Balamani Amma ki Kavitaye in Hindi: आज हम आपको अपने इस आर्टिकल के माध्यम से बहुत ही मशहूर कवित्री बालमणि अम्मा की कुछ मशहूर कविताएं लेकर आए हैं। इस मशहूर कवित्री का पूरा नाम नालापथ बालमणि अम्मा है। इनका जन्म 19 जुलाई 1909 में केरल के मालाबार जिले में हुआ था। यह मलयालम भाषा की उच्च दर्जे के लेखक मानी जाती हैं मलयालम भाषा में इन्होंने लगभग 500 से भी ज्यादा कविताएं लिखी हैं और लोगों के दिल पर एक अलग ही छाप छोड़ी है। देशभक्ति, गांधी का प्रभाव और स्वतंत्रता की चाह का भाव इनकी कविताओं में झलकता है। इन्हे बचपन से ही कविताएं लिखने का शौक था और बहुत सारी कविताएं इन्होंने अपने बचपन में ही लिखी थी जो इनके विवाह के बाद प्रकाशित की गई थी। अपनी कविताओं के लिए बालमणि अम्मा को बहुत सारे अवॉर्ड्स से भी सम्मानित किया गया जैसे पद्म विभूषण, वल्लथोल अवॉर्ड्स, केरल साहित्य अकैडमी पुरस्कार, ललिथंबिका अंतराजम अवॉर्ड्स और सरस्वती सम्मान आदि। कुटुम्बनी, कुलकाकद, अमृतमगामाया, इनकी प्रसिद्ध कविताओं में से एक हैं। अगर आप भी इस मशहूर कवित्री की कविताओं को पढ़ना चाहते हैं तो हमारे साथ अंत तक अवश्य बने रहे। Read the latest Balamani Amma ki Kavitaye in Hindi here:
1- रोग (लेखक-बालमणि अम्मा)
“थोड़ा-सा आराम कर लो,” खुरदरे पलंग पर,
फैलते हुए बीमारी ने पुकारा।
बीमारी से कमज़ोर शरीर के लिए,
बिस्तर पर पड़े रहने से ज़्यादा क्या सुख?
प्रतिस्पर्द्धा के खेल में थके पाँव,
बिना थकावट के बढ़े आशा की ओर,
अपने लगाए फले-फूलों वृक्षों को याद कर
आँगन में रुकना मत,
या उस बरामदे में जहाँ पंचेन्द्रियों से बने,
भविष्य के खिलौने बिखरे पड़े हैं।
एकांत शांति में धूसर हवाओं से,
अप्रभावित घी-बाती जलती है जिस कोठरी में,
सच्चिदानंद का आस्वादन ले लो,
निश्चल निर्व्यग्र लेट लो थोड़ी देर को,
उपयुक्त भोजन से देखभाल न की गई तो,
रोग से तन और मन बिगड़ जायेगा।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से कवित्री बालमणी अम्मा जी द्वारा कि बताया जा रहा है कि जिंदगी की गाड़ी को आगे बढ़ाने के लिए आपको अपने शरीर को रोगों से बचा कर रखना होगा। शरीर को निरोग और स्वस्थ बनाए रखने के लिए उपयुक्त भोजन भरपेट करना होगा। भागदौड़ और कामकाज के साथ शरीर को आराम के लिए आवश्यकता होती हैं जो बहुत जरूरी है क्योंकि अगर एकबार रोगों से ग्रस्त हो गया तो फिर धीरे-धीरे उसकी जकड़ मजबूत हो जाती है और मनुष्य पलंग पर आ जाता है। जिम्मेदारी का अहसास और संतान की आस कभी टूटने नहीं देनी है इसलिए भागदौड़ और थकावट भी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए अच्छा खानपान अवश्य खाना चाहिए।
2- आलस्य (लेखक-बालमणि अम्मा)
आलस्य मुझमें फैलता है शाश्वत आनंद की छाया जैसे, यहाँ अभी है कर्तव्य अपार, कोशिश करती हूँ,
अपनी यादों से छुटकारा न पाने की।
धरती को बिना श्रम मृदुलता से ढकने वाले फूलों के बीच,
जीवन को सुंदरता देने वाली अकृत्रिम कल्पनाओं के बीच,
कर्म-कृषि में मेहनत करने वाले मेरे हाथ बिन हिले-डुले पड़े हैं।
जब दुपहरी की मंद हवा में विश्व सौंदर्य के हरे पत्ते उन्मदित होते हैं,
जब विचारों को आर्द्रता देकर भरपूर प्रशांति का पावन जल दिल में फैलता है,
कल के राज्य को गढ़ने वाली प्रज्ञा लहरों में बही जाती है।
जब लता कुंजों में मैनाओं की चहचहाहट थम जाती है,
अंतरतम में आशाओं के कदम्ब का आमंत्रण थम जाता है,
आलस्य मुझे डुबो देता है, सर्गान्त- काल के निश्वास जैसे,
कोशिश करती हूँ कि यादों के धागे में पिरोई धरती न निकल पाए।
व्याख्या
इस कविता माध्यम से लेखिका बालमणि अम्मा जी द्वारा बढ़ता आलस्य इंसान को किसी काम का नहीं छोड़ता यह जा बताया जा रहा है। जब मनुष्य धीरे-धीरे मेहनत करने से अपने कदम पीछे खींचता है तो वह धीरे-धीरे आलस्य के अंधेरे में गिरता चला जाता है। एक बार उस अंधेरे में डूब जाने पर मनुष्य का बाहर आना बहुत कठिन हो जाता है। अपने भविष्य में आगे बढ़ने और कुछ करने की आज आलस्य की लहरों में बह जाती हैं। इसके बाद मनुष्य के सोचने समझने की बुद्धि भी धीरे-धीरे नष्ट होती रहती हैं। खुद को बनाना और बिगाड़ ना केवल मनुष्य के हाथ में है। मनुष्य चाहे तो अपनी कड़ी मेहनत से जिंदगी में उजाला भर सकता है। और अगर चाहे तो आलस्य की राह चुन कर खुद को और अपने परिवार को अंधकार की ओर धकेल सकता है।
3- सच्चाई (लेखक-बालमणि अम्मा)
“हमेशा मीठा बोलने वाली मेरी माँ क्यों करती है,
नफ़रत मेरे दोस्तों से?
मेरे सीने से लग कर सोए हुए मेरे लाडले मुन्ने ने फिर से पूछा मुझसे।
फूल से भी कोमल बिस्तर
चाँदनी में तैरती हवाएँ
मेरे बेटे की यादों में चमका होगा।
सूरज की ललाभ किरणों के नर्तन वाला आँगन
बड़े फाटक पर नुकीली जालियों को
दिखाने वाली वसंत की मुस्कराहट
दौड़ते खेलते ऊधम मचाते दोस्त
पत्तों से छाई झोंपड़ियों से आने वाले,
मेघवर्ण, कृशतन, बिना चप्पलों वाले,
लाल मिट्टी से सने पाँवों वाले,
किसी भी शरारत में भाग लेने वाले,
फालतू दर्द को भी सहने वाले
“साँझ हो गई, चलो अब जाओ,” डपटा मैंने,
बुझे मन से मेरे चेहरे को ताकने वाले।
कुछ न बोली मैं, चुपचाप पड़ी रही
मुन्ने ने देख ली क्या मेरे मन की कुरूपता?
कैसे सच बोलूँ इस बच्चे से?
कैसे समझाऊँ मैं उसे?
हमेशा उनसे दूरी कायम रखने वाली मैं
भूल गई कि वे भी बच्चे हैं,
माटी की कुटिया में पैदा होने वालों को
अपने साफ़-सुथरे घर में कैसे आने दूँ,
हमेशा भूखे रहने वालों के साथ
अपने लाल को कैसे खिलाऊँ?
काश ऐसा होता कि उनकी इस बड़ी भूल को
देखने की समझ मुझमें न होती।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से कवित्री बालमणि अम्मा जी द्वारा बताया जा रहा है कि कैसे कोई मां अपनी संतान से सच बोले। हमेशा प्यार करने वाली मां अपने दोस्तों को गुस्से की नजर से क्यों देखती हैं। कैसे भूल जाती है क्या घर में आने वाले वह भी बच्चे ही उसकी खुद की संतान की तरह। इस कविता के माध्यम से लेखिका कहना चाह रही है कि कैसे हो गरीबी में रहने वाले बच्चों को अपने साफ-सुथरे घर में आने की इजाजत दे। कैसे हो उन भूखे बच्चों के साथ अपने बच्चे को खाना खिला दे। कैसे दिन भर कैसे दिन भर शरारत और उधम मचाते बच्चों को न डांटे। हालाकि मां का यह कुरूपता भरा अंदाज उसकी संतान की आंखों में 100 सवाल खड़े कर देते हैं और उसके सीने से कल पूछता है कि मेरी मां इतने कोमल दिल की भावना रखने वाली मुझे सहलाने वाली और लोरिया गाकर सुनाने वाली कैसे इतनी निर्दई हो सकती है।
4- बुढ़ापा (लेखक-बालमणि अम्मा)
प्रेम प्रमोद का श्मशान समझ
डरती थी मैं तुमसे बुढ़ापे!
सोचती थी तेरे शिशिर हिमपातों में
मेरे विचारों की एक पत्ती भी फूटेगी नहीं,
अगाध अँधेरे वाली तेरी आँखों में
सारा उजाला बुझ जाएगा।
फिर भी अनगिनत दिनों की हँसी
जब मेरी दुनिया को विकसित करती है तो
चाहे सुनहरी रेत हो या बेकार कंकड़ पत्थर
इस मन के दौड़ने का रास्ता बन ही जाता है,
व्याकुल होने पर बोध, शांति औ चेतनता के लिए
तेरी घास पर सिर टिका लेटती हूँ तो
बढ़ता जाता है मेरा प्रेम, आत्मा की सुंदर छाया-सा
धरती को मापने के लिए
केवलानंद की ताल पर कदम धरते-धरते
जीवन अनायास बीतता जाता हैं
मेरे दिल में हरेक विचार के साथ
खिलते हैं सफ़ेद फूल एक-एक करके
हवा को सर्वाधिक मृदुलता देने वाली
भोर की वेला नहीं है, निश्चय ही
दुपहरी की भीषण गर्मी के बाद की
ऊँघ की बीतती है यहाँ,
फिर भी जब मैं मुड़कर देखती हूँ तो
दूर से ही आँखों को ठंडक पहुँचाता है,
पिता की उँगलियाँ थामे,
उषा के लाल फलों के गुच्छे को ताकते
बच्चे का साम्राज्य, किसी भी
छाया से बिन ढका, छोटा-सा संसार
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से कवित्री बालमणि अम्मा जी द्वारा बुढ़ापे का वर्णन बहुत ही सुंदर अक्षरों में किया गया है। जीवन का कभी ना झूठलाने वाला सत्य यह भी है कि बचपन के बाद जवानी और उसके बाद बुढ़ापे का भी एक पड़ाव पार करना होता है। बहुत से लोग बुढ़ापे के साथ-साथ आने वाली समस्याओं की वजह से चिंतित रहने लगते हैं। लेकिन दौर कोई भी हो जिंदगी को खुशमिजाज और साहस के साथ जीना चाहिए। बुढ़ापे का पड़ाव आते ही जब हम पीछे मुड़कर अपनी के साथ गुजरा हुआ वक्त जैसे पिता की उंगली पकड़कर चाहे बाहर जाना हो या फिर मां की गोद में सर रख कर घंटो लेटना है। भाई बहनों के साथ मस्ती मजाक हो या फिर दोस्तों के साथ बाहर घूमना हो। यह सुनहरी यादें बुढ़ापे में याद आती है और गुदगुदाती है।हर दिन एक ऐसा पल बनाना चाहिए जो हमेशा हमें याद रहे और चेहरे पर मुस्कान बिखेर दें। जिंदगी के पड़ाव में फूल हो या कांटे, बंजर जमीन हो या सुनहरी रेत उन पर चलने का रास्ता तो बन ही जाता है महत्वपूर्ण बात यह है कि आप उन रास्तों को हंसकर पार करते हैं या फिर रो कर।
5- धूप खिलने पर (लेखक-बालमणि अम्मा)
ढलती चाँदनी बहती है जिस जीवन की उषा में
मेरे किशोर तन को जगाने वाली चिदात्मके
माँ के दूध के साथ सुखकारी ताप घोलकर
मानव बंधन के माधुर्य को उड़ेलने वाली
सुंदर रंगों के रूप में, मधुर नाद के रूप में
मुझमें काल की सत्ता फैलाने वाली रहस्यमयी
दोपहर की गर्मी बढ़ने पर व्योम नीलिमा व
धरा पर हरियाली बढ़ा मुझे शीतलता देने वाली माँ
मेरे इस तन पर जब अपराह्न की छाया पड़ती है
तो कितना मृदुल हो जाता है तेरा स्पर्श
कितना लुभाती है तेरी खिली मुस्कान
न जाने कहाँ से आती है प्यार भरी पुकार!
अँधेरा छा जाने पर तू फिर होगी पास
गोधूलि की बाती जलाने को, नक्षत्रों को प्रज्वलित करने को।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से कवित्री बालमणि अम्मा जी द्वारा यह बताया जा रहा है कि अंधेरी रात के बाद जब सुबह सूरज की किरणों से अपना प्रकाश धरती पर बिखेरती है, तो मनुष्य में जो हर्ष और उत्साह भरता है उसकी बात ही अलग होती है। कवि का कहना है कि सूर्य का प्रकाश और तेज जब हमारे शरीर को छूता है, तब वैसा ही एहसास अपने भविष्य को जागृत करने के लिए हमारे मन में विचार आता है। इस कविता में में धरती पर बढ़ती हरियाली को शीतलता देने वाली मां कहा गया है।
6- स्त्री (लेखक-बालमणि अम्मा)
हे गृहस्वामिनी! कल तूने घी का दीया ला धरा
घर के भीतर के अँधेरे को मिटाने को
उसकी रोशनी फैली, कुल देवता के मंदिर में
रसोईघर में और तेरे शयनागार में
सिर झुकाए खड़ी थी देख न पाया कोई
तेरा चेहरा, केवल माँग का सिंदूर दपदपाया।
हे मनस्विनी आज तूने अध्ययन कक्ष के बाहर
सहन में जलाया विद्युतदीप पड़ोसियों के लिए,
नई रोशनी लहराई घरों में, गलियों में, कारखानों में।
अब तुम सिर उठाए बढ़ाती हो किरणों-सी शीतलता
देने वाले स्नेहसिक्त हाथों को।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखिका बालमणि अम्मा जी द्वारा बताया जा रहा है कि किस तरह एक स्त्री घर की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाती है। किस तरह से एक स्त्री घी दिया जला कर अंधेरे को मिटाते हुए पूरे घर में उसका प्रकाश बिखेर देती है। इस कविता के माध्यम से लेखिका द्वारा बताया जा रहा है कि किस तरह से एक स्त्री अपने कर्त्तव्य को निभाकर पूरे संसार को प्रकाशित कर सकती हैं। वक्त पड़ने पर एक औरत चाहे तो अपने परिवार की रक्षा के लिए काली भी बन सकती है और सरस्वती भी।
7- परायापन (लेखक-बालमणि अम्मा)
आज धूप चढ़ने पर आकाश में चढ़कर बढ़ गया
सामने सब कुछ पर कालिख पोतने वाला अहंकार
धरती पर गर्मी बढ़ी तो धीरे से मेरे क़दमों के नीचे
सिकुड़ गया आकार परायेपन का,
हे आसुरीमूर्त्ति! क्षण भर को रुका, फिर से,
धरती के सीने पर गिरने को लोह तलवार जैसे।
माया की उपेक्षा करने वाला कोई मन में हँसा
‘ये जो केवल छाया है, किसे दे सकती है दर्द?’
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखिका बालमणि अम्मा जी द्वारा बताया जा रहा है कि कैसे लोग अपने और पराएपन का एहसास कराते हैं। बुरा समय आने पर कौन अपना है और कौन पराया यह एहसास हर व्यक्ति को कभी ना कभी हो ही जाता है। जब मनुष्य के पास सफलता और पैसा होता है तो वो लोग भी आपको सलाम करते हैं जो कभी आपको देखना भी गवारा नहीं करते थे आपके बुरे वक्त में ।
8- पढ़ाई (लेखक-बालमणि अम्मा)
डबडबाई आँखें मन में चिड़चिड़ाहट
उँगलियों के पोरों में थरथराता पेन
किताब खोली मुन्ने ने, लकीरों पर निगाह दौड़ाई
सामने फैले पन्नों पर उकेरने लगा
छोटे-छोटे विलक्षण लिपि अक्षर।
बाँस के पिंजरे से पुकारती है मैना
चेहरा उठ गया, पेन थम गया
डगमगाते क़दम धरते दूर जाते विचार
पुरानी कहानियों में, अनेक सपनों में
जाने-पहचाने महलों में, सैनिक शिविरों में,
पहाड़ी चोटियों में, बीच-बीच में बुदबुदाकर जाप करने लगता,
“पढ़ाई तो समय की बर्बादी है
क्या ख़ुद की लिखी पंक्तियाँ
काले लंबे धागे-सी उसके पाँवों में लिपट
उसे वापस लौटा रही थीं?
डपटने-फटकारने को आई माँ
यह सुन सोचने-विचारने लगी
कैसे मानूँ अपने को उससे बड़ा
बिन कुछ समझे-बूझे सूरज की
सुनहरी किताबों को उलटती-पलटती हूँ
लिखने के अभ्यास के बल पर
ध्यान लगा काँपते हाथों से कुछ लिख देती हूँ।
दूर उड़ चले सुख
जब पुकारते हैं तो
उतावली हो जा गिरती हैं मेरी
निगाहें धन पाने के रास्तों पर
लोगों की चापलूसी भरे कामों में,
मँडराते फिरते हैं विचार
मन को लुभाने वाले प्रतीक्षित वनों में,
विमूढ़-सी मन ही मन गुनती हूँ
“ज़िंदगी के सार को खोजना समय की बर्बादी ही तो है।
जो कर्तव्य अब तक निबाहे वे जाल फेंक
पाँवों को बाँध पीछे को घसीटने लगे।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखिका बालमणि अम्मा जी द्वारा बताया जा रहा है कि किस तरह से आजकल के बच्चे पढ़ाई को समय की बर्बादी समझते हैं। लेखिका का कहना है कि पढ़ाई के समय तो बच्चे पन्ने पलटने में और पेन के हाथो में हिला हिला कर समय बर्बाद कर देते हैं। जब बात घूमने फिरने की आती है वहां उनके चेहरों पर एक अलग ही खुशी दौड़ जाती है जो पढ़ाई के समय आपको नजर नहीं आती। क्या आपको भी ऐसा लगता है कि जिंदगी के सार को खोजना समय की बर्बादी है। या फिर यह कहे कि हम पर जो कर्तव्य हैं परिवार की जो आस है हमसे उनके प्रति विपरीत दिशा में जाकर अपने कदमों को पीछे घसीटना क्या वह सही है। जिस शिक्षा को समय की बर्बादी समझा जा रहा है कल वहीं शिक्षा आपका भविष्य बना सकते हैं और आपको सफल पद पर भी आगे धकेल सकती है। यह बात सही है कि पढ़ते समय हमारा ध्यान पूरे तरीके से अपनी शिक्षा की ओर नहीं होता लेकिन ऐसा करके हम खुद ही अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं उसे सीरियस नहीं ले रहे हैं।
9- धर्म (लेखक-बालमणि अम्मा)
भूमि पर हवा के झोंकों से हमारे जीवन को उठाने वाले
हे सनातन धर्म देव, तेरी विजय हो,
अपने आदि अगम आश्रम की दीपाराधना में
नवीन शास्त्रों के विद्युत प्रकाश में
पवित्र जनों की आँखों की चमक में
हे भूत संस्थिति कारी, तेरा प्रभाव देखती हूँ।
मानव सद्गुणों के हे उन्नत विकास!
ज्ञान विज्ञान साधना के साफल्य
आँसुओं को तीर्थ जल बनाने वाले पावन,
कर्मवनों को संगमरमर का मंदिर बनाने वाले महान्
तेरे वस्त्र बदलते हैं हर रोज़, हर क्षण
लेकिन तेरा सत्य अहिंसात्मक रूप नित्य है
तेरी आकृति टूटी-फूटी प्रतिबिंबित होती है
संसार की व्याकुल विचारों की नदी में
फिर भी निश्चय ही हम याद करते हैं कि
मानव आत्मा को उठाने की क्षमता है तेरी धूलि में।
देवों और असुरों के फैलाए पर्दे हटाकर ही
हम तेरा चेहरा देख पाते हैं
शंखनाद जैसी मशीनों की घरघराहट में
तेरा गंभीर आह्वान सुन पाते हैं,
तेरी परछाईं शायद बढ़ेगी यदि हम
सब जीवों में समान दिल की जड़ को भी भूल जाएँ।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखिका बालमणि अम्मा जी द्वारा सनातन धर्म के गुणों की व्याख्या की जा रही है। इस कविता के माध्यम से ही लेखिका बताना चाह रही हैं कि सनातन आश्रम की दीप आराधना में नवीन शास्त्रों के प्रकाश में पवित्र आंखों की चमक में जो प्रकाश नजर आता है वह अमूल्य है और ज्ञान विज्ञान के साफल्य है। माना जाता है कि सनातन धर्म सबसे पवित्र और सफल रास्ते पर चलने वाला धर्म है। धर्म चाहे कोई भी हो सबकी अपनी आस्था और अपना मानना है। कोई भी धर्म छोटा या बड़ा नहीं होता। सभी अपने अपने धर्मों में आस्था और विश्वास रखते हैं।
10- आनंदगान (लेखक-बालमणि अम्मा)
इन बर्फ़ से ढकी पहाड़ियों के साथ
आकाश की ऊँचाई को एड़ी उचकाकर देखती
गरजती जलधारा के साथ
रास्तों की बाधाओं को भेदकर बहती
ताप सहने वाले पेड़ों के साथ मिलकर
नीचे ठंडी छाया फैलाने की कोशिश करती
अनगिनत जीवों के साथ मिलकर
आसमान की रोशनी की चुस्की ले मदमस्त होती
हरियाली की प्रशांति के ऊपर
पंछी सा उड़ती और चहचहाती
इच्छित भावनाओं की परंपरा के साथ
इन्द्रियों के इस गाँव में नर्तन करती
आसमान और ज़मीं से एकीकार होती
यह मैं हूँ या शाश्वत आनंद?
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखिका का द्वारा बताया जा रहा है कि भगवान द्वारा बनाई गई प्रकृति जीव जंतु औ पशु पक्षी, यह धरती और आसमा सब कुछ कितना सुंदर है। लेखिका द्वारा कहा जा रहा है कि बर्फ की ढकी इन पहाड़ियों के साथ, आकाश की ऊंचाइयों को छू कर, बहते झरनों के साथ, रास्ते की बाधाओं को पार करके हर्ष और उत्साह के साथ जिंदगी जीते हैं। गर्मी की तपिश सहते यह पेड़ों के साथ मिलकर दुनिया को छोड़ देने की कोशिश करती। इन हरियाली जंगलों में पंछियों के साथ मिलकर होती और अपने पंख फैलाकर जिंदगी जीते।
यह थी Balamani Amma ki Kavitaye in Hindi. उम्मीद करते हैं कि आपको यह Hindi कविताएं अवश्य ही पसंद आएंगी। हम आपके लिए ऐसे ही प्रसिद्ध कवियों की कुछ चुनिंदा कविताएं अपने इस आर्टिकल के माध्यम से लाते रहेंगे जिन्हें पढ़कर आप में जोश और उमंग के साथ साथ जिंदगी में आगे बढ़ने का हौसला भी मिलता रहेगा।