सुमित्रानंदन पंत कविताएं : हेलो दोस्तों। सुमित्रानंदन पंत जी एक बहुत ही लोकप्रिय कवि रह चुके हैं और यह एक ऐसे लेखक हैं जिन्होंने बहुत छोटी उम्र यानी के 7 वर्ष की आयु से ही कविताएं लिखना आरंभ कर दिया था। सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म 20 मई 1990 में प्रयागराज में हुआ था। इस महान लेखक को छायावादी युग के चार स्तंभ में से प्रमुख माना जाता था। सुमित्रानंदन जी का बचपन का नाम सुमित पंत था। तो चलिए फिर आज हम आपको सुमित्रानंदन पंत की कविताओं के बारे में जानकारी प्रदान करने वाले हैं यदि आप भी नंदन जी की कविताएं पढ़ने में रुचि रखते हैं तो हमारे इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पड़े।
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1-सुमित्रानंदन पंत कविताएं: जीना अपने ही में
जीना अपने ही मे एक महान कर्म है
जीने का हो सदुपयोग यह मनुज धर्म है।
अपने ही में रहना एक प्रबुद्ध कला है
जग के हित रहने में सबका सहज भला है।
का प्यार मिले जन्मों के पुण्य चाहिए
जग जीवन को प्रेम सिन्धु में डूब चाहिए।
ज्ञानी बनकर मत नीरस उपदेश दीजिए
लोक कर्म भव सत्य प्रथम सत्कर्म कीजिए।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि जिंदगी जीना भी एक महान कार्य है जहां जीने का सदुपयोग हमारा धर्म है। कुछ लोग अपने में ही खुश रहते हैं यह एक अद्भुत कला है। कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि अपना जीवन ऐसे जियो जहां पर हर कार्य में हमारे जग का हिट हो और जब का प्यार हमेशा मिलता रहे। हर किसी को ज्ञानी बनाकर उपदेश देने से बेहतर है कि काम बोले और ऐसा बोले कि दूसरा आपकी बात सुनने को मजबूर हो जाए।
2- अमर स्पर्श
खिल उठा हृदय,
पा स्पर्श तुम्हारा अमृत अभय। खुल गए साधना के बंधन,
संगीत बना, उर का रोदन,
अब प्रीति द्रवित प्राणों का पण,
सीमाएँ अमिट हुईं सब लय। क्यों रहे न जीवन में सुख दुख
क्यों जन्म मृत्यु से चित्त विमुख?
तुम रहो दृगों के जो सम्मुख
प्रिय हो मुझको भ्रम भय संशय। तन में आएँ शैशव यौवन
मन में हों विरह मिलन के व्रण,
युग स्थितियों से प्रेरित जीवन
उर रहे प्रीति में चिर तन्मय। जो नित्य अनित्य जगत का क्रम
वह रहे, न कुछ बदले, हो कम,
हो प्रगति ह्रास का भी विभ्रम,
जग से परिचय, तुमसे परिणय। तुम सुंदर से बन अति सुंदर
आओ अंतर में अंतरतर,
तुम विजयी जो, प्रिय हो मुझ पर
वरदान, पराजय हो निश्चय।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि कुछ लोग इतनी पवित्र आत्मा के होते हैं यदि उनका एक स्पर्श भी हमारे हृदय में एक चमक और खुशी की लहर सा दौड़ जाता है। उसे व्यक्ति के स्पर्श से जीवन साधना के बंधन की तरह खुल जाता है तो सोचो उसे इंसान का हमारे जीवन में होना हमारे लिए कितना अहम होगा। कवि द्वारा यह भी बताया जा रहा है कि जीवन में सुख-दुख, जीवन मृत्यु तो लगा ही रहता है ।
लेकिन जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ाने के लिए किसी ऐसे का साथ होना भी बहुत जरूरी है जो हमें कदम कदम पर चुनौतियों का सामना करने का हौसला दे और कभी साथ छोड़ने का ख्याल तक अपने मन में ना लाएं। कविता से हमें यह सीख मिलती है कि वक्त और पैसों को देखकर कभी भी किसी को दोस्त ना बनाएं यदि आप किसी को अपने जीवन में ला रहे हैं तो उसे इंसान का कोमल और साफ हृदय देखें जो आपका साथ कभी ना छोड़े।
3-सुमित्रानंदन पंत कविताएं: सुख दुख
सुख-दुख के मधुर मिलन से
यह जीवन हो परिपूरन;
फिर घन में ओझल हो शशि,
फिर शशि से ओझल हो घन। मैं नहीं चाहता चिर-सुख,
मैं नहीं चाहता चिर-दुख,
सुख दुख की खेल मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख। जग पीड़ित है अति-दुख से
जग पीड़ित रे अति-सुख से,
मानव-जग में बँट जाएँ
दुख सुख से औ’ सुख दुख से। अविरत दुख है उत्पीड़न,
अविरत सुख भी उत्पीड़न;
दुख-सुख की निशा-दिवा में,
सोता-जगता जग-जीवन। यह साँझ-उषा का आँगन,
आलिंगन विरह-मिलन का;
चिर हास-अश्रुमय आनन
रे इस मानव-जीवन का।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि जब तक जीवन में सुख-दुख ना हो तब तक हमारा जीवन पूर्ण नहीं हो सकता। भगवान ने जिंदगी केवल सुख और शांति में बैठने के लिए नहीं दिए बल्कि सुख के साथ-साथ दुख और चुनौतियों का सामना करने के लिए भी भगवान ने हमें चुना है। जिस प्रकार घने काले बादल के बाद आकाश एकदम साफ चमकता है इस तरह जीवन में दुख के काले बादल भी कभी ना कभी छटते हैं।
इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि हमारे जीवन में सुख-दुख आंख में चोली के खेल की तरह है कभी सुख है तो कभी दुख है। अहम बात यह है कि जिस प्रकार हम सुख का स्वागत खुशी के साथ करते हैं इस तरह दुख का स्वागत भी हमें बहादुर के साथ उसका सामना करना होगा। उस पर विजय भी पानी होगी। वो कहते है ना कि जीना इसी का नाम है।
4- स्त्री कविता
यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी उर के भीतर,
दल पर दल खोल हृदय के अस्तर
जब बिठलाती प्रसन्न होकर
वह अमर प्रणय के शतदल पर। मादकता जग में कहीं अगर, वह नारी अधरों में सुखकर,
क्षण में प्राणों की पीड़ा हर,
नव जीवन का दे सकती वर
वह अधरों पर धर मदिराधर। यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर,
वासनावर्त में डाल प्रखर
वह अंध गर्त में चिर दुस्तर
नर को ढकेल सकती सत्वर।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि यदि धरती पर कहीं स्वर्ग है तो वह एक नारी के हृदय में है। जिस प्रकार एक नारी अपने घर संसार को सजाने के लिए खुशी खुशी प्रसन्न होकर घर को सजाती है वहां उसके कोमल और स्वर्ग जैसे हृदय का पता चलता है। लोग ईट पत्थर के मकान बनाते हैं लेकिन उसे घर बनाने का काम एक नारी का होता है। आपकी जानकारी के लिए दोस्तों हम आपको बताना चाहेंगे कि एक नारी का काम केवल घर संभालना नहीं बल्कि जीवन की विपरीत परिस्थितियों में खुद को साबित करना भी आता है।
चाहे खुद पर हो रहे अत्याचार हो या फिर किसी दूसरे के साथ होने वाला अन्याय हो। एक नारी जिस तरह सरस्वती और लक्ष्मी का रूप मानी जाती है वही अपने या अपने परिवार पर होने वाले अत्याचारों के लिए वे दुर्गा और काली भी बन सकती है। इस कविता उद्देश्य केवल इतना ही है कि एक नारी को कभी भी एक कमजोर औरत समझने की भूल नहीं करनी चाहिए बल्कि उसको पूरा मान सम्मान देना चाहिए।
5-सुमित्रानंदन पंत कविताएं: भारतमाता
भारत माता
ग्रामवासिनी।
खेतों में फैला है श्यामल
धूल भरा मैला सा आँचल,
गंगा यमुना में आँसू जल,
मिट्टी कि प्रतिमा
उदासिनी। दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन,
अधरों में चिर नीरव रोदन,
युग युग के तम से विषण्ण मन,
वह अपने घर में
प्रवासिनी। तीस कोटि संतान नग्न तन,
अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्र जन,
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
नत मस्तक
तरु तल निवासिनी। स्वर्ण शस्य पर -पदतल लुंठित,
धरती सा सहिष्णु मन कुंठित,
क्रन्दन कंपित अधर मौन स्मित,
राहु ग्रसित
शरदेन्दु हासिनी। चिन्तित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित,
नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित,
आनन श्री छाया-शशि उपमित,
ज्ञान मूढ़
गीता प्रकाशिनी। सफल आज उसका तप संयम,
पिला अहिंसा स्तन्य सुधोपम,
हरती जन मन भय, भव तम भ्रम,
जग जननी
जीवन विकासिनी।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि हम भारतमाता के गुणों की कितनी भी व्याख्या वह कम ही होगी। हमारे भारत में खेतों में फैला हुआ हरा भरा श्यामल और धूल भरा मेला सा आंचल यह आपको केवल हमारे भारत मां की धरती पर ही देखने को मिलता है। हमारे भारत की अलग-अलग तरह की संस्कृतियों लोगों के दिलों में एक अलग ही छाप छोड़ती हैं। चाहे वृंदावन की होली हो या फिर धूमधाम से मनाया जाने वाला दीपावली का पर्व हो।
आज हम जिस भारत माता के गुना की प्रशंसा कर रहे हैं वह भी हमारे बहादुर नौजवानों के बलिदानों का कर्ज है जो हम आजाद भारत के निवासी हैं और खुशी-खुशी अपना जीवन अपनी धरती पर व्यतीत कर रहे हैं। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि हमेशा हमें भारत माता का मान सम्मान करना चाहिए और उसके सम्मान के खातिर यदि अगर अपने प्राणों को भी त्यागना पड़ जाए तो हमें पीछे नहीं हटना चाहिए।