कुछ भी नहीं। खुदा के बाद अगर कोई है तो वो मां है। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि जब भी आप जीवन में परेशान हो और आपको उत्साह और एनर्जी की आवश्यकता हो तो मां का प्यार भरा आंचल की छांव में जाकर बैठ जाओ। जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए खुद ब खुद रास्ते बन जाएंगे। छोटी-छोटी चीजें मां द्वारा की जाने वाली जैसे खाना खाना हो या सर पर हाथ फेरना हो या फिर मां के डाट हो सब बहुत सुंदर होता है।
27- तुम कब तक रोकोगे
पलक मे कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं,
दिल में है अरमान यही, कुछ कर जाओ – कुछ कर जाओ।
सूरज सा तेज नहीं मुझ में, दीपक सा जलता देखोगे,
अपना हद रोशन करने से, तुम मुझको कब तक रोकोगे
मैं इस माटी का वृक्ष नहीं, फिसलन नदियों ने सीचा है,
बंजर माटी में पलकर मेने, मृत्यु से जीवन खींच लिया है।
मैं पत्थर पर लिखा इबादत हूँ, सीसे कब तक तोड़ोगे,
मिटने वाले में नाम नहीं, तुम मुझको कब तक रोकोगे।
इस जाग में हर जुल्म नहीं, कई सहने की ताकतें हैं,
तानो के भी शोर में, सच कहने की आदत है।
मैं सागर से भी गहरा हूँ, तुम कितने कंकर फेकोगे,
चुन चुन कर आगे बढ़ूंगा मैं, तुम मुझको कब तक रोकोगे।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा कहा जा रहा है कि जीवन में यदि आपने चाह है सफलता प्राप्त करने की तो आपको कोई भी किसी कीमत पर नहीं रोक सकता। अगर आप में सूरज के सामान हृदय में तपन है और अपने सपनों को पूरा करने के लिए उम्मीद और आशाएं लगातार बनी हुई है आपको कोई भी नहीं रोक सकता। यदि आप काटो भरे रास्ते पर चलने के लिए तैयार हो तो आप जीवन में कुछ भी कर सकते हो। जिंदगी में कामयाब होने के लिए हमेशा छोटे कदमों से शुरूआत चाहिए। छोटे कदमों से की गई शुरुआत निश्चित ही एक दिन आपके लिए सफलता का मुकाम जल्द ही पाओगे।
28- इस पार या उस पार (लेखक – हरिवंश राय बच्चन)
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा!
यह चाँद उदित होकर नभ में
कुछ ताप मिटाता जीवन का,
लहरालहरा यह शाखाएँ
कुछ शोक भुला देती मन का,
कल मुर्झानेवाली कलियाँ
हँसकर कहती हैं मगन रहो,
बुलबुल तरु की फुनगी पर से
संदेश सुनाती यौवन का,
तुम देकर मदिरा के प्याले
मेरा मन बहला देती हो,
उस पार मुझे बहलाने का
उपचार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा कहा जा रहा है कि देगी कि दो ही पहलू होते हैं या तो इस बार या फिर उस पार जिसका मतलब सीधे शब्दों में कहें दो जिंदगी में मनुष्य को दो ही चीजों की प्राप्ति होती है सफलता और असफलता की। या तो आप अपने सपने पूरे करने के लिए दिन रात एक कर दो और सफलता प्राप्त कर लो या फिर केवल सपने ही देखते रहो और समय बर्बाद करते रहो। सफलता के रास्ते में आपको बहुत सारी विपत्तियां देखने को मिलते हैं उनकी विपत्तियों का सामना करके ही आप सफलता प्राप्त कर सकते हो। लेकिन अगर कभी कोई विपत्ति के कारण आप दुखी हो जाते हो तो एक बार अपने सपनों के बारे में सोचना और दोबारा उठना और उस रास्ते को दोबारा तय करना।
29- ऐसे मै मन बहलाता हूं
सोचा करता बैठ अकेले,
गत जीवन के सुख-दुख झेले,
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!
नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम,
उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!
आह निकल मुख से जाती है,
मानव की ही तो छाती है,
लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा कहा जा रहा है कि कई बार चलते चलते थक जाने पर मन को बहलाना भी जरूरी है। यदि आप चलते चलते थक जाए तो थोड़ी देर रखकर कुछ ऐसे काम करें जो करना आपको अच्छा लगता है ऐसा करने से आपको पॉजिटिव एनर्जी के साथ साथ आगे बढ़ने की हिम्मत और उत्साह भी मिलता है। जो व्यक्ति अपने दुख को छुपा कर अपना जीवन में आगे बढ़ता है सही मायने में उसे जिंदगी जीने का और सफलता प्राप्त करने का तरीका मालूम होता है।
30- स्वपन थे मेरे भयंकर
स्वप्न था मेरा भयंकर।
रात का-सा था अंधेरा,
बादलों का था न डेरा,
किन्तु फिर भी चन्द्र-तारों से हुआ था हीन अम्बर!
स्वप्न था मेरा भयंकर।
क्षीण सरिता बह रही थी,
कूल से यह कह रही थी-
शीघ्र ही मैं सूखने को, भेंट ले मुझको हृदय भर!
स्वप्न था मेरा भयंकर!
धार से कुछ फासले पर
सिर कफ़न की ओढ चादर
एक मुर्दा गा रहा था बैठकर जलती चिता पर!
स्वप्न था मेरा भयंकर।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि यदि आपके सपने बड़े होते हैं तो उनको पूरा करने के लिए भी उतनी ही मेहनत और कठिन परिश्रम करना होगा। चारों और चाहे कितने ही घने बादल और अंधेरा हो लेकिन आपको अपने कठिन परिश्रम और अपनी पॉजिटिविटी से उस अंधेरे को प्रकाश में बदलना होगा। आपके आसपास चाहे कुछ भी हो रहा हो आपको केवल अपने लक्ष्य पर अपनी नजर टिकाए रखनी है और उसी के रास्ते पर चलना है। जितने बड़े आपके सपने हैं उतना ही बड़ा आपका रास्ता होगा और उस रास्ते में आने वाली विपत्तियों का सामना भी आपको ही करना होगा।
31- आज मुझसे बोल बदल
आज मुझे बोल बादल
तुम भर तू तुम भर मैं
गम भरा तू गम भरा मैं
आज तू अपने हृदय से हृदय मेरा तोल बादल
आज मुझे बोल बादल।
आग तूझमें आग मुझ मैं
राग तुझ में राग मुझ मैं
ए मिले हम आज अपने द्वारा उड़ के खोल बादल आज मुझे बोल बादल।
भेद यह मत देख दो पल
क्षार जल मैं तू माधुरी जल
व्यर्थ मेरे आंसू तेरी बूंद अनमोल है बादल
आज मुझे बोल बादल।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि अपने जीवन में एक अकेला मनुष्य बादल से अपने दिल की बात कहते हुए अपने और बादल की दशा को सामान बता रहा है। जिस प्रकार एक मनुष्य के दिल में गुम भरा होता है उसी प्रकार बादल में भी गम भरा होता है। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि जीवन में एक अकेला मनुष्य अपने दिल की बात बदल से करते हुए कहता है कि अपने दिल के द्वार खोल और अपने हृदय को मेरे दिल से तोल जिस प्रकार एक आम इंसान के आंसू व्यर्थ हैं वही आसमान से गिरी बूंद बहुत अनमोल है। कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि जिस प्रकार बादल अपने प्रकाश से पूरी दुनिया को रोशन करता है उसी प्रकार आपको भी अपने साथ दिल से लोगों का स्वागत करना चाहिए।
32- शाहिद की मां
इसी घर से
एक दिन
शाहिद का जनाजा निकला था
तिरंगे में लिपटा
हजारों की भीड़ में।
कंधा देने की होड़ में
सैकड़ो के कुर्ते फटे थे
पट्ठे छिले थे।
भारत माता की जय
इंकलाब जिंदाबाद
अंग्रेजी सरकार मुर्दाबाद के नारों में
शहीद की मां का रोदन डूब गया था।
उसके आंसुओं की लड़ी
फूल, खिल, बताशों की झड़ी में
छीप गई थी
जनता चिल्लाई थी
तेरा नाम सोने के अक्षरों में लिखा जाएगा।
गली किसी गर्व से
दिप गई थी।
इसी घर से
3 बरस बाद
शाहिद की मां का जनाजा निकला है
तिरंगे में लिपटा नहीं
क्योंकि वह खास खास
लोगों के लिए विहित है
केवल चार कांधों पर
राम नाम सत्य है
गोपाल नाम सत्य है
के पुराने नारों पर
चर्चा है बुढ़िया बेसहारा थी
जीवन के कष्टों से मुक्त हुई
गली किसी राहत से
छुई छुई।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि जब देश का बहादुर नौजवान सैनिक शहीद होता है तब उसका जनाजा तिरंगे में लिपटा हुआ हजारों की भीड़ में उसके घर से होता हुआ निकलता है। जहा शाहिद को कंधा देने के लिए लोगों के कपड़े फट जाते हैं और चोटे अलग लगती हैं वहीं दूसरी और इंकलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय के नारे इतनी तेज जोर-जोर से लगते हैं कि उसकी मां की रोने की आवाज भी दब जाती है और आंसू कहीं छुप जाते हैं। लोग कहते हैं कि इस बहादुर शहीद का नाम सोने के अक्षरों में लिखवाया जाएगा।
वहीं दूसरी और जब उसे शाहिद की मां का जनाजा कुछ समय बाद निकलता है तब लोग ना तो कंधा देने की होड़ लगाते हैं और ना ही इंकलाब जिंदाबाद और भारत माता के नारे लगाते हैं। लोग यह कहते हुए निकलते हैं कि बेसहारा बुढ़िया कष्टों से मुक्त हो गई। कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि किस तरह लोग अपने रंग गिरगिट की तरह बदलते हैं जहां नाम होता है वहां जोर-जोर से आगे बढ़ जाते हैं और ऐसे लोगों की सहायता की आवश्यकता होती है वहां यह लोग नौ दो ग्यारह हो जाते हैं।
33- बैठ जाता है मिट्टी पे अक्सर
बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है।
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना।
ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है
पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है।
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्योंकि
एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले।
एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली
वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे।
सोचा था घर बना कर बैठूँगा सुकून से,
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला।
सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब
बचपन वाला ‘इतवार’ अब नहीं आता ।
शौक तो माँ-बाप के पैसों से पूरे होते हैं
अपने पैसों से तो बस ज़रूरतें ही पूरी हो पाती हैं।
जीवन की भाग-दौड़ में।
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ?
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है।
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम,
और;
आज कई बार बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है
कितने दूर निकल गए,
रिश्तों को निभाते निभाते,
खुद को खो दिया हमने,
अपनों को पाते पाते।
लोग कहते है हम मुस्कुराते बहुत हैं
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते।
खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ
लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह करता हूँ।
मालूम है कोई मोल नहीं मेरा,
फिर भी, कुछ अनमोल लोगों से
रिश्ता रखता हूँ।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि जिन लोगों को अपनी औकात का पता होता है वह कभी भी मिट्टी पर अक्सर बैठने से परहेज नहीं करते हैं। इंसान अपने जीवन में चाहे कितना ही बड़ा क्यों ना हो जाए लेकिन उसे कभी भी अपनी हैसियत और पुराना वक्त नहीं भूलना चाहिए। जीने का अगर सही तरीका किसी से सीखना है तो समंदर से सीखिए के वह चुपचाप बहता है और अपनी लहरों में मौज करता है। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि हम सब में बहुत सारी कमियां होती हैं लेकिन कमियां होना कोई बुरी बात नहीं बल्कि आप में अगर छलफरेबी है तो यकीनन आपके लिए सही नहीं। जो लोग जीवन को सही तरीके से जीना जानते हैं वह कभी भी समय के साथ अपने वक्त दोस्त नहीं बदलते हैं।
कुछ लोगों का सपना होता है कि अपना घर बनाकर सुकून से रहने का लेकिन कई बार घर की जिम्मेदारियां उन्हें मुसाफिर बना देती हैं। ऐसे लोग बहुत कम होते हैं दुनिया में जो अपनी जिम्मेदारियां को बखूबी निभाते हैं। सही कहां है गालिब ने की कभी भी बड़े होने के बाद बचपन वाला छुट्टी का इतवार नहीं आता। कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि यदि आपको अपना जीवन सफल और खुशहाल जीना है तो अपने जिम्मेदारियां के साथ-साथ कुछ वक्त अपने पर्सनल लाइफ को भी दीजिए और किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए किसी का साथ या पीछे हटने की जरूरत नहीं बल्कि आप अकेले ही काफी होने चाहिए।
हिंदी कविताएं एक बहुत ही महत्वपूर्ण माध्यम है जिसके द्वारा हिंदी साहित्य काफी आगे बढ़ा। यह थी कुछ हिंदी कविताएं जो कि हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा लिखी गई थी। This was all about the Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi!