श्रीकांत वर्मा : चर्चित लेखक श्रीकांत वर्मा जी का जन्म छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में 18 सितंबर 1931 को हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा बिलासपुर के एक इंग्लिश मीडियम स्कूल से शुरू हुई और से ही उन्होंने बीए तक की पढ़ाई की। श्रीकांत वर्मा जी ने भी बहुत सारे कवियों की तरह ही जिंदगी में काफी उतार-चढ़ाव देखे लेकिन उनके इरादे इतनी मजबूत थे। देर से ही सही लेकिन उन्हें सफलता की प्राप्ति हुई। तो चलिए दोस्तों आज हम आपको अपने आर्टिकल के माध्यम से श्रीकांत वर्मा जी की कुछ मशहूर कविताओं के बारे में जानकारी प्रदान करने वाले हैं यदि आपको श्रीकांत वर्मा जी की कविताएं पढ़ने अच्छा लगता है तो हमारे इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पड़े हैं।
श्रीकांत वर्मा की कविताएं
हम आपको श्रीकांत वर्मा जी की कुछ चर्चित कविताओं के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी प्रदान करने वाले हैं यदि आप ही जानना चाहते हैं तो अंत तक हमारे साथ बने रहे। श्रीकांत जी की चर्चित कविताएं कुछ इस प्रकार है कि
1-श्रीकांत वर्मा : एक और ढंग
![श्रीकांत वर्मा](https://poemsforallthings.com/wp-content/uploads/2023/09/DAAG-300x300.jpeg)
भागकर अकेलेपन से अपने
तुम में मैं गया
सुविधा के कई वर्ष
तुम में व्यतीत किया
कैसे ?
कुछ स्मरण नहीं
मैं और तुम
अपने दिनचर्या के
पृष्ठ पर
अंकित थे
एक संयुक्त अक्षर।
क्या कहूं लिपि की नीति
केवल लिपि की नियति थी
तुम में से होकर भी
बस कर भी
संग संग रहकर भी
बिल्कुल असंग हूं।
सच है तुम्हारे बिना जीवन अपंग है।
लेकिन क्या लगता है मुझे
प्रेम
अकेले होने का हीं
एक और ढंग है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक श्रीकांत वर्मा जी द्वारा बताया जा रहा है कि आप अपने अकेलेपन से कितना ही क्यों ना भाग ले लेकिन अंत में मनुष्य को अकेले ही रहना है। यह भी जीने का एक अलग ही ढंग है। एक ऐसा सत्य जिसे कोई झुठला नहीं सकता कि मनुष्य अकेला ही इस दुनिया में आता है और अकेला ही इस दुनिया से जाता है।
हो सकता है कि आपके अपनों और आपके प्यार के बिना आपका जीवन बिन पहियों की गाड़ी की तरह हो बिल्कुल खाली और अपंग लेकिन एक बात कभी नहीं भूलनी चाहिए कि आपका साथ कोई दे या ना दे लेकिन जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना मनुष्य को अकेले ही करना पड़ता है। गीता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि कभी भी किसी के साथ की उम्मीद ना लगाओ बल्कि खुद ही अपने ढंग से जीने की शुरुआत करो और बिना किसी सहारे के आगे बढ़ो।
2- वह मेरी नियति थी
कई बार मैं उससे ऊबा और
नहीं जानता हूं किस और चला गया।
कई बार मैने संकल्प किया
कई बार मैने अपनों को
विश्वास दिलाने की कोशिश की
हम में से हर एक संपूर्ण है।
कई बार मैंने निश्चय किया
जो होगा सो होगा रह लूंगा
और इस खयाल पर
मुग्ध होता हुआ
कि मैं एक पहाड़ हूं
समूचे आकाश को
अकेला सह लूंगा।
कई बार मैंने पुरुष का नकाब ओढ़
वह कुछ छुपाना चाहा
जो अंदर कुरेद रहा था।
कई बार एक अंधेरे से निकाल
दूसरे अंधेरे में जाने की कोशिश की,
लेकिन प्रत्येक बार रुका और मुड़ा
ओरनहीं जानता हूं क्यों
अपनी ही बनाए हुए रास्तों को
अपनी ही पीठ लाद
वहां लौट आया
वह जहां निढाल पड़ी हुई थी
कई बार मैं उससे ऊबा और
लेकिन प्रत्येक बार में वही लौट आया।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक श्रीकांत वर्मा जी द्वारा कहा जा रहा है कि कई बार हमारी नीयति हमारे साथ ऐसे खेल-खेल जाती है जहां दिन रात तपती धूप में मेहनत करने के बाद हम वहीं आ खड़े होते हैं जहां से हमने आगे बढ़ाने की शुरुआत की थी। कई बार अपनी जिम्मेदारियां को पूरा करने के लिए हम अपनी पीठ पर उन जिम्मेदारियां को लादकर अपनी मंजिल की और बढ़ते हैं और घूम फिर कर थक हार कर इस एक रास्ते पर ए खड़े होते हैं। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है की कई बार नियति में जो लिखा है वह होना ही है इसलिए कभी भी कठिन परिस्थितियों से उभकर निढाल नहीं होना चाहिए बल्कि बिना फल की चिंता किए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।
3-श्रीकांत वर्मा : मेरी मां की आंखे
मेरी मां की डब डब आखे
मुझे देखती है यूं
जलती फैसले कटती शाक
मेरी मां की किसान आंखें।
मेरी मां की कोई आंखें
मुझे देखती है यूं
शाम गिरे नजरों को फैलाकर आंखें
मेरी मां की उदास आंखों।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक श्रीकांत वर्मा जी द्वारा बताया जा रहा है कि एक संतान के लिए उसकी मां क्या है? वह केवल एक मां ही जा सकती है। बच्चों के उदास होने पर मां की आंखें उदास हो जाती हैं और बच्चे के ओझल होने पर मां की आंखें हसरत भरी नजरों से उसके घर वापसी का इंतजार करते हैं। इस कविता के माध्यम से कवि द्वारा मां के बलिदानों को व्यक्त किया जा रहा है। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है की संतान चाहे कैसी भी हो लेकिन मां हर वक्त उसके लिए चिंता करती रहती है और अपना प्यार बिना किसी लालच के निछावर करती रहती है।
4- घास
अंधकार कछुए सा बैठा पृथ्वी पर
कछुए पर बैठा है नीला आकाश
अपने बड़े बोझ के नीचे भी
नहीं छपी छोटी सी यह घास।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक श्रीकांत वर्मा जी द्वारा कहा जा रहा है कि खेत खलिहानों में निकली हुई छोटी सी घास किसी के भी बोझ चल नहीं दब सकती। चाहे सर पर अंधकार बैठा हूं या फिर नीला आकाश। कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है जिस प्रकार छोटी सी घास कभी भी किसी बोझ ताले नहीं दबती किसी प्रकार आपको भी किसी से नहीं बना चाहिए ना ही किसी के डर से और ना ही किसी की धमकियों से।
5-श्रीकांत वर्मा : केवल अशोक लोट रहा है
केवल अशोक लौट रहा है
और सब
कलिंग का पता पूछ रहे हैं
केवल अशोक सिर झुकाये हुए है
और सब
विजेता की तह चल रहे हैं
केवल अशोक के कानों में चीख
गूंज रही है
और सब हंसते-हंसते दोहरे हो रहे हैं
केवल अशोक ने शष्त्र रख दिए हैं
केवल अशोक लड़ रहा था।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक श्रीकांत वर्मा जी द्वारा बताया जा रहा है आप लोगों ने अशोक का इतिहास तो पढ़ा ही होगा। अपने बचपन में ही स्कूलों में अशोक की वीरगाथा अवश्य ही अपने किस्से कहानियों में सुनी होगी। इस कविता का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि आपको भी अपने जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना अशोक की तरह ही शास्त्र उठाकर करना चाहिए ना कि देखने वालों में शामिल होना चाहिए।
6- दूर उस अंधेरे में कुछ है, जो बजता है
दूर उस अंधेरे में कुछ है, जो बजता है
शायद वह पीपल है
वहां नदी घाटों पर थक कोई सोया है
शायद वह यात्रा है
दीप बाल कोई, रतजगा यहां करता है
शायद वह निष्ठा है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक श्रीकांत वर्मा जी द्वारा बताया जा रहा है कि कभी कभी अंधेरे में बैठकर होने वाली हलचल के शोर को सुनना यकीनन आपको आपकी परेशानी का रास्ता भी मिलेगा और उसका हल भी अवश्य ही निकल आएगा। रात के अंधेरे में पीपल के पत्तों का शोर हो या फिर नदी के घाट पर सोया हुआ कोई थक यात्री रात के अंधेरे में ही मां की आवाजों का शोर गुंजता है।
7-श्रीकांत वर्मा : हस्तिनापुर में सुनने का रिवाज नहीं
मैं फिर कहता हूँ
धर्म नहीं रहेगा, तो कुछ नहीं रहेगा
मगर मेरी
कोई नहीं सुनता!
हस्तिनापुर में सुनने का रिवाज नहीं
जो सुनते हैं
बहरे हैं या
अनसुनी करने के लिए
नियुक्त किए गए हैं
मैं फिर कहता हूँ
धर्म नहीं रहेगा, तो कुछ नहीं रहेगा –
मगर मेरी
कोई नहीं सुनता
तब सुनो या मत सुनो
हस्तिनापुर के निवासियो! होशियार!
हस्तिनापुर में
तुम्हारा एक शत्रु पल रहा है, विचार –
और याद रखो
आजकल महामारी की तरह फैल जाता है
विचार।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक श्रीकांत वर्मा जी द्वारा बताया जा रहा है कि भगवान ने इस दुनिया के लोगों को एक समान बनाया है यहां कोई उच्च नीच जात-पात नहीं लेकिन फिर भी हस्तिनापुर में सुनने का रिवाज नहीं। इस कविता के माध्यम से हमें यह सीख मिलती है यदि आपको कोई ज्ञान की सीख दे रहा है तो उसकी सिख को कभी भी अनदेखा नहीं करना चाहिए इसलिए हमेशा ज्ञानी लोगों के साथ बैठना चाहिए क्योंकि कई बार उनके द्वारा दिया गया ज्ञान हमारे बहुत कम आ जाता है।
हम आशा करते हैं दोस्तों की आपको हमारे आज के आर्टिकल से कुछ ना कुछ अवश्य ही नया सीखने को मिला होगा। आगे भी हम आपके लिए इसी तरह ज्ञान से भरपूर आर्टिकल्स लिखते रहेंगे और आप हमेशा की तरह हमारे आर्टिकल्स को सपोर्ट करते रहें और प्यार देते रहें।