Bacchon ki Poems: आज हम आपके लिए अपने आर्टीकल के माध्यम से बच्चों की बहुत ही मजेदार और दिलचस्प कविताएं लेकर आए हैं। बच्चे जो कि मन के सच्चे होते हैं, उन्हें बचपन में जो संस्कार और विचार दिए जाते हैं वह उन्हीं में ढल जाते हैं। बच्चों की दिलचस्प कविताएं उनके दिमाग पर एक अलग ही छाप छोड़ती हैं। बच्चों को कविताएं सुनना बहुत अच्छा लगता है। खास तौर पर बच्चों को ऐसी कविताएं सुनानी चाहिए जो उनके कोमल मन में अच्छे विचार और भावनाएं पैदा कर सकें। हमारे इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पढ़ें और इन दिलचस्प कविताओं का आनंद लें।
1- Bacchon ki Poems: पर्वत कहता (लेखक-सोहन लाल द्विवेदी)
पर्वत कहता
शीश उठाकर
तुम भी ऊँचे बन जाओ।
सागर कहता है
लहराकर
मन में गहराई लाओ।
समझ रहे हो
क्या कहती है
उठ-उठ गिर गिर तरल तरंग।
भर लो, भर लो
अपने मन में
मीठी-मीठी मृदुल उमंग।
धरती कहती
धैर्य न छोड़ो
कितना ही हो सिर पर भार।
नभ कहता है
फैलो इतना
ढक लो तुम सारा संसार।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक सोहनलाल द्विवेदी जी द्वारा बताया जा रहा है कि पर्वत के समान हमें भी शीश उठाकर जीना चाहिए और सागर की लहरों के समान अपने मन में इतनी गहराई होनी चाहिए कि हर बात उसमें समा जाए। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि धरती के समान कभी भी धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि आपका धैर्य ही आपको आपकी मंजिल तक पहुंचा सकता है। आकाश के समान संसार के चारों तरफ इतना फैल जाओ उसमें समा जाए।
2- चिड़िया का घर (लेखक -हरिवंश राय बच्चन)
चिड़िया, ओ चिड़िया,
कहाँ है तेरा घर?
उड़-उड़ आती है
जहाँ से फर-फर!
चिड़िया, ओ चिड़िया,
कहाँ है तेरा घर?
उड़-उड़ जाती है-
जहाँ को फर-फर!
मन में खड़ा है जो
बड़ा-सा तरुवर!
उसी पर बना है
खर-पातों वाला घर!
उड़-उड़ आती हूँ
वहीं से फर-फर!
उड़-उड़ जाती हूँ
वहीं को फर-फर!
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक हरिवंश राय बच्चन द्वारा बताया जा रहा है कि जिस तरह एक नन्ही चिड़िया अपने पंखों को फैला कर यहां से वहां पर बैठ जाती हैं उसी तरह अपने हौसलों की उड़ान इतनी बुलंद कर लो कि आप भी यहां से वहां फर फर अपने पंखों को फैला कर उड़ जाओ।
3- आ रही रवि की सवारी (लेखक -हरिवंश राय बच्चन)
आ रही रवि की सवारी।
नव-किरण का रथ सजा है,
कलि-कुसुम से पथ सजा है,
बादलों-से अनुचरों ने
स्वहर्ण की पोशाक धारी।
आ रही रवि की सवारी!
विहग, बंदी और चारण,
गा रही है कीर्ति-गायन,
छोड़कर मैदान भागी,
तारकों की फ़ौज सारी।
आ रही रवि की सवारी!
चाहता, उछलूँ विजय कह,
पर ठिठकता देखकर यह-
रात का राजा खड़ा है,
राह में बनकर भिखारी।
आ रही रवि की सवारी।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा कहा जा रहा है कि अपनी किरणों को रथ पर सजा कर सूर्य उगता है। फूलों और कलियों से सूर्य का रथ सजा हुआ है रवि की सवारी आ रही है। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि जब सूर्य उगता है तब रात का राजा चंद्रमा भी उसकी राह में भिकारी बनकर खड़ा हो जाता है। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि हमें भी सूर्य के प्रकाश की तरह अपना भविष्य उज्जवल करना है।
4- लल्लू जी की पतंग (लेखक-शादाब आलम)
बातें करे हवा के संग
लल्लू जी की लाल पतंग।
आसमान में लहर रही है
एक जगह न ठहर रही है।
इधर भागती उधर भागती
खूब करे मस्ती हुड़दंग।
हरी, गुलाबी, नीली, काली
की इसने छुट्टी कर डाली।
बीस पतंगें काट चुकी है
बड़ी बहादुर, बड़ी दबंग।
सभी पतंगों से सुंदर है
सबकी इस पर टिकी नजर है।
ललचाता है सबको इसका
अति प्यारा मनमोहक रंग।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक शादाब आलम जी द्वारा बताया जा रहा है कि अनेक वाली पतंगे जब आसमान में इधर से उधर भागती है तो आसमान में लहराती हुई बड़ी ही अच्छी लगती हैं।एक छोटी सी पतंग बड़ी ही मनमोहक रंगों के साथ आकाश में उड़ती हुई और पतंगे काटती हुई उड़ती है तो सबकी नजरें इस पर टिक जाती हैं। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि जिस तरह एक पतंग हल्की सी हवा का सहारा लेकर आकाश में लहराकर उड़ती है उसी तरह हमें भी बिना डरे बिना खबरें ऐसे ही जीना चाहिए।
5- Bacchon ki Poems: सूरज की किरणें आती हैं (लेखक-श्री प्रसाद)
सूरज की किरणें आती हैं,
सारी कलियां खिल जाती हैं,
अंधकार सब खो जाता है,
सब जग सुंदर हो जाता है।
चिड़ियां गाती हैं मिलजुल कर,
बहते हैं उनके मीठे स्वर,
ठंडी-ठंडी हवा सुहानी,
चलती है जैसी मस्तानी।
यह प्रातः की सुख बेला है,
धरती का सुख अलबेला है,
नई ताजगी, नई कहानी,
नया जोश पाते हैं प्राणी।
खो देते हैं आलस सारा,
और काम लगता है प्यारा,
सुबह भली लगती है उनको,
मेहनत प्यारी लगती जिनको।
मेहनत सबसे अच्छा गुण है,
आलस बहुत बड़ा दुर्गुण है,
अगर सुबह भी अलसा जाए,
तो क्या जग सुंदर हो पाए।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक श्री प्रसाद जी द्वारा कहा जा रहा है कि सुबह सवेरे जब सूरज निकलता है तब फूलों की कलियां खिल जाती हैं और अंधकार मिट जाता है। कोयल और चिड़िया मीठे स्वर में अपने गीत सुनाते हैं और सारा जग सुंदर लगने लगता है। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है जिस प्रकार सूरज के प्रकाश से एक नई सुबह नहीं पहल होती है उसी तरह हमें भी अपने जीवन के अंधकार को मिटाकर अच्छे गुण और आलस को छोड़कर अपने जीवन को सुंदर बनाना चाहिए।
6- Bacchon ki Poems: टीचर जी (लेखक- रूप चंद्र शास्त्री ‘मयंक)
टीचर जी!
मत पकड़ो कान।
सरदी से हो रहा जुकाम II
लिखने की नही मर्जी है।
सेवा में यह अर्जी है
ठण्डक से ठिठुरे हैं हाथ।
नहीं दे रहे कुछ भी साथ II
आसमान में छाए बादल।
भरा हुआ उनमें शीतल जल II
दया करो हो आप महान।
हमको दो छुट्टी का दान II
जल्दी है घर जाने की।
गर्म पकोड़ी खाने की II
जब सूरज उग जाएगा।
समय सुहाना आयेगा II
तब हम आयेंगे स्कूल।
नहीं करेंगे कुछ भी भूल II
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक रूपचंद्र शास्त्री जी द्वारा बताया जा रहा है कि एक विद्यार्थी अपने अध्यापक से विनती कर कहता है कि उसके अध्यापक उसे किसी प्रकार की सजा ना दें क्योंकि सर्दी से उसे जुकाम हो रखा है और इस कारण से अपना होमवर्क नहीं कर पाया। एक विद्यार्थी अपने से मौसम सही होने पर समय से स्कूल आने की विनती कर रहा है और साथ ही साथ या माफी मांग रहा है। हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने बड़ों का और अध्यापक का आदर और मान सम्मान करना चाहिए और उन्हें कभी भी शिकायत का मौका नहीं देना चाहिए।
7- तितली रानी
तितली रानी तितली रानी
कितनी प्यारी कितनी सयानी!
रंग बिरंगे पंख सजीले!
लाल, गुलाबी, नीले, पीले !
फूल फूल पर जाती हो !
गुनगुन-गुनगुन गाती हो !
कली कली पर मंडराती हो!
मीठा मीठा रस पीकर उठ जाती हो!
अपने कोमल पंख दिखाती!
सबको उनसे है सहलाती।
तितली रानी तितली रानी
कितनी सुन्दर, तितली रानी,
इस बगिया में आना रानी।
तितली रानी तितली रानी।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि एक छोटी सी प्यारी सी तितली रंग बिरंगे पंख सजाए हुए फूल फूल जाती हैं और गुनगुनाते हुए उनकी कली कली पर मंडराती हैं। मीठा-मीठा रस पीकर अपने फॉर्मल पंखों के साथ फिर से उड़ जाती है। कविता से हमें यह सीख मिलती है कि एक छोटी सी तितली को देखकर हर किसी के मुंह पर मुस्कान आ जाती हैं उसी प्रकार हमें भी अपने कोमल हृदय से सबका मन मोह लेना चाहिए।
8- इब्न बतूता पहन के जूता (लेखक- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना)
इब्न बतूता पहन के जूता,
निकल पड़े तूफान में।
थोड़ी हवा नाक में घुस गई
थोड़ी घुस गई कान में।
कभी नाक को कभी कान को।
मलते इब्न बतूता,
इसी बीच में निकल पड़ा उनके पैरों का जूता।
उड़ते-उड़ते उनका जूता,
जा पहुँचा जापान में।
इब्न बतूता खड़े रह गए,
मोची की दूकान में।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी द्वारा कहा जा रहा है कि एक इब्ने बतुता नाम का शख्स जूता पहनकर तेज तूफान में निकल पड़ता है। तूफान में चलती तेज हवाएं उसके नाक कान में प्रवेश करती हैं और वह परेशान होकर आगे बढ़ता है। कुछ दूर आगे चलने पर उसके पैर का जूता पैर से निकलकर तेज तूफान में कहीं दूर निकल जाता है और वह बेचारा मुझे की दुकान पर खड़ा रह जाता है।
9- आसमान पर छाए बादल (लेखक- ओम प्रकाश चोरमा)
आसमान पर छाए बादल,
बारिश लेकर आए बादल।
गड़-गड़, गड़-गड़ की धुन में,
ढोल-नगाड़े बजाए बादल।
बिजली चमके चम-चम, चम-चम,
छम-छम नाच दिखाए बादल।
चले हवाएँ सन-सन, सन-सन,
मधुर गीत सुनाए बादल।
बूंदें टपके टप-टप, टप-टप,
झमाझम जल बरसाए बादल।
झरने बोले कल-कल, कल-कल,
इनमें बहते जाए बादल।
चेहरे लगे हंसने-मुस्कुराने,
इतनी खुशियां लाए बादल
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लिखो ओम प्रकाश माली द्वारा गाए जा रहे थे जैसे आसमान में काले बादल आते हैं तो पशु पक्षी और मनुष्य में खुशी की लहर दौड़ जाती है क्योंकि आसमान में छाए काले बादल वर्षा का संकेत लेकर आते हैं। कई बार तेज हवाओं के साथ बदलो की गड़गड़ाहट छोटे बच्चों को डरा देती हैं। छम छम बरसता बारिश का पानी से लोगों में खुशी की लहर दौड़ जाती है।
10- Bacchon ki Poems: मुर्गे की शादी (लेखक-श्री प्रसाद)
ढम-ढम, ढम-ढम ढोल बजाता
कूद-कूदकर बंदर,
छम-छम घुँघरू बाँध नाचता
भालू मस्त कलंदर!
कुहू-कुहू-कू कोयल गाती
मीठा मीठा गाना,
मुर्गे की शादी में है बस
दिन भर मौज उड़ाना।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेकर श्री प्रसाद जी द्वारा बताया जा रहा है कि मुर्गी की शादी में एक बंदर बजाता हुआ और मीठा मीठा गाना गाता हुआ जा रहा है। बंदर को इस बात की खुशी है कि उसे दिन भर छुड़ाने को मिलेगी।
11- ठीक समय पर (लेखक-सोहनलाल द्विवेदी)
ठीक समय पर नित उठ जाओ,
ठीक समय पर चलो नहाओ,
ठीक समय पर खाना खाओ,
ठीक समय पर पढ़ने जाओ।
ठीक समय पर मौज उड़ाओ,
ठीक समय पर गाना गाओ,
ठीक समय पर सब कर पाओ,
तो तुम बहुत बड़े कहलाओ।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक सोहनलाल द्विवेदी जी द्वारा सभी कार्य ठीक समय पर करने की सीख दी जा रही हैं। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि सुबह सवेरे जल्दी उठना चाहिए और उठकर नहाना चाहिए। वक्त पर खाना खाना चाहिए और पढ़ाई के समय पढ़ाई करनी चाहिए। खेलकूद का भी अपना समय होना चाहिए। अगर सारे काम आप समय पर करते हो तो बड़े होकर निश्चित ही बहुत आगे जाओगे।
12- बिल्ली को जुकाम (लेखक-श्री प्रसाद)
बिल्ली बोली – बड़ी जोर का,
मुझको हुआ जुकाम,
चूहे चाचा, चूरन दे दो,
जल्दी हो आराम।
चूहा बोला – बतलाता हूं,
एक दवा बेजोड़,
अब आगे से चूहे खाना,
बिल्कुल ही दो छोड़।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक श्री प्रसाद जी द्वारा बताया जा रहा है कि एक बिल्ली को जुखाम हो जाता है और वह परेशान होकर चूहे से दवाई लाने को कहती है। जिसके मां चूहा उसे चूहे ना खाने की सलाह देता है और कहता है कि अगर ऐसा करती हो तो निश्चित ही आगे तुम्हें कभी जुखाम नहीं होगा।
13- अगर पेड़ भी चलते होते (लेखक-डॉ. दिविक रमेश)
अगर पेड़ भी चलते होते,
कितने मजे हमारे होते,
बांध तने में उसके रस्सी,
चाहे जहां कहीं ले जाते।
जहां कहीं भी धूप सताती,
उसके नीचे झट सुस्ताते,
जहां कहीं वर्षा हो जाती,
उसके नीचे हम छिप जाते।
लगती भूख यदि अचानक,
तोड़ मधुर फल उसके खाते,
आती कीचड़-बाढ़ कहीं तो,
झट उसके उपर चढ़ जाते।
अगर पेड़ भी चलते होते,
कितने मजे हमारे होते।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक डॉ विवेक रमेश जी द्वारा कहा जा रहा है कि बच्चे मन में ऐसा सोचते हैं कि अगर पेड़ चल फिर सकते तो हम कभी भी कहीं भी उन्हें रस्सी से बांधकर ले जा सकते हैं। कहीं धूप ज्यादा होती तो वहां खिसका कर छांव में बैठ जाते हैं और कहीं वर्षा तेज होती तो वही उसके नीचे बारिश से छिप जाते हैं। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि अगर भूख लगती तो छठ फल तोड़कर अपनी भूख मिटा लेते और कहीं बाढ़ या कीचड़ होती तो उसके ऊपर चढ़ जाती है।
14- Bacchon ki Poems: क्रिकेट (लेखक-डॉ. प्रकाश मनु)
बिल्ली यह बोली चूहों से,
आओ खेलें खेल,
प्यारा क्रिकेट, खेल निराला,
मन का होगा मेल।
लकड़ी की थी गेंद और था,
खूब बड़ा-सा बल्ला,
खेल शुरू जब हुआ फील्ड में,
मचा धमाधम हल्ला।
चूहे ने दिखलाई फुर्ती,
कसकर मारा छक्का,
होश उड़े फिर तो बिल्ली के,
रह गई हक्का-बक्का।
भूल गई वह अपना वादा,
झट चूहों पर झपटी,
चूहे बोले-भागो, भागो,
यह तो निकली कपटी।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक डॉ प्रकाश मनु जी द्वारा कहां जा रहा है कि एक बिल्ली चूहे के पास आकर बड़ा ही निराला खेल क्रिकेट खेलने को कहती है। बिल्ली द्वारा कहा जा रहा है कि आओ यह निराला खेल खेलते हैं और एक दूसरे को और करीब ले आते हैं। चूहों खेल का बढ़िया प्रदर्शन देखकर बिल्ली अपने वादे से मुकर जाती है और चूहों पर झपटती हैं।
15- चाबी वाला जोकर (लेखक- प्रकाश मनु)
जन्मदिवस पर चाचा लाए,
चाबी वाला जोकर,
मुझको खूब हंसाया करता,
ताली बजा-बजाकर।
खूब नुकीली, पर तिरछी-सी,
इसकी जो है टोपी,
उसे देखकर खुश होता है,
नन्हा भैया गोपी।
हाथ हिलाकर, गाल फुलाकर,
यह है डांस दिखाता,
डांस दिखाकर थोड़ा-थोड़ा,
गर्दन को मटकाता।
और अंत में बड़े मजे से,
करता है-आदाब,
हंस-हंस कहते मम्मी-पापा-
इसका नहीं जवाब।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक प्रकाश मनु जी द्वारा बताया जा रहा है कि छोटे बच्चे के जन्मदिन पर उसके चाचा उपहार में चाबी वाला जो कर देते हैं जिसे देखकर बच्चा बेहद खुश हो जाता है। चाबी वाले जोकर हाथ हिलाकर, गाल फुलाकर डांस करके दिखाता है और सभी जोकर का डांस देखकर बहुत खुश हो जाते हैं।
16- Bacchon ki Poems: होली
बसंत की हवा के साथ
रंगती मन को
मलती चेहरे पर हाथ
ये होली लिए रंगों की टोली
लाल गुलाबी बैंगनी हरी पीली
ये नवरंगी तितली है
आज तो जाएगी घर घर
दर दर ये मौज मनाएंगी
भूल पुराने झगड़े सारे
सबको गले लगाएगी
पीली फूली सरसौं रानी
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि जैसे ही होली का त्यौहार नजदीक आता है तो बच्चों में एक अजब सा माहौल, उत्साह और जोश पैदा हो जाता है। बच्चों को सबसे ज्यादा रंग बिरंगी रंगों के साथ खेलने में मजा आता है। होली का त्यौहार है ही ऐसा की सबके चेहरों पर मुस्कान ले आता है।
17- फूल फूल तुम कितने अच्छे
फूल फूल तुम कितने अच्छे
तुम्हे प्यार करते है बच्चे
रंग तुम्हे दे जाता कौन
इत्र छिड़क महकाता कौन
बतलाओ तो उसका नाम
करे सदा जो अच्छे काम
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि रंग बिरंगे फूलों को देख कर केवल बच्चे ही नहीं बल्कि हर उम्र का खुश हो जाता है। बच्चों के मन में हमेशा एक सवाल आता है कि फूलों को रंग बिरंगी रंग कौन दे जाता है और इनको खुशबू कौन दे जाता है।
18- Bacchon ki Poems: कौवा आया
कौवा आया कौवा आया
छीन किसी से रोटी लाया
एक लोमड़ी बड़ी सायानी
उसमे मुहं मे आया पानी
बोली भैया गीत सुनाओ
गीत सुनाकर मन बहलाओ
सुनकर यह कौवा हर्षाया
कावं कावं करके कुछ गाया
गिरी चोच से उसकी रोटी
भाग उठी लोमड़ी मोटी
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि कभी भी किसी से जबरदस्ती कुछ नहीं छीन ना चाहिए। एक को किसी की रोटी छीन कर ले कर आता है और उस रोटी पर एक लोमड़ी की नजर पड़ जाती है। जिसके बाद लोमड़ी बड़ी चालाकी के साथ कौवे की प्रशंसा करते हुए गाना गाने को कहती है। जैसे ही कौवा गाना गाता है उसके मुंह से रोटी गिरकर लोमड़ी के हत्थे लग जाती है और वह वहां से भाग निकलती है। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि लालच बुरी बला है।
19- Bacchon ki Poems: डाकिया
देखो एक डाकिया आया
थैला एक हाथ में लाया
पहने है वो खाकी कपड़े
चिट्ठी कई हाथ में पकड़े
बांट रहा घर-घर में चिट्ठी
मुझको भी दो लाकर चिट्ठी
चिट्ठी में संदेशा आया
शादी में है हमें बुलाया
शादी में सब जाएंगे हम
खूब मिठाई खाएंगे हम
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि जब भी हम डाकिए को देखते हैं तो मन संदेश आने के नाम से ही खुशी से झूमने लगता है। कई बार हमें अपनों की हर खबर का इंतजार रहता है और यह काम डाकिए के जरिए पूरा होता है।
20- प्यार दो दुलार दो (लेखक- प्रकाश मनु)
प्यार दो दुलार दो
हम बच्चो को प्यार दो
हमे शरारत भाती है
आपको गुस्सा आता है
आपको हम कैसे मना करे
जो जी मे आये वो करे
पर गुस्से को तो मार दो
हम बच्चो को प्यार दो
व्याख्या
इस Chote Bacchon ki Poem के माध्यम से लेखक प्रकाश मनु जी द्वारा कहा जा रहा है कि छोटे बच्चे प्यार और दुलार की भावना अपने बड़ों से रखते हैं। बच्चों को शरारत सुझती है और उनकी शरारत पर बड़ों को गुस्सा आता है। बड़ों के गुस्से पर बच्चे वह नहीं कर पाते जो वह करना चाहते हैं।
21- Bacchon ki Poems: बच्चों की बात
बच्चों की है बात निराली
तन के सुंदर मन के सच्चे
सबको लगते प्यारे बच्चे
सूरत इनकी भोली भाली
बच्चों की है बात निराली
चाहे जो भी हो मजबूरी
इनकी मांगे होती पूरी
इनके वचन न जाएं खाली
बच्चों की है बात निराली
इनसे घर आंगन सजता है
इनसे घर घर सा लगता है
इनसे घर आती खुशहाली
बच्चों की है बात निराली
मन में कोमल आशा लेकर
जीवन की अभिलाषा लेकर
करते सपनों की रखवाली
बच्चों की है बात निराली
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि यह बच्चे हैं उनके सुंदर और मन के सच्चे होते हैं। बच्चों की हर बात निराली होती है। बच्चों की सूरत भोली भाली और मन शरारत से भरपूर होता है। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि इन्ही बच्चों से घर की रौनक बढ़ती है और घर में खुशहाली आती है। बच्चों से घर का आंगन फूलों की तरह महत्व रहता है। फूलों की तरह बच्चों के सपने भी कोमल होते हैं और अपने सपने और जिद पूरी करवाने के लिए यह बड़े ही प्यार से बड़ों को मना लेते हैं।
22- बच्चे की चाह (लेखक- राधेश्याम प्रगल्भ)
सपने में चाह नदी बनूं
बन गया नदी
कोई भी नाव डुबोई मैंने
कभी नहीं
मैंने चाहा मैं बनूं फूल
बन गया फूल
बन गया सदा मुस्काना ही
मेरा उसूल
मैंने चाहा मैं मेंह बनूं
बन गया मेंह
बूंद बूंद बरसाती
रही नेह
मैंने चाहा मैं छाँह बनूं
बन गया छाँह
बन गया पथिक हारे को
मैं आरामगाह
मैंने चाहा मैं व्यक्ति बनूं
सीधा सच्चा
खुल गई आँख, मैंने पाया
मैं था बच्चा
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक राधेश्याम प्रगल्भ द्वारा बच्चों के सपने और चाह की बात बताई जा रही है। बारा कहा जा रहा है कि बच्चों के सपने बहुत कोमल होते हैं वह जो चाहते हैं पैसा खुद को बनाने में लग जाते हैं। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि बच्चे अगर फूलों जैसा बनने का सपना देखने तो वह निश्चित ही फूलों की तरह अपनी खुशबू सब में बिखेरना शुरू कर देते हैं।
23- सफाईपसंद बच्चे (लेखक- भगवती प्रसाद द्वेदी)
छि छि छि गंदे बच्चे
हम तो है अच्छे बच्चे
हमें गंदगी से नफरत
सदा सफाई की है लत
कपड़े लत्ते साफ़ सुथरे
रोज नहाने की आदत
रखते साफ़ गली कूचे
हम तो है अच्छे बच्चे
जो फैलाते है कचरे
हम उनको आगाह करें
अपनी अपनों की सेहत
की कुछ तो परवाह करें
तन मन स्वच्छ, वचन सच्चे
रखते हैं अच्छे बच्चे
देश हमारा स्वच्छ रहे
सभी नागरिक स्वस्थ रहे
कुदरत की हमजोली बन
पूरी दुनिया मस्त रहे
कभी न खाएंगे गच्चे
हम तो हैं अच्छे बच्चे
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक भगवती प्रसाद द्विवेदी द्वारा कहा जा रहा है कि कुछ बच्चे बचपन से ही सफाई पसंद होते हैं। उन्हें बचपन से ही साफ-सुथरे कपड़े और प्रतिदिन नहाने की आदत होती है और गंदगी से बेहद नफरत होती है। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि कुछ बच्चों को आसपास गंदगी और कचरा पसंद नहीं होता। जो बच्चे अपने आसपास और खुद को साफ सुथरा रखते हैं तो वह कम बीमार पड़ते हैं। घर का बना हुआ खाना खाना भी एक अच्छी आदत में आता है।
24- Bacchon ki Poems: यह बच्चा
कौन है पापा यह बच्चा जो
थाली की झूठन है खाता
कौन है पापा यह बच्चा जो
कूड़े में कुछ ढूँढा करता
देखो पापा देखो यह तो
नंगे पाँव ही चलता रहता
कपड़े भी है फटे पुराने
मैले मैले पहने रहता
पापा जरा बताना मुझको
क्या यह स्कूल नहीं है जाता
थोड़ा जरा डांटना इसको
नहीं न कुछ भी यह पढ़ पाता
पापा क्यों कुछ भी न कहते
इसको इसके मम्मी पापा
पर मेरे तो कितने अच्छे
अच्छे मम्मी पापा
पर पापा क्यों मन में आता
क्यों यह सबका झूठा खाए
यह भी पहने अच्छे कपड़े
यह भी रोज स्कूल में जाए
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा उन बच्चों के बारे में बात की जा रही है जो अनाथ होते हैं और फुटपाथ पर फटे पुराने, मेले कुचेले कपड़ों में तपती धूप में नंगे पांव कूड़े में खाने का ढूंढते हैं और झूटन मिलने पर खुश हो जाते हैं। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि बच्चा कहता है कि हमारे मम्मी पापा तो इतने अच्छे हैं कि हमें लाड प्यार के साथ-साथ अच्छा खाना खिलाते हैं और रोज स्कूल जाने की सीख देते हैं। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपनी इनकम से अनाथ बच्चों के लिए अच्छा सोचना चाहिए ताकि वह भी अपने भविष्य में पढ़ाई कर आगे बढ़ सके और अपना भविष्य सुधार पाए।
25- नए युग का बालक
घिसे पिटे परियों के किस्से नहीं सुनूंगा
खुली आँख से झूठे सपने नहीं बुनूँगा
मुझे पता चंदा की धरती पथरीली है
इसलिए धब्बों की छायाएं नीली है
चरखा कात रही नानी मत बतलाओं
पढ़े लिखे बच्चों को ऐसे मत झुठलाओ
इन्द्रधनुष के रंग इंद्र ने नहीं बनाएं
पृथ्वी का नहीं बोझ खड़ा कोई बैल उठाएं
मुझे पता है, बादल कब जल बरसाते हैं
मुझे पता है कैसे पर्वत हिल जाते हैं
नए जमाने के हम बालक पढ़ने वाले
कैसे मानें बगुलों के पर होंगे काले
हमें सुनाओं बातें जग की सीधी सच्ची
नहीं रही अब अक्ल हमारी इतनी कच्ची
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि पहले के बच्चे किस्से, कहानियां सुनकर खुश हो जाते थे लेकिन नए युग के बालक घिसी पीटी परियों की कहानियां सुनने वाले नहीं हैं। आज के नए युग के बालक की अकल इतनी कच्ची नहीं है कि सच और झूठ में फर्क ना देख पाए। आज कल बच्चे इतने समझदार हैं कि कब बारिश होती है और कब बर्फ पिघलती है। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि बच्चों को कभी भी झूठी बातें नहीं दिखानी चाहिए जो भी हकीकत है उनको केवल उसी का ज्ञान देना चाहिए। आजकल के बच्चों को भी पता है कि खुली आंखों से सपने नहीं देखे जाते।
26- हम बच्चे (लेखक- नरेंद्र सिंह नीहार)
हम बच्चों की अजब कहानी
कहो शरारत या शैतानी
सुबह सवेरे पढ़ने जाते
टीचर जी को पाठ सुनाते
होमवर्क की महिमा न्यारी
हनुमान की पूंछ से भारी
करते करते हम थक जाते
इसको पूरा ना कर पाते
खेलें कूदे शोर मचाएं
एक दूजे को खूब चिढ़ाएं
फिर भी मिलकर रहते सारे
नील गगन के चाँद सितारे
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक नरेंद्र सिंह निहार जी द्वारा बताया जा रहा है कि छोटे बच्चों की एक अलग ही कहानी होती है। बच्चे तो होते हैं शरारत से भरपूर शैतान है। छोटे बच्चे आपस में रहते भी हैं और एक दूसरे से झगड़ते भी है। घर में अपने खेलकूद से खूब शोर मचाते हैं और स्कूल के होमवर्क के नाम से थक जाते हैं। इनके मूड इनके हिसाब से बदलते रहते हैं।
27- बच्चे (लेखक- चन्द्रदत्त इंदु)
हंसी मांग कर फूलों से
और कुलाचे झूलों से
मांग लहर से चंचलता
तितली ने दी कोमलता
अटपट बोल हवाओं के
सपने दसों दिशाओं के
रंग सुबह की किरणों का
प्यार परी रानी से पा
ईश्वर बोला धरती से
मैं तुझको देता बच्चा
इसकी किलकारी सुनना
अपने सुख सपने बुनना
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक चंद्रदत इंदु द्वारा कहा जा रहे हैं कि बच्चों का हृदय फूलों के समान होते हैं। फूलों से हंसी मांग कर झूले में कुलांचे मार कर अपनी मस्ती में मस्त रहते हैं। बच्चों को लोगों से फर्क नहीं पड़ता उनसे जो प्यार से दुलार से बात करता है और खेलता है उसकी और ही आकर्षित होते हैं।
28- Bacchon ki Poems: मत रो मुन्ना (लेखक- शन्नो अग्रवाल)
मत रो मेरे प्यारे मुन्ने
जिद नहीं किया करते
छोटी छोटी बातों पर
रोया कभी नहीं करते
आँखों का तारा है तू
घर भर का है लाडला
रोकर कैसा हाल बनाया
कैसा है तू बावला
चल चलते हैं मेले में
हम दोनों मौज उडाएगें
कुल्फी भी हम खाएंगे
और गुब्बारे घर लाएंगे
आलू टिक्की पानी पूरी
कैंडी मिलकर खाएंगे
झूले में जब बैठेगे तो
गला फाड़ चिल्लाएगे
सर्कस में जोर जोर से
मारेगा जोकर सिटी
सब बच्चों को बांटेगा
गोली वह मीठी मीठी
रसगुल्ले भी खाएंगे
अब इतना भी सोच ले
मुस्का दे अब थोडा सा
आंसू अपने पोंछ ले
मस्ती करके मेले में
हम वापस घर आएँगे
ढेरों खेल खिलौने भी
हम खरीद कर लाएंगे।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक सुनो अग्रवाल जी द्वारा बच्चों को ना रुलाने की बात कही जा रही है। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि छोटे बच्चों की जब वेद पूरी नहीं की जाती है तो रोने लगते हैं। छोटी-छोटी बातों पर बच्चों को रुलाना अच्छी बात नहीं है। बच्चों के दिल बहुत कोमल होते हैं जिद्द पूरी ना होने पर उनके कोमल दिल टूट जाते हैं। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि घर का लाडला बच्चा जब रोता है तो अपना हाल खराब कर लेता है। बच्चों को जो चाहिए उन्हें वह तुरंत दे देना चाहिए लेकिन जरूरत से ज्यादा जिद पूरी करना भी आगे के लिए माता-पिता के लिए हानिकारक हो सकता है क्योंकि बच्चों को अपनी इज्जत मनवाने की आदत बन जाती हैं। छोटे-मोटे जिद पूरी करना अच्छी बात है लेकिन बच्चों को किसी भी चीज का आदि नहीं बनाना चाहिए कि कल आप की परवरिश पर कोई उंगली उठाए।
29- Chote Bacchon ki Poems: अच्छा खाना
खाओ तुम अच्छा खाना,
जो बनाये शरीर को तंदरुस्त,
खेलो ऐसा खेल जो शरीर को,
बनाये एकदम रोग मुक्त,
अच्छा खाना अच्छा पिना,
अच्छे से स्वस्थ जीवन जीना,
शरीर को तुम कभी भी,
न बीमारियों का घर बनने देना,
शरीर स्वस्थ नहीं होगा तो,
तुम कैसे काम करोगे,
बिना काम के जीवन में,
कैसे तुम आगे बड़ोगे,
इसलिए शरीर को स्वस्थ बनाना,
सबसे ज्यादा जरुरी है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि जब छोटे बच्चों को अच्छा और पौष्टिक खाना खिलाया जाता है तो बचपन से ही उनका शरीर तंदुरुस्त और स्वस्थ रहता है। बच्चों को शुरू से ही पौष्टिक आहार और ऐसे खेलों की आदत डालनी चाहिए जिससे कि वह रोग मुक्त रहें। बहुत सारे बच्चे हैं खाना ना खाने के कारण बहुत सारी बीमारियों का शिकार हो जाते हैं और बड़े होकर वैसे ही रहते हैं। अगर आप भी अपने बच्चों को तंदुरुस्त और स्वस्थ देखना चाहते हैं तो उन्हें बचपन से ही पौष्टिक आहार देना शुरू करें ताकि वह जीवन में रोग मुक्त रहें।
30- अपना घर
एक चिड़िया के बच्चे चार,
घर से निकले पंख पसार,
उत्तर से दक्षिण को जाये,
पूरब से पश्चिम को आये,
घूम-घाम पूरी दुनिया,
जब वो शाम को घर आये,
मम्मी को वो अपनी
बस एक बात सुनाये,
देख लिया हमने जग सारा,
अपना घर स्वर्ग सा प्यारा।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि छोटे बच्चे हैं अपने घर में सुरक्षित और पंख पसार कर रहते हैं। छोटा बच्चा जब तक अपने घर में हैं तब तक सुरक्षित है लेकिन बाहर की दुनिया का कोई भरोसा नहीं। मां बाप अपने बच्चों को कहीं भी लेकर जाए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनका ध्यान खुद से ज्यादा रखें। लेकिन अपना घर अपना होता है, स्वर्ग से भी प्यारा।
31- छुक छुक करती रेलगाड़ी आयी
छुक छुक करती रेलगाड़ी आयी,
पो पो पी पी सीटी बजाती आयी,
इंजन है इसका भारी-भरकम।
पास से गुजरती तो पूरा स्टेशन हिलाती,
धमधम धमधम धमधम धमधम,
पहले धीरे धीरे लोहे की पटरी पर चलती,
फिर तेज गति पकड़ कर छूमंतर हो जाती।
लाल बत्ती पर रुक जाती,
हरी बत्ती होने पर चल पड़ती।
देखो देखो छुक छुक करती रेलगाड़ी,
काला कोट पहन टीटी इठलाता,
सबकी टिकट देखता फिरता।
भाग भाग कर सब रेल पर चढ जाते,
कोई छूट न पाए इसलिए,
रेलगाड़ी तीन बार सीटी बजाती।
व्याख्या
इस कविता माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि जब छोटे बच्चे छुक छुक करती रेलगाड़ी आते देखते हैं तो बहुत खुश हो जाते हैं। भारी-भरकम इंजन के साथ सीटी बजाती हुई स्टेशन से गुजरती है तो पूरा स्टेशन उसकी तेज आवाज से हिल जाता है। रेलगाड़ी पहले धीरे-धीरे पटरी पर चलती है और फिर धीरे-धीरे गति तेज करते हुए आंखों के सामने ओझल हो जाती है। रेलगाड़ी हरी बत्ती होने पर देशभक्ति जाती है और लाल बत्ती हो जाने पर रुक जाती हैं। जैसे ही स्टेशन पर ट्रेन आती दिखती है तो भाग भाग कर लोग ट्रेन छूट जाने के डर से जल्दी-जल्दी उस पर चढ़ जाते हैं।
32- देखो देखो कालू मदारी आया
देखो देखो कालू मदारी आया,
संग में अपनी बंदरिया लाया।
डम डम डम डम डमरू बजाया,
यह देख टप्पू चिंटू-पिंटू आया।
सुनीता पूजा बबीता आयी,
देखो देखो कालू मदारी आया।
फिर जोर-जोर से मदारी ने डमरू बजाया,
बंदरिया ने उछल कूद पर नाच दिखाया।
उल्टा पुल्टा नाच देख कर सब मुस्कुराए,
फिर सब ने जोर-जोर से ताली बजाई।
देखो देखो कालू मदारी आया,
संग में अपनी बंदरिया लाया।
व्याख्या
कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि छोटे बच्चों को बंदर का खेल तमाशा देखना बहुत पसंद होता है। जब गली गली मदारी डमरू बजाता हुआ बंदर और बंदरिया को साथ लेकर चलता है तो उसे देखने के लिए बच्चों की भीड़ लग जाती है। बंदर बंदरिया ठुमक ठुमक कर अपना नाच दिखाते हैं जिसे देखकर बच्चों के चेहरों पर मुस्कुराहट आ जाती है और ताली बजा बजा कर खूब शोर मचाते हैं।
33- आओ हम सब झूला झूलें
आओ हम सब झूला झूलें
पैर बढ़ाकर नभ को छूलें
है बहार सावन की आई
देखो श्याम घटा नभ छाई
अब फुहार पड़ती है भाई
ठंडी – ठंडी अति सुखदायी
आओ हम सब झूला झूलें
पैर बढ़ाकर नभ को छूलें
कुहू – कुहू कर गाने वाली
प्यारी कोयल काली – काली
बड़ी सुरीली भोली – भाली
गाती फिरती है मतवाली
हम सब भी गाकर झूलें
पैर बढ़ाकर नभ को छूलें।
मोर बोलता है उपवन में
मास्त हो रहा है नर्तन में
चातक भी बोला वन में
आओ हम सब झूला झूलें
पैर बढ़ाकर नभ को छूलें।
व्याख्या
कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि बच्चों को झूला झूला बहुत अच्छा लगता है और जब भी वह छुट्टियों में अपने परिवार के साथ घूमने फिरने जाते हैं तो वहां पर पेड़ों में झूला डालकर झूलते हैं और खूब मजे करते। सावन की बहार हो और जंगलों में पंछियों की मीठी और सुरीली आवाज सुनते सुनते हैं मन में इच्छा होती है कि पैर बढ़ाकर आकाश को छू ले। कवि द्वारा कहां जा रहा है कि जिंदगी के मजे हर परिस्थिति में लेने चाहिए। हमेशा जीवन को दिल खोलकर जीना चाहिए क्योंकि जीना इसी का नाम है।
34- Bacchon ki Poems: गरम गरम लड्डू सा सूरज
गरम गरम लड्डू सा सूरज,
लिपटा बैठा लाली में,
सुबह सुबह रख आया कौन,
इसे आसमान की थाली मे।
मूंदी आँख खोली कलियों ने,
बागों में रंग बिरंगे फूल खिलाए,
चिड़ियों ने नया गान सुनाया,
भंवरों ने पंखों से ताली बजाई।
फुदक फुदक कर रंग बिरंगी,
तितलियों की टोली आई,
पंख फैलाकर मोर ने नाच दिखाएं,
तो कोयल ने भी कुक बजाई।
उठो उठो अब देर ना हो जाए,
कहीं सुबह की रेल निकल न जाए,
अगर सोते रह गए तो,
आगे नहीं बढ़ पाएंगे।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से कवि द्वारा बताया जा रहा है कि छोटे बच्चों के अटपटे और प्यारे सवाल बड़ों का दिमाग घुमा देते हैं। सूरज को देखकर बच्चों के मन में सवाल उठता है कि आसमान में आसमान में रखा हुआ लाल-लाल गर्म गर्म लड्डू जैसा यह क्या है? सूरज की रोशनी से हम सब की सुबह होती है उसी तरह बागों में रंग-बिरंगे फूलों की कलियां खिल कर गुनगुनाती है। सूरज की रोशनी से पशु पक्षियों में
35- Bacchon ki Poems: गोल गोल यह लाल टमाटर
गोल गोल यह लाल टमाटर
होते जिससे गाल टमाटर।
खून बढ़ाता लाल टमाटर
फूर्ति लाता लाल टमाटर।
स्वास्थ्या बनाता लाल टमाटर
मस्त बनाता लाल टमाटर।
हम खाएँगे लाल टमाटर
बन जाएँगे लाल टमाटर।
36- घो घो घो घोड़ा
घो घो घो घोड़ा
लकड़ी का घोड़ा
चाबुक न कोड़ा
जब इसको मोड़ा
भागा ये घोड़ा
भागा ये घोड़ा
लकड़ी का घोड़ा
घो घो घो घोड़ा।
37- वह देखो वह आता चूहा
वह देखो वह आता चूहा
आंखों को चमकाता चूहा
मूंछों में मुस्काता चूहा
लम्बी पूंछ हिलाता चूहा।
मक्खन रोटी खाता चूहा
बिल्ली से डर जाता चूहा।
38- Bacchon ki Poems: सबसे पहले
आज उठा मैं सबसे पहले
सबसे पहले आज सुनूंगा,
हवा सवेरे की चलने पर,
हिल, पत्तों का करना ‘हर-हर’
देखूंगा, पूरब में फैले बादल पीले,
लाल, सुनहले!
आज उठा मैं सबसे पहले
सबसे पहले आज सुनूंगा,
चिड़िया का डैने फड़का कर
चहक-चहककर उड़ना ‘फर-फर’
देखूंगा, पूरब में फैले बादल पीले,
लाल सुनहले!
आज उठा मैं सबसे पहले
सबसे पहले आज चुनूंगा,
पौधे-पौधे की डाली पर,
फूल खिले जो सुंदर-सुंदर
देखूँगा, पूरब में फैले बादल पीले।
लाल, सुनहले!
आज उठा मैं सबसे पहले
सबसे कहता आज फिरूंगा,
कैसे पहला पत्ता डोला,
कैसे पहला पंछी बोला,
कैसे कलियों ने मुंह खोला
कैसे पूरब ने फैलाए बादल पीले
लाल, सुनहले
आज उठा मैं सबसे पहले
39- चिड़िया रानी बड़ी सायानी
चिड़िया रानी बड़ी सायानी
दिन भर करती है मनमानी
चिड़िया रानी बड़ी सायानी
दिन भर करती है मनमानी।
फुदक फुदक कर गाती हैं
दाना चुन कर खाती हैं।
चिड़िया रानी बड़ी सायानी
दिन भर करती है मनमानी।
फुदक फुदक कर गाती हैं
दाना चुन कर खाती हैं।
40- Chote Bacchon ki Poems: रंग-बिरंगे प्यारे फूल
रंग-बिरंगे प्यारे फूल
प्रातः बाग में खिलते फूल
भौरें रहे कलियों पर झूल
सूरज जब सिर पर आता
खूब गर्मी बरसाता
लेकिन जब है बारिश आती
गर्मी सारी कहीं भाग जाती
तब खिलते हैं धरती पर
रंग-बिरंगे प्यारे फूल
सभी फूल हंसते हैं बाग में
जैसे बच्चों की मुस्कान
41- मेढक मामा
मेढक मामा
मेढक मामा,
खेल रहे क्यों पानी में,
पड़ जाना
बीमार कहीं मत
वर्षा की मनमानी में।
मेढक मामा
मेढक मामा,
नभ में बादल छाए हैं,
इसीलिए क्या
टर्र-टर्र के
स्वागत-गीत सुनाए हैं।
मेढक मामा,
उछलो-कूदो
बड़े गजब की चाल है,
हँसते-हँसते
मछली जी का
हाल हुआ बेहाल है।
मेढक मामा सच बतलाओ,
कब तक बोंबे जाओगे।
बढ़िया रेनी कोट सिलाओ,
फिर हीरो बन जाओगे।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेख द्वारा कहा जा रहा है कि वर्षा के पानी ज्यादा समय तक भीगना नही चाहिए क्योंकि बच्चे ही नही बड़े भी जल्द बीमार हो जाते हैं। काले बादल आसमान में जैसे ही छाते है तो पशु पक्षियों में भी खुशी के लहर दौड़ जाती है और उनके सुरीली आवाज़ कानों में पढ़ना शुरु हो जाती है जैसे कोयल की कु कु करना और मेढ़क का टर्राना आदि। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि मेढ़क जिस तरह कुद कुद कर मस्तानी चाल चलते हैं तो मछलियों को हस्ते हस्ते हाल बुरा हो जाता है।
42- गोल गोल
गोल गोल पानी
मम्मी मेरी रानी।
पापा मेरे राजा
फल खाए ताज़ा।
सोने की चिड़िया
चाँदी का दरवाजा।
उसमे कौन आएगा
मेरा भैया राजा।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से कवि द्वारा बताया जा रहा है कि सबकी बच्चो के लिए उनकी मां रानी और पापा राजा होते हैं क्योंकि वो अपने बच्चो की हर जिद्द पूरी करते हैं बिना किसी रोक टोक के। बचपन भी कितना प्यारा होता है जहा माता पिता राजा रानी और भाई भाईया राजा। हमारा घर किसी महल से कम नही और जहा सोने की चिड़िया और चांदी का दरवाजा।
43- नानी की कहानी
नानी नानी सुनो कहानी
एक था राजा एक थी रानी।
राजा बैठा घोड़े पर
रानी बैठी पालकी पर।
बारिश आई बरसा पानी
भीगा राजा बच गयी रानी।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से कवि द्वारा बताया जा रहा है कि हम सभी ने अपने बचपन में अपनी नानी मां से आवश्य ही कहानिया सुनी होगी। जिसमे से सबसे फेवरेट राजा और रानी की कहानी होती थी। बस यह कविता भी उसी में से एक है जहा एक राजा घोड़े पर तो रानी पालकी में सवार होकर आती है और बारिश के कारण राजा भीग जाता है और रानी पालकी की वजह से बच जाती हैं।
44- Bacchon ki Poems: मछली जल की रानी
मछली जल की रानी है
जीवन उसका पानी है।
हाथ लगाओ डर जाएगी
बाहर निकालो मर जाएगी।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से कवि द्वारा कहा जा रहा है कि मछली जो जल की रानी होती है और पानी ही उसका जीवन होता है। हाथ लगाने से डरने वाली मछली बिना पानी के अपने प्राण त्याग देती है। यह कविता सभी के जीवन में सदियों से चली आ रही है और हर बच्चे की पसंदीदा भी है।
45- छूटी रेल
छूटी मेरी रेल
रे बाबू छूटी मेरी रेल।
हट जाओ हट जाओ भैया
मैं न जानूं फिर कुछ भैया।
टकरा जाये रेल
धक् धक् धक धक् धू धू धू धू
भक् भक् भक् भक् भू भू भू भू
छक् छक् छक् छक् छू छू छू छू
करती आई रेल।
सुनो गार्ड ने दे दी सीटी
टिकट देखता फिरता टीटी।
छूटी मेरी रेल
व्याख्या
इस के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि छुक छुक करती तेजी से आती ट्रेन कुछ ही पल स्टेशन पर रूकती है और पल भर में आंखों से ओझल हो जाती है। गार्ड द्वारा सिटी देने पर ट्रेन के छुटने का सायरन होता है इसलिए हमें पहले ही उसमें चढ़ जाना चाहिए। कई बार हमारी लापरवाही के कारण ट्रेन छूट जाती है।
46- बसंत की हवा
बसंत की हवा के साथ
रंगती मन को
मलती चेहरे पर हाथ
ये होली।
लिए रंगों की टोली
लाल, गुलाबी, बैंगनी, हरी, पीली
ये नवरंगी तितली है।
आज तो जाएगी घर घर
दर दर ये मौज मनाएंगी
भूल पुराने झगड़े सारे
सबको गले लगाएगी
पीली फूली सरसौं रानी।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि जब बसंत ऋतु आती है तो केवल बच्चों का ही नहीं बड़ों के मन को भी रंग जाती है। रंगों का त्योहार होली और उसमें रंगो की टोली देख कर एक बार फिर से बच्चा बनने का मन कर जाता है। लाल, गुलाबी, हरी, पीली और अन्य रंगों को थाली में सजाकर आपसी मनमुटाव को भूलकर बसंत का उत्सव उत्साह से मनाना चाहिए।
47- नया साल
नया साल है नया साल है
खूब ख़ुशी है खूब धमाल है।
पढ़ने लिखने से छुट्टी है
घर बाहर हर पल मस्ती है।
खाना पीना माल टाल है
नया साल है नया साल है।
सभी ओर उत्सव की धूम है
लगा साथियों का हुजूम है।
गाना वाना मस्त ताल है
नया साल है नया साल है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि खुशी और धमाल के साथ नए साल का स्वागत करना चाहिए। नए साल वाले दिन पढ़ने लिखने से छुट्टी लेकर घर के बाहर अपनों के साथ कुछ पल मस्ती के बिताने चाहिए। नए साल का आगमन खुशी और उत्साह के साथ करना चाहिए। खाना-पीना, नाच गाना और खूब धमाल करना चाहिए।
48- Bacchon ki Poems: पूरब का दरवाज़ा
पूरब का दरवाज़ा खोल
धीरे-धीरे सूरज गोल।
लाल रंग बिखरता है
ऐसे सूरज आता है।
गाती हैं चिड़ियाँ सारी
खिलती हैं कलियाँ प्यारी।
दिन सीढ़ी पर चढ़ता है
ऐसे सूरज बढ़ता है।
ऐसे तेज़ चमकता है
गरमी कम हो जाती है
धूप थकी सी आती है।
सूरज आगे चलता है
ऐसे सूरज ढलता है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि पूरब की दिशा से धीरे-धीरे सूरज की किरणे जब निकलती है तो लाल रंग बिखेरते हुए अंधकार को मिटाकर रोशनी का स्वागत करती हैं। जैसे ही सुबह सवेरे सूरज की किरणें निकलती है तो चिड़िया और कोयल की सुरीली आवाज कानों में रस घोल देती है और कलियां खिलने लगती हैं। जैसे जैसे दिन ढलता है वैसे वैसे सूरज बढ़ता जाता है और तेजी से चमकने लगता है।
49- सबके मन को भाता टीवी (लेखक -शिक्षाप्रद बाल)
सबके मन को बहुत ही भाता टीवी
कितने करतब है दिखलाता।
कभी हँसाता कभी रुलाता
दूर देख की सैर कराता।
तरह तरह के स्वांग रचता
जादुई डिब्बा है कहलाता।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक शिक्षाप्रद बाल जी द्वारा बताया जा रहा है कि टीवी केवल बच्चों के ही नहीं बल्कि बड़ों के मन को भी बहलाता है। टीवी ऐसा मनोरंजन का साधन है जहां कभी हंसते हैं तो कभी रोते हैं और दूर देशों की सैर भी टीवी पर ही हो जाती है। अगर हम टीवी को जादुई डिब्बा कहे तो यह कहना गलत नहीं होगा।
50- आलू बोला (लेखक-शिक्षाप्रद जी)
आलू बोला मुझको खा लो
मैं तुमको मोटा कर दूंगा।
पालक बोली मुझको खा लो
मैं तुमको ताकत दे दूँगी।
गाजर, भिन्डी, बैंगन बोले
गोभी, मटर, टमाटर बोले।
अगर हमें भी खाओगे
जल्दी बड़े हो जाओगे।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि बच्चों को सब्जियां अवश्य खिलानी चाहिए क्योंकि सब्जियों में कई तरह के प्रोटीन, विटामिन आदि पोषक तत्व होते हैं। आलू खाने से बच्चों का वजन तेजी से बढ़ता है वही पालक खाने से विटामिन से ताकत मिलते हैं। हर सब्जी में कोई ना कोई पोषक तत्व होता है इसलिए बच्चों को बचपन से ही सब्जियां खिलाने की आदत अवश्य डालनी चाहिए ऐसा करने से बच्चे स्वास्थ और निरोगी रहते हैं।
51- Bacchon ki Poems: हे भगवान
हे भगवान, हे भगवान
हम सब तेरी हैं संतान।
ईश्वर हमको दो वरदान
पढ़ लिख कर हम बनें महान।
हमसे चमके हिन्दुस्तान।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि एक छोटा बच्चा भगवान से प्रार्थना करता है कि हे भगवान हम सब तेरी ही संतान है और हमें पढ़ लिखकर इतना महान बनने की शक्ति देना कि हिंदुस्तान का सितारा बनकर चमके।
52- क्लास मॉनिटर
यह मॉनिटर बन कक्षा के बड़ी शान दिखाते हैं,
क्लास में रौब है बाहर धक्के खाते हैं।
झूठी झूठी शिकायतों से हम सब को पिटवाते हैं,
मीठी मीठी बातों से टीचर जी को बहलाते हैं।
टीचर के ना आने पर खुद शासक बन जाते हैं,
ज़रा सा कुछ बोल दो टीचर से शिकायत करने जाते हैं।
छोटी छोटी बातों का बतंगड़ बनाते हैं,
मैडम इनको जल्दी बदलो हम सब यही चाहते हैं।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि कक्षा में मॉनिटर बनने के बाद बच्चों की शान बढ़ जाते हैं और वह अपना रोग ऐसा दिखाते हैं जैसे कि कहीं के राजा हो। घर पर और बाहर चाहे कितने ही धक्के क्यों ना खाएं लेकिन मॉनिटर अपनी झूठी शिकायतों से बच्चों को खूब पटवा आते हैं और अपनी अच्छी-अच्छी बातों से टीचर्स को अपनी और कर लेते हैं। द्वारा कहा जा रहा है कि कई बार कक्षा में टीचर के ना आने पर वे खुद ही कक्षा के शासक बन जाते हैं और छोटी-छोटी बात का बतंगड़ बना कर बच्चों को परेशान करते हैं।
53- अनोखा घर
सबका अपना होता है,
सबको रहना होता है।
और जहाँ सुख-दुःख होता है,
वह अनोखा घर होता है।
चार-दीवार के अंदर रहते सब,
समय पता नही बीत जाता है कब,
वह अनोखा घर होता है।
जहाँ सब अपना काम करते है,
मिल-जुलकर साथ हमेशा रहते है,
वह अनोखा घर होता है।
आज मनुष्य की हरकतों से घर बिखरता जा रहा है,
एकता का वातावरण पिघलता जा रहा है।
कहीं ऐसा ना हो कि कोई कहे पहले ऐसा होता था,
हर अच्छा घर, अनोखा घर होता था।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि प्रत्येक मनुष्य का एक ही सपना होता है कि हमारा अपना घर और जहां अपने साथ हो और सुख दुख साथ साथ शेयर करें। हर किसी का घर अपने लिए एक अनोखा घर होता है जहां समय अपनो के साथ कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि मिल जुल कर रहना ही एक मकान को घर बनाता है। आज के वातावरण और हरकतों के कारण घर जैसे बढ़ते जा रहे हैं और लोग एक दूसरे की शक्ल तक देखना पसंद नहीं करते।
54- Bacchon ki Poems: फूल
कितने सुंदर कितने प्यारे फूल
सब के मन को भाते फूल,
अद्भुत छटा बिखेरते फूल
इन्दर्धनुष के हरे रंग के फूल।
गजरा माला साज सजावट
कितने उपयोग में आते फूल,
महक मिठास चहुं ओर फैलाते
अपना अस्तित्व बताते फूल।
कई मौसमी कई बारहमासी
किस्म – किस्म के आते फूल,
मंद पवन में अटखेलिया करते
जैसे कुछ कहना चाहते फूल।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि बागों में इतने सुंदर सुंदर फूल खिलते हैं जिन्हें देखकर लोगों के चेहरों पर मुस्कान के साथ-साथ मन भी अंदर से खुश हो जाता है। इन सुंदर सुंदर फूलों का उपयोग गजरा, माला और सजावट आदि में चार चांद लगा देता है और लोगों को अपनी और आकर्षित करते है। एटा से हमें यह सीख मिलती है कि कभी भी मुरझाना नहीं चाहिए बल्कि हमेशा फूलों की तरह अपनी खुशबू से सारे जहां को महकाना चाहिए।
55- हम न रहेंगे
हम न रहेंगे
तब भी तो यह खेत रहेंगे,
इन खेतों पर घन लहराते
शेष रहेंगे,
जीवन देते
प्यास बुझाते
माटी को मदमस्त बनाते
श्याम बदरिया के
लहराते केश रहेंगे।
हम न रहेंगे
तब भी तो रतिरंग रहेंगे,
लाल कमल के साथ
पुलकते भृंग रहेंगे,
मधु के दानी
मोद मनाते
भूतल को रससिक्त बनाते
लाल चुनरिया में लहराते
अंग रहेंगे।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि जब हम इस दुनिया में ना रहेंगे तो हमारे चले जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता। यह जमी यह आसमा यह खेत यह खलियान सब वैसा ही रहता है कुछ नहीं बदलता। आज के समय में अपनों को अपनों से दूर होने से फर्क नहीं पड़ता।
56- Bacchon ki Poems: कस्बे की शाम
झुरमुट में दुपहरिया कुम्हलाई
खेतों में अन्हियारी घिर आई।
पश्चिम की सुनहरिया घुंघराई
टीलों पर, तालों पर।
इक्के दुक्के अपने घर जाने वाले पर
धीरे धीरे उतरी शाम।
आँचल से छू तुलसी की थाली
दीदी ने घर की ढिबरी बाली।
जम्हाई ले लेकर उजियाली,
जा बैठी ताखों में।
घर भर के बच्चों की आँखों में
धीरे धीरे उतरी शाम।
इस अधकच्चे से घर के आँगन
में जाने क्यों इतना आश्वासन
पाता है यह मेरा टूटा मन।
लगता है इन पिछले वर्षों में
सच्चे झूठे, खट्टे मीठे संघर्षों में।
इस घर की छाया थी छूट गई अनजाने
जो अब झुक कर मेरे सिरहाने कहती है
“भटको बेबात कहीं,
लौटोगे अपनी हर यात्रा के बाद यहीं
धीरे धीरे उतरी शाम।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि शहरों में रहने वाले लोगों की जिंदगी और छोटे-छोटे गांव और कस्बों में रहने वालों की जिंदगी में जमीन आसमान का फर्क होता है। शहरी लोग कई बार छुट्टियों में अपने होम टाउन और कस्बों में जाकर समय बिताना ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि कस्बों के कच्चे मकान, मिट्टी की सोंधी सोंधी खुशबू, खुले आसमान के नीचे सोना बड़ा सुकून देता है। सुबह सवेरे कोयल और चिड़ियों की आवाज सुनकर मधुर आवाज सुनकर उठना और खेतों में हरी हरी घास में नंगे पैर चलना एक बड़ा ही सुकून भरा एहसास दिलाता है जो किसी भी मनुष्य को शहरों के चकाचौंध वाले वातावरण में देखने को नहीं मिलता।
57- बिल्ली रानी
कितनी प्यारी, कितनी न्यारी,
बिल्ली रानी है अनूठी,
चुपके से अंदर यूँ घूस जाती,
पता चलने न देती।
पैर भी उनके बजते नहीं,
दूध खीर पी जाती,
कुछ न छोड़ती,
सारा चाट कर जाती।
मौक़ा मिलते ही
बिल्ली रानी अपना पेट भर लेती,
घर वाले देखते रह जाते,
बिल्ली रानी अपना काम कर लेती,
फिर भी सबको प्यारी लगती
बिल्ली रानी।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि बिल्ली रानी बड़े ही अनूठे अंदाज में सबके मन को बहला आती है और चुपके से लोगों के घर के अंदर घुस जाती है और उनको पता भी नहीं चलने देते। कई बार तो घर में रखा सामान जैसे दूध, खीर आदि चटखारे ले लेकर चट कर जाती है और आने की आहट तक नहीं देती। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि कई बार बिल्ली अपनी पेट पूजा कर बड़ी आसानी से निकल जाती है लेकिन लोगों को बहुत प्यारी भी लगती है।
58- मेरी किताब
मेरी किताब एक अनोठी किताब,
रहना चाहती हरदम मेरे पास।
बातें अनेक करती जुबानी
सिखलाती ढंग जीने का।
मेरे प्रश्नों के उत्तर इसके पास,
हल करती तुरंत बार-बार।
हर एक पन्ने का नया अंदाज़,
मजबूर करता मुझे समझने को बार-बार।
नया रंग नया ढंग,
मिलेगा भला ऐसा किस के पास।
मेरी किताब एक अनोठी किताब,
रहना चाहती हरदम मेरे पास।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि कुछ बच्चों को बचपन से ही किताबें पढ़ने का बहुत शौक होता है और उसे हर दम अपनी मनपसंद किताब अपने पास रखते हैं। जिंदगी जीने का सही ढंग कई बार किताबों में दी गई सीख से ही मिलता है। कई बार हमारे मन में आए सवाल किताबों में दिए गए जवाबों से ही हमारे मन को शांत कर देते हैं। किताब के हर एक पेज में कुछ ना कुछ ऐसा नया रंग देखने को मिलता है जो हमें बार-बार उसकी और आकर्षित करता है। किताबों से हमें शिक्षा और जिंदगी में आगे बढ़ने से लेकर कई सारी सीख मिलती है जो हमारे भविष्य में काम आती हैं।
59- सुबह
सूरज की किरणें आती हैं,
सारी कलियाँ खिल जाती हैं,
अंधकार सब खो जाता है,
सब जग सुंदर हो जाता है।
चिड़ियाँ गाती हैं मिलजुल कर,
बहते हैं उनके मीठे स्वर,
ठंडी ढंडी हवा सुहानी,
चलती है जैसे मस्तानी।
ये प्रातः की सुखबेला है,
धरती का सुख अलबेला है,
नई ताज़गी नई कहानी,
नया जोश पाते हैं प्राणी।
खो देते हैं आलस सारा,
और काम लगता है प्यारा,
सुबह भली लगती उनको,
मेहनत प्यारी लगती जिनको।
मेहनता सबसे अच्छा गुण है,
आलस बहुत बड़ा दुर्गुण है,
अगर सुबह भी अलसा जाए,
तो क्या जग सुंदर हो पाए।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि जैसे ही सूरज की पहली किरण धरती पर पड़ती है तो सारा अंधकार मिट जाता है, कलियां खिलने लगती हैं, चिड़ियां और कोयले मिलजुलकर मधुर आवाज में अपने गीत सुनाती हैं और जग सुंदर हो जाता है। ठंडी और मस्तानी हमारा जब चलती है तो मनुष्य के मन को अंदर तक शांत कर देती है और आलस जैसा दुर्गुण छोड़ने पर मजबूर कर देती है। जो लोग भविष्य में मेहनत और कुछ कर जाने की इच्छा रखते हैं वह कभी भी देर से नहीं बल्कि सुबह सवेरे अपने दिन की शुरुआत करते हैं।
60- Bacchon ki Poems: दादी मां
माँ से प्यारी दादी माँ,
घर की मुखिया दादी माँ।
बाहर से झगड़ा कर आते,
तब गोद में छुपाती दादी माँ।
मम्मी जब पीटने आती,
तब बचाती दादी माँ।
अपने हिस्से की चीजें,
हमें खिलाती दादी माँ।
रात को बिस्तर में बिठाकर,
कहानी सुनाती दादी माँ।
औरत-मर्द सब बाहर जाते,
घर में रहती दादी माँ।
मंदिर जैसे भगवान बिना,
घर जैसे बिन दादी माँ।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि बच्चों को मां से प्यारी दादी मां लगती है क्योंकि घर की सबसे बड़ी सदस्य और घर की मुखिया वही होती हैं। जब भी हम बाहर से किसी को मारकर झगड़ा करके आते हैं तो हमें मम्मी की मार से दादी मा ही बचाती हैं। रात को बिस्तर पर भी बैठाकर कर बड़ी प्यारी प्यारी कहानियां हमें दादी मां से ही सुनने को मिलते हैं। कई बार दादी मां अपने हिस्से की चीजें भी हमें खिला देती हैं। कवि द्वारा कहा जा रहा है जैसे मंदिर भगवान की मूर्ति के बिना अधूरा है वैसे ही एक घर दादा और दादी के बिना अधूरा लगता है।
61- क्लाउड
काले-काले उड़कर बादल
शानदारपानी भरकर बादल।
बादलों ने जब डाला डेरा,
छाया आकाश में घोर अंधेरा।
दूर से आए चलकर गीत,
लाए पानी भरकर गीत।
बालक बूढा नहीं कोई उदास,
बुझेगी तपती धरती के पत्ते।
नहीं भागेगा डर के गाने,
लाए पानी भरकर गाने।
धरा से लेकर पहाड़ की चोटी,
उन पर गिरती हुई मोटी-मोटी।
स्ट्रीमिंग आज जमकर गाने,
लाए पानी भरकर गाने।
गली-कूचों में पानी-पानी,
बादलों की यही कहानी है।
देता है जीवन मरकर गीत,
लाया पानी भरकर गीत।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि क्लाउड का हिंदी मतलब बादल होता है। जब आसमान ने बादल घिरकर आते हैं और आसमान में घोर अंधेरा छाने लगता है तो लोगों का मन खुशी से झूमने लगता है जो कि उनका मन बहलाने के लिए आसमान से पानी बरसने वाला है। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि जब बादल घिरकर आते हैं तो बारिश के पानी से गली कूचों में हर तरफ पानी ही पानी नजर आने लगता है और बच्चे बड़े ही मजे से छप छप करने लगते हैं। तपती धरती और पेड़ पौधे चारों तरफ का माहौल बारिश के पानी से ठंडा और खूबसूरत हो जाता है। बदलता बारिश का मौसम हर किसी के मूड को चुटकियों में बदल देता है।
62- चित्र
चित्र से बढ़ते हैं जैसे-तरह के रंग
लाल-पीले-नीले-हरे
आते हैं खो जाते हैं हमारी आंखों में
फिर भी छवि से खत्म नहीं होता
कभी भी कोई रंग।
रंग अलग-अलग तरह के
कभी अपने हल्के स्पर्श से तो कभी गाढ़े स्पर्श से
चिपके रहते हैं,
चित्र में स्थित प्रकृति और जनजीवन से।
सभी चाहते हैं गाढ़े रंग अपने लिए
लेकिन चित्रकार चाहता है
मिले उन्हें रंग
उनके व्यक्तित्व के अनुसार ही,
जो उघाड़े उनका जीवन सघनता में।
अक्सर यादें रह जाती हैं अच्छी कलाकृतियों की
रंग तक भी याद आते रहते हैं
लेकिन जो अंगुलियां गुजर गयी हजारों बार
इन पर ब्रश घुमाते हुए
कितना मुश्किल है समझ पाना
कौन सी भाषा में वे लिख गयी
और सचमुच क्या कहना चाहती हैं वे।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि छोटे हो या बड़े हो सभी को ड्राइंग करना और चित्र बनाना बेहद पसंद आता है। चित्रों से हमें रंगों का ज्ञान मिलता है। यह भी एक अनोखी कला होती है जो प्रकृति के सुनहरे और अद्भुत दृश्यों को अपनी चित्रकारी से कागज पर उतारना और उसमें रंगों से चार चांद लगाना। चित्रकारी एक ऐसा गुण है जो हर किसी के बस की बात नहीं और जिस के बस की बात है वे अपनी इस कला से सबका ध्यान अपनी और चुटकियों में आकर्षित कर सकता है। कई बार जो लोग अपने अल्फाजों से अपनी फीलिंग बयान नही कर सकते वह अपनी इस कला से लोगों तक अपनी बात शेयर कर देते हैं।
63- Bacchon ki Poems: सुप्रभात
नयन से नयन का नमन हो रहा है,
लो उषा का आगमन हो रहा है।
परत पर परत चांदनी कट रही है,
तभी तो निशा का गमन हो रहा है।
क्षितिज पर अभी भी हैं अलसाए सपने,
पलक खोल कर भी, शयन हो रहा है।
झरोखों से प्राची कि पहली किरण का,
लहर से प्रथम आचमन हो रहा है।
हैं नहला रहीं, हर कली को तुषारें
लगन पूर्व कितना जतन हो रहा है।
वही शाख पर हैं पक्षियों का कलरव,
प्रभाती सा लेकिन, सहन हो रहा है।
बढ़ी जा रही है जिस तरह से अरुणिमा,
है लगता कहीं पर हवन हो रहा है।
मधुर मुक्त आभा, सुगन्धित पवन है,
नए दिन का कैसा सृजन हो रहा है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि प्रत्येक सुबह हमारे लिए एक नई उषा का आगमन लेकर आती है। अपने दिन की शुरुआत हमेशा पॉजिटिव एनर्जी के साथ करनी चाहिए क्योंकि ऐसी सोच से निश्चित आपका पूरा दिन बहुत अच्छा गुजरता है। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि धीरे-धीरे वक्त बदलने के साथ परत पर परत चढ़ती रहती है और निशा का आगमन हो जाता है। कुछ लोग अपना पूरे दिन में कार्य तो करते हैं लेकिन धीरे-धीरे थके मन से और आलस के साथ करते हैं उसका कोई फायदा नहीं होता क्योंकि किसी भी कार्य की शुरुआत हमेशा एक जोश और उत्साह के साथ करनी चाहिए।
64- डाकिया आया
देखो एक डाकिया आया,
थैला एक हाथ में लाया।
पहने है वह खाकी कपड़े,
कई चिट्ठियां हाथ में पकड़े।
चिट्ठी में संदेशा आया,
शादी में है हमें बुलाया।
शादी में सब जाएंगे,
खूब मिठाई खाएंगे।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से कवि द्वारा कहा जा रहा है कि गली में डाकिया साइकिल पर थैला डाले हुए आता है, तो कुछ लोग बहुत खुश हो जाते हैं उन्हे देखकर कि उनके अपनों का संदेशा अवश्य ही डाकिया लेकर आया होगा। आज के समय में सभी लोग अपने संदेश फोन के माध्यम से भेज देते हैं, लेकिन कुछ लोग अभी भी ऐसे हैं जो डाकिए के जरिए अपने संदेश भिजवाते हैं।
65- तारे
लगते तारे कितने प्यारे, आसमान के हैं रखवाले,
आसमान में टीप–टिप करते, बच्चे इनके हैं मतवाले।
प्यारे–प्यारे ये चमकीले, सब को मन के भाने वाले,
शाम जब होने को आती, लाल रंग के ये हो जाते।
सारी रात बच्चों की भाँती, इधर उधर को सैर लगाते
सारी रात बातें कर–करके, सुबह होते ही घर को जाते।
दिन को सोते लूप–छुप करके, शाम को मन बहलाने आते,
जब बादल कड़के बिजली चमके, रोते अपने घर को जाते।
ऐसे बच्चों तुम भी चमके, पढ़ लिख कर जग के रखवाले,
तभी नाम रोशन हो सकता, इस जग के जो रहने वाले।
यही दुआएं हम सब की है, बनोगे तुम जग के रखवाले,
लगते तारे कितने प्यारे, आसमान के हैं रखवाले।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि जब अंधेरी रात में आसमान में तारे निकलते हैं तो पूरे आसमान को अपनी रोशनी से चमका देते हैं। यही तारे आसमान के रखवाले भी कहलाते हैं। रात में छत पर लेट कर घंटो आसमान में तारों की गिनती करना बच्चों को ही नहीं बल्कि बड़ों को भी अच्छा लगता है। प्यारे प्यारे चमकने वाले यह छोटे-छोटे तारे मन को मन को आते हैं और बच्चों की तरह इधर से उधर सैर लगाते हैं। आसमान में बिजली चमकती और बारिश का मौसम होता यह तारे मुंह लटका कर वापस अपने घर को चले जाते हैं। कविता से हमें यह सीख मिलती है कि भले ही आपका कद और रुतबा कितना ही छोटा हो लेकिन अपनी कामयाबी से खुद को इतना रोशन करना कि आप सारे जग को रोशनी प्रदान कर पाओ।
66- समोसे
बहुत बढ़ाते प्यार समोसे
खा लो‚ खा लो यार समोसे।
ये स्वादिष्ट बने हैं क्योंकि
माँ ने इनका आटा गूंधा
जिसमें कुछ अजवायन भी है
असली घी का मोयन भी है
चम्मच भर मेथी है चोखी
जिसकी है तासीर अनोखी
मूंगफली‚ काजू‚ मेवा है
मन–भर प्यार और सेवा है।
आलू इसमें निरे नहीं हैं
मटर पड़ी है‚ भूनी पिट्ठी
कुछ पनीर में छौंक लगा कर
हाथों से सब करीं इकट्ठी
नमक ज़रा सा‚ गरम मसाला
नहीं मिर्च का टुकड़ा डाला
मैं भी खालूं‚ तुम भी खा लो
पानी पी कर चना चबा लो
तुमसे क्या पूछूं कैसे हैं
जैसे हैं ये बस वैसे हैं
यानी सब कुछ राम भरोसे
अच्छे या बेकार समोसे।
बहुत बढ़ाते प्यार समोसे
खा लो खा लो‚ यार समोसे
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि बच्चे हो या बड़े हो समोसे खाना बहुत पसंद होता है लेकिन अगर समोसे मां के हाथ के बने हो तो कोई भी ना नहीं कह सकता। मां के हाथ के समूहों में अजवाइन, गरम मसाला, मिर्च मसाला, घी, मेथी और और मेवा का एक्स्ट्रा टेस्ट मिलता है। सबसे महत्वपूर्ण बात की मां के हाथ का प्यार उसमें ऐसा टेस्ट ले आता है कि जो बंदा समोसे नहीं दिखाता हो वह भी उंगलियां चाटता रह जाता है।
67- घोंसला
आज तूफान आया था घर के बरामदे मेँ
उजड़ गया तिनकों का महल एक ही झोंके मेँ
उस चिड़िया की आवाज़ आज ना सुनायी दी
कई दिनो से शायद
फिर से जूट गयी बेचारी सब सँवारने मेँ
बनते बिगड़ते हौंसले से बना फिर वो घोंसला
पर किसी को ना दिखा चिड़िया का वो टूटता पंख नीला
अब कैसे वो उड़े नील गगन में
जहाँ बसते थे उसके अरमान !
सबर का इम्तिहान उसने भी दिया
बचा लिया घरौंदा…
मगर कुर्बान ख़ुद को किया।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि घोंसला चाहे चिड़ियों का हो या या इंसानों का तूफानों से बचाना दोनों को ही आता है। हो सकता है कि तेज आंधी तूफान से आपके घरवाले का तिनका तिनका बिखर जाए लेकिन यदि आपने उसको समेटना सीख लिया तो आप परिस्थितियों से लड़ना जानते हो। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि हो सकता है कि आपको तिनका तिनका समेटने में कुछ वक्त लग जाए आप लोगों की नजर में नहीं आ पाए लेकिन एक दिन आपकी कामयाबी अवश्य ही लोगों की नजरों में भी आएगी और आप भी उनसे बच नहीं पाएंगे। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि जिंदगी में हर व्यक्ति को किसी न किसी कड़े इम्तिहान से गुजरना पड़ता है बस आप अपने साहस और हौसले से उस इंतिहान को पार करना है।
68- Bacchon ki Poems: जाड़े के दिन बीत गए हैं
जाड़े के दिन बीत गए हैं
गर्मी के दिन आए सोनू।
सोनू बोला बहुत ही दिक्कत
इस गर्मी में आती मोनू।
धरती तपती अंबर तपता
क्यारी सुखी, सूखे खेत।
बूढ़े भी मांगे हैं पानी
पक्षी होते बड़े बेचैन।
लूँ की हवाएं चलती तेज
आग नियन है तन को लगती।
सूख जाते हैं नदिया तालाबें
रूप यौवन है मुरझा जाती।
धूप के चलते वक्त डूबता
घर से निकले ना पंथी।
आलस से दिन बीत है जाता
विरान है पनघट,विरान है नदी।
मोनू बोला तब सोनू से
बहुत ही होती है परेशानी।
इसका एक उपाय है भाई
दुनिया जागे पेड़ लगाए।
पेड़ पौधों से मिलेगी छाया
बैठ नीचे कुछ काम करेंगे।
गर्मी फिर महसूस ना होगी
दिन ना जाएगा ऐसे जाय।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि सर्दियों के दिन जाते ही लोगों को गर्मी के आने की खुशी कम और खबर ज्यादा होने लगती हैं। सोनू अपने भाई मोनू से कहता है कि गर्मी के दिनों में बड़ी दिक्कत का सामना होने वाला है। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि तपता खेत, तपता आसमान के कारण पेड़ पौधे भी मुरझा कर सूख जाते हैं। बच्चे और बूढ़े बस ठंडा पानी मांगते रहते हैं और पशु पक्षी तो पानी के कारण बेचैन होते रहते हैं। गर्मी के दिनों में लोगों की हालत इतनी खराब हो जाती है कि घर से निकलने के लिए भी सौ बार सोचा जाता है। सारी नदियां और तालाब में सूखा पड़ जाता है कई बार तो सूखे के कारण फसलें भी बर्बाद हो जाती हैं। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि गर्मियों के दिनों में अपने आसपास के क्षेत्र में पेड़ पौधे लगाने चाहिए जिससे कि पशु पक्षी पेड़ों की छाया में बैठकर धूप से बचें पाएं और पशु पक्षियों के लिए जगह जगह पर पानी की व्यवस्था अवश्य करनी चाहिए।
69- स्कूल की दूर हुई भागम-भगाई
स्कूल की दूर हुई भागम-भगाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।
आराम से उठ मैनें ली अंगड़ाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।
मम्मी नहीं आज मुझ पर चिल्लाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।
पिकनिक पर जा सब मौज मनाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।
हाहा ठीठी संग करी मिल भाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।
जमकर खेला लूडो, आई-स्पाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।
टीवी, वीडियो से पापा ने पाबंदी हटाई
गर्मी की लो छुट्टी आई।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि गरमियां आते हैं स्कूलों से भागम भगाई की दौड़ खत्म हो जाती है और छुट्टियां हो जाती है क्योंकि गर्मी ही अपनी चरम सीमा पर होती है। रियो की छुट्टियां होते हैं बच्चे राहत की सांस लेते हैं क्योंकि तब की तेज धूप में स्कूल से वापस आना बच्चो को बड़ा भारी पड़ता है। गर्मियों की छुट्टियां में ही बच्चों के माता-पिता उन्हें पिकनिक मनाने ठंडी जगह पर ले जाते हैं और जहा जाकर बच्चे बहुत इंजॉय करते हैं। छुट्टियां आते ही टीवी, वीडियो गेम से पाबंदी हट जाती है क्योंकि घर से बाहर जाकर धूप में खेल नहीं सकते तो घर में सुकून से एक कोने में बैठ कर टीवी और वीडियो गेम ही खेल सकते हैं और गर्मी से बच सकते हैं।
70- हमारे विद्यालय के आँगन में
हमारे विद्यालय के आँगन में
खिलता हुआ गुलाब हो आप
हमारे अंधियारे जीवन में
ज्ञान का दीपक हो आप।
हम सब बच्चे थे नादान
पढ़ने में नहीं था ध्यान
हमारी भूलो को माफ करके
दे दिया विद्या का ज्ञान।
अपनी अनमोल शिक्षा को
खेल खेल से हमें सिखाया
संस्कारों का पाठ पढ़ाया
सही गलत का ज्ञान कराया।
हमारे निराश हारे मन में
आत्मविश्वास जगा दिया
मंजिल तक पहुंचाने का
रास्ता हमें दिखा दिया।
टीचर जी हमारे आँगन को
छोड़कर जा रहे हो आप
जीवन में सदा खुश रहो
यही है हमारी प्रभू से आस
अपनी खुशबू से महकातो रहो
सबकी बगिया को आप।
व्याख्या
इस कविता के मध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि हमारे टीचर हमारे विद्यालय के आंगन का खिलता गुलाब होते हैं जो हमें जीवन और विज्ञान से संबंधित ज्ञान देते हैं। हमारे अंधियारे जीवन में ज्ञान का दीपक हमारे अध्यापक ही होते हैं। हमारे अध्यापक ही हमें मंजिल तक पहुंचने का रास्ता दिखाते हैं। हमारे अध्यापक हमेशा अपने ज्ञान की खुशबू से हमारे विद्यालय की बगिया को बताते रहते हैं और हमें आगे सफल और आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा देते हैं। कुछ अध्यापक खेल खेल से हमें बहुत बड़े-बड़े पाठ हंसते-हंसते सिखा देते हैं और सही गलत का ज्ञान हमें हमारे अध्यापकों से ही मिलता है। ऐसे हमें यह सीख मिलती है कि एक शिष्य की सफलता के पीछे उसके अध्यापक का बहुत बड़ा हाथ होता है।
दोस्तों हम आशा करते हैं कि आपको अपने बच्चों के लिए दिलचस्प और मजेदार कविताएं अवश्य ही पसंद आई होंगी और आपने अपने बच्चों को अवश्य ही सुनाई होंगी। आगे भी हम आपके लिए इसी तरह मजेदार और Hindi Kavitaye लेकर आते रहेंगे कृपया आप अपना प्यार बनाए रखें।