हरिओम पवार की कविता: डॉ हरिओम पवार जी अपने समय में एक आला दर्जे के कवि रह चुके हैं।इनके द्वारा कुछ प्रमुख रचनाएं जैसे की घाटी के दिल की धड़कन, काला धन, इंद्र जी की मृत्यु और हम इंकलाब के गीत सुनते जाएंगे आदि द्वारा प्रकाशित की गई है जिसके लिए इस महान लेखक को कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। सोम पवार जी का जन्म यूपी के बुलंदशहर जिले के बूटेना गांव में 24 मई 1951 को हुआ था। पवार जी एक मिडिल क्लास फैमिली से बिलॉन्ग करने के कारण उनका बचपन इसी गांव में बीता था।
इनके द्वारा लिखी गई कुछ प्रमुख रचनाओं इतनी फेमस हुई है कि इन्हें बड़े-बड़े नेताओं के हाथों सम्मानित किया गया है। पवार जी पहले ऐसे लेखक हैं जिन्हें भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और मुख्यमंत्री जी द्वारा सम्मानित किया गया है। तो चलिए दोस्तों आज हम आपको अपने इस आर्टिकल के माध्यम से पवार जी द्वारा लिखी गई कविताओं के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी प्रदान करते हैं। यदि आपको भी हरिओम पवार की कविता को पढ़ाना है तो हमारे इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पढ़ें।
1-हरिओम पवार की कविता: कारगिल शहीदों की अमर गाथा
मै केशव का पाञ्चजन्य हूँ गहन मौन मे खोया हूं,
उन बेटो की याद कहानी लिखते-लिखते रोया हूं।
जिन माथे की कंकुम बिंदी वापस लौट नहीं पाई
चुटकी, झुमके पायल ले गई कुर्वानी की अमराई।
कुछ बहनों की राखी जल गई है बर्फीली घाटी में
वेदी के गठबंघन मिल गये हैं सीमा की माटी में।
पर्वत पर कितने सिंदूरी सपने दफन हुए होंगे
बीस बसंतों के मधुमासी जीवनहरण हुए होंगे।
टूटी चूडी, धुला महावर, रूठा कंगन हाथों का
कोई मोल नहीं दे सकता बासंती जज्बातों का।
जो पहले-पहले चुम्बन के बादलाम पर चला गया
नई दुल्हन की सेज छोडकर युद्धा काम पर चला गया।
उसको भी मीठी नीदों की करवट याद रही होगी
खुशबू में डूबी यादों की सलवट याद रही होगी।
उन आखों की दो बूंदों से सातों सागर हारे हैं
जब मेंहदी वाले हाथों ने मंगलसूत्र उतारे हैं।
गीली मेंहदी रोई होगी छुप के घर के कोने में
ताजा काजल छूटा होगा चुपके चुपके रोने में।
जब बेटे की अर्थी आई होगी सूने आंगन में..
शायद दूध उतर आया हो बूढी मां के दामन में।
वो विधवा पूरी दुनिया का बोझा सर ले सकती है,
जो अपने पती की अर्थी को भी कंधा दे सकती है।
मै ऐसी हर देवी के चरणो मे शीश झुकाता हूं,
इसिलिये मे कविता को हथियार बना कर गाता हू
जो सैनिक सीमा रेखा पर ध्रुव तारा बन जाता है,
उस कुर्बानी के दीपक से सूरज भी शरमाता है।
गरम दहानो पर तोपो के जो सीने आ जाते है,
उनकी गाथा लिखने को अम्बर छोटे पड जाते है।
उनके लिये हिमालय कंधा देने को झुक जाता है
कुछ पल को सागर की लहरो का गर्जन रुक जाता है।
उस सैनिक के शव का दर्शन तीरथ जैसा होता है,
चित्र शहीदो का मंदिर की मूरत जैसा होता है।
जिन बेटो ने पर्वत काटे है अपने नाखूनो से,
उनकी कोई मांग नही है दिल्ली के कानूनो से।
सेना मर-मर कर पाती है, दिल्ली सब खो देती है
और शहीदों के लौहू को, स्याही से धो देती है।
मैं इस कायर राजनीति से बचपन से घबराता हूँ
इसीलिए मैं कविता को हथियार बनाकर गाता हूँ।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि एक मां का लाल, एक पत्नी का सुहाग और एक संतान का पिता कैसे अपनी धरती माता की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर देता है। दोस्तों जैसे कि आप सभी लोग जानते हैं कि हम चैन और सुकून की नींद सो सके उसके लिए हमारे नौजवान हमारी और हमारे देश की रक्षा करने में 24 घंटे तैयार रहते हैं।
गर्मी की तपती धूप हो या फिर सर्दी की सर दर्द या बारिश में देश की रक्षा करना हो हमारे देश के अमर नौजवान कभी पीछे नहीं हटते। जब बात देश की आती है तो मैं कभी कायरों की तरह डर कर अपने कदम पीछे नहीं बल्कि एक वीर मां के लाल की तरह अपने कदम आगे बढ़ते हैं और सीने पर वार खाने से भी पीछे नहीं हटते। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि जब कारगिल में कोई नौजवान देश की रक्षा करते-करते शहीद होता है तो उसे बेटे की कहानी पर हर कोई रोता है।
एक नई नवेली दुल्हन अपने सिंदूर पायल और आंखों के काजल को जिंदगी भर तक के लिए त्याग देती है। न जाने कितनी सुहागन शादी के दिन ही अपने सुहाग को आखरी बार देखते हैं और युद्ध के कारण उन्हें अलविदा कह देती हैं कभी किसी ने सोचा है कि इन सब बातों के लिए इंसान का दिल कितना बड़ा होना चाहिए। बहुत सारे लोग अपनों को खोने के दर से आर्मी में नहीं भेजते लेकिन कवि द्वारा इस कविता के माध्यम से उन माओ को और उनके वीर नौजवानों हम कर उठा कर घर से सलाम करते हैं ।
हमेशा सम्मान करते रहेंगे क्योंकि देश की रक्षा करने के लिए भेजने वाली मां और सुहागानों का जिगर बहुत बड़ा होता है। यह हर किसी के बस की बात नहीं। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि यदि बात जब देश की रक्षा की आ जाए तो कभी भी अपने कदम पीछे हटकर कायरता साबित नहीं करनी चाहिए बल्कि दो कदम आगे बढ़कर सीने पर गोली खाकर देश का सम्मान बढ़ाना चाहिए क्योंकि हम भारत मां की संतान है और मां की रक्षा करना हमारा पहला धर्म है।
2-घाटी के दिल की धड़कन
अमरनाथ को गाली दी है भीख मिले हथियारों ने
चांद सितारे टांक लिए है खून लिपि दीवारों ने।
इसीलिए नाकाम रही है कोशिश सभी उजालों की क्योंकि यह सब कठपुतली हैं रावलपिंडी वालों की। अंतिम एक चुनौती दे दो सीमा पर पड़ोसी को गीदड़ कायरता ना समझे सिंघो की खामोशी को। हमको अपने खट्टे मीठे बोल बदलना आता है हमको अभी दुनिया का भूगोल बदलना आता है। दुनिया के सरपंच हमारे थानेदार नहीं लगते
भारत की प्रभुसत्ता के वह ठेकेदार नहीं लगते।
तीर अगर हमने तनी कमानो वाले अपने छोड़ेंगे
और ढाका तोड़ दिया लाहौर,कराची तोडेंगे।
आंख मिलाओ दुनिया के दादाओ से
क्या डरना अमेरिका के आकाओं से।
अपने भारत के बाजू बलवान करो
पांच नहीं सो एटम बम निर्माण करो।
मैं भारत को दुनिया का सिरमौर बनाने निकला हूं
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन निकला हूं।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि भारत के बाजू को इतना बलवान कर लो की कोई भी आपको हरा ना पाए। जैसे कि आप सभी लोग जानते हैं कि और मुल्कों के मुकाबले भारत को थोड़ा कमजोर समझ जाता है लेकिन अगर भारत अपनी पर आ जाए तो 100 मुल्कों को जितने की ताकत रखता है। कह ने का उद्देश्य केवल इतना ही है कि भारत की एक नीति है कि जो काम बातचीत से और सूझबूझ के साथ किया जा सकता है उसे काम में युद्ध या लड़ाई झगड़ा करके क्या फायदा भारत भाईचारे पर विश्वास रखता है इसीलिए बैठकर बात रखता है अपनी।
भारत के अलावा कई मुल्क ऐसे हैं जो अन्य मुल्कों पर विजय प्राप्त करने के लिए सीधा युद्ध करते हैं या फिर हमला करते हैं जो कि गलत है। अगर ठंडे दिमाग से सोचा जाए तो मुल्कों में हमला करने के समय कई मासूम और बेगुनह जनता पिसती है। सरकार का काम होता है देश को आगे बढ़ाने के लिए एकजुट और कदम से कदम बढ़ाकर चलना ना की जनता को अपने पैरों तले रोंधना ना।
हम उम्मीद करते हैं दोस्तों की आपको हरिओम पवार की कविता अवश्य ही पसंद आई होगी और उनके द्वारा लिखी गई कविताओं से हमें कुछ ना कुछ अच्छा सीखने को अवश्य मिला होगा। हम आपके लिए इसी तरह के लेख लिखते रहेंगे और आप हमेशा की तरह अपना प्यार और सपोर्ट हमारे लिए यूं ही बनाए रखें।