शमशेर बहादुर सिंह : हेलो दोस्तों आज हम आपको एक बहुत ही प्रसिद्ध लेखक शमशेर बहादुर सिंह जी की कविताओं से रूबरू कराने जा रहे हैं। यह प्रसिद्ध लेखक अपने समय के बहुत ही जाने-माने निबंधकार, लेखक और शेयर थे। शमशेर बहादुर सिंह जी का जन्म 13 जनवरी 1911 को देहरादून में हुआ था। इनके द्वारा लिखी गई कविताओ में आपको प्यार, मोहब्बत और जीवन में आगे बढ़ाने के लिए मोटिवेशन आदि सभी तरह के एहसास देखने को मिलते हैं। यह उसे समय उर्दू और हिंदी भाषा के बेहद प्रसिद्ध कवि थे। आपको भी कविताएं पढ़ने और सुना अच्छा लगता है तो हमारे इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पड़े। तो चलिए फिर बिना देरी किए बहादुर सिंह जी की कविताओं पर नजर डालते हैं जो कि इस प्रकार हैं।
1-शमशेर बहादुर सिंह : दिल
मेरी कायनात अकेली है और मैं
बस अब ख़ुदा की जात अकेली है, और मैं।
तुम झूठ और सपने का रंगीन फ़र्क थे
तुम क्या, ये एक बात है, और मैं।
सब पार उतर गए हैं, अकेला किनारा है
लहरें अकेली रात अकेली है, और मैं।
तुम हो भी, और नहीं भी हो – इतने हसीन हो
यह कितनी प्यारी रात अकेली है, और मैं।
मेरी तमाम रात का सरमाया एक शमअ
ख़ामोश, बेसबात, अकेली है – और मैं।
‘शमशेर’ किस को ढूँढ़ रहे हो हयात में
बेजान-सी इयात अकेली है, और मैं।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि बहुत सारे लोग अपने जीवन में ऐसे होते हैं कि वह किसी के साथ की केवल कामना कर सकते हैं। हकीकत में पूरी कायनात में वह केवल अकेले होते हैं। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि जो लोग अपनी जिंदगी में अकेले होते हैं उन्हें किसी के झूठ फरेब से कोई फर्क नहीं पड़ता, और ना ही उन्हें किसी के होने या ना होने से कोई खास फर्क पड़ता है। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि जैसे सागर की लहरें किनारो से टकराकर वापस आती हैं। जिस तरह रात चांद की रोशनी में अकेली रहती है इस तरह कुछ लोग भी ऐसे होते हैं जो अपनी जिंदगी में अकेले ही सरवाइव करते हैं और खुश भी रहते हैं।
2-शमशेर बहादुर सिंह : जो तुम भूल जाओ तो हम भूल जाएँ
यहाँ कुछ रहा हो तो हम मुँह दिखाएँ
उन्होंने बुलाया है क्या ले के जाएँ।
कुछ आपस में जैसे बदल-सी गयी हों
हमारी दुआएँ तुम्हारी बलाएँ।
तुम एक ख़ाब थे जिसमें खुद खो गये हम
तुम्हें याद आएँ तो क्या याद आएँ।
वो एक बात जो जिंदगी बन गयी है
जो तुम भूल जाओ तो हम भूल जाएँ।
वो खामोशियाँ जिनमें तुम हो न हम हैं
मगर हैं हमारी तुम्हारी सदाएँ।
बहुत नाम हैं एक ‘शमशेर’ भी है
किसे पूछते हो, किसे हम बताएँ।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि कोई आपको अपनी जिंदगी में अहमियत नहीं दे रहा है या आपसे कोई रिश्ता नहीं रख रहा है तो आपको भी ऐसे लोगों से मेलजोड़ बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि कई बार हमारी जिंदगी में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें हम बहुत खास मानते हैं और उनको अहमियत देते हुए पल-पल याद करते हैं लेकिन क्या वह शख्स भी हमारे प्रति ऐसा ही सोचते हैं। जिंदगी गुजारने के लिए दो लोगों का एक दूसरे के साथ होना और एक दूसरे को अहमियत देना बहुत जरूरी है। क्योंकि एक तरफ कभी भी कोई रिश्ता कामयाब नहीं होता।
3-शमशेर बहादुर सिंह : मेरा दिल अब आज़माया जाएगा
मेरा दिल अब आज़माया जाएगा
मुफ़्त इक महशर उठाया जाएगा।
जाने-जाँ यह ज़िन्दगी होगी न जब
ज़िन्दगी से तेरा साया जाएगा।
आज मैं शायद तुम्हारे पास हूँ
और किसके पास आया जाएगा।
कौन मरहम दिल पे रक्खेगा भला
ज़ख़्मे – दिल किसको दिखाया जाएगा।
मेरे सीने से लिपट कर सो रहो
आरज़़ूओं को सुलाया जाएगा।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि जब किसी इंसान का दिल आजमाया जाता है तो कई बार कुछ लोग उस तकलीफ से गुजर कर ऐसे कदम उठा लेते हैं जहां केवल यादों का साया रह जाता है। यदि आप किसी से मोहब्बत करते हैं तो सामने वाला भी बिल्कुल आप ही की तरह होना चाहिए क्योंकि कई बार आप तो किसी को टूट कर चाहने लगते हैं लेकिन सामने से वैसी ही मोहब्बत न मिलने पर दिल टूट जाता है और कई बार उसे तकलीफ का एहसास करने वाला भी कोई नहीं होता। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि यदि आप किसी की जिंदगी में जाना चाहते हैं या किसी को अपनी जिंदगी में लाना चाहते हैं तो ऐसा तभी करिए जब सामने वाला भी आपके लिए वैसे ही एहसास और जज्बात रखता हो।
4-शमशेर बहादुर सिंह : रात्रि
मैं मींच कर आँखें
कि जैसे क्षितिज।
तुमको खोजता हूँ
ओ हमारे साँस के सूर्य।
साँस की गंगा
अनवरत बह रही है।
तुम कहाँ डूबे हुए हो?
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि जब हम अपने सारे कार्यों को निपटाकर होकर रात को अपने बिस्तर पर आंखें खींच कर लेते हैं तो हम अपने बंद आंखों में उसे इंसान को ढूंढते हैं जो हमारे दिल के बहुत करीब होता है।
5-शमशेर बहादुर सिंह : चिकनी चाँदी-सी माटी
चिकनी चाँदी-सी माटी
वह देह धूप में गीली
लेटी है हँसती-सी
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा देश की मिट्टी के गुणों की व्याख्या करते हुए कहा जा रहा है कि हमारे देश की मिट्टी चिकनी चांदी के समान धूप में हस्ती खेलती चमकती है। देश की मिट्टी में आज भी कई महान शूरवीरों के रक्त से रंगी हुई है जिसका सम्मान हमें हर हाल में करना चाहिए।
6- कत्थई गुलाब
कत्थई गुलाब दबाए हुए हैं। नर्म नर्म केसरिया साँवलापन मानो। शाम की अंगूरी रेशम की झलक, कोमल,कोहरिल,बिजलियाँ-सी लहराए हुए हैं आकाशीय गंगा की झिलमिली ओढ़े तुम्हारे तन का छंद गतस्पर्श। अति अति अति नवीन आशाओं भरा तुम्हारा। बंद बंद “ये लहरें घेर लेती हैं। ये लहरें उभरकर अर्द्धद्वितीया। टूट जाता है। किसका होगा यह पद किस कवि-मन का किस सरि-तट पर सुना? ओ प्रेम की असंभव सरलते सदैव सदैव।
व्याख्या
शमशेर बहादुर जी की कविताओं में ज्यादातर प्रकृति के गुना का वर्णन किया जाता रहा है और इस कविता में भी उन्होंने प्रकृति की सुंदरता की व्याख्या की है। कवि द्वारा कहा जा रहा है कि कत्थई गुलाब नरम नरम सांवलेपन में दबे हुए शाम में रेशम जैसी महक के साथ हमारे मन में बिजलियो जैसा लहराता है। आकाशीय गंगा की तरह बिल्कुल साफ और चंचल आशाओं से भरा तुम्हारा मन है। तुम्हारे मन की बंद बंद लहरे कई बार उभर कर अर्द्धद्वितीया टूट जाते हैं। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि किसके मन में किसके लिए कितनी भावना है यह तो केवल वही इंसान जान सकता है क्योंकि किसी के मन की बात जानना बहुत मुश्किल होता है।
7- ओ मेरे घर
ओ मेरे घर ओ हे मेरी पृथ्वी। साँस के एवज़ तूने क्या दिया मुझे। ओ मेरी माँ? तूने युद्ध ही मुझे दिया। प्रेम ही मुझे दिया क्रूरतम कटुतम और क्या दिया। मुझे भगवान दिए कई-कई मुझसे भी निरीह मुझसे भी निरीह और अद्भुत शक्तिशाली मकानीकी प्रतिमाएँ। ऐसी मुझे ज़िंदगी दी ओह आँखें दीं जो गीली मिट्टी का बुदबुद-सी हैं। और तारे दिए मुझे अनगिनती। साँसों की तरह अनगिनती इकाइयों में मुझसे लगातार दूर जाते मौत की व्यर्थ प्रतीक्षाओं-से। और दी मुझे एक लंबे नाटक की हँसी, फैली हुई। दर्शकशाला के इस छोर से उस छोर तक लहराती कटु-क्रूर। फिर मुझे जागना दिया,यह कहकर कि लो और सोओ। और वही तलवारें अँधेरे की अंतिम लोरियों के बजाय। इंसान के अँखौटे में डालकर मुझे। सब कुछ तो दे दिया जब मुझे मेरे कवि का बीज दिया कटु-तिक्त फिर एक ही जन्म में और क्या-क्या चहिए।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि कवि के लिए उसका घर उसकी पृथ्वी है। और अपने ही घर से कवि शिकायत करते हुए कह रहा है कि केवल सांसों के अलावा मेरी धरती मां तूने मुझे क्या दिया ? प्रेम, युद्ध और कृतम सब कुछ तूने मुझे ही दिया। एक नहीं ना जाने कितने भगवान मेरी धरती मां ने मुझे दिए न जाने कितनी अदभुत शक्तिशाली प्रतिमाएं मुझे मेरी जिंदगी में दी। मेरी धरती मां की सोंधी सोंधी खुशबू की महक और अनगिनत तारे यह सब मुझे मेरे घर से मिले।
सांसों की तरह अनगिनत तारे मुझ से कोसों दूर है। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि हमारी जिंदगी की हकीकत केवल हमारे घर या कम से नहीं बल्कि दुनिया में और भी बहुत सारी ऐसी चीज हैं जिनसे हमें रूबरू होना बहुत जरूरी है। बहुत कुछ हमें हमारी जिंदगी से मिला है और बहुत सारी चुनौतियों का सामना करते-करते बहुत कुछ सीखा और समझा भी है।
हम आशा करते हैं दोस्तों की आज का हमारा यह आर्टिकल अवश्य ही पसंद आया होगा। आगे भी हम आपके लिए इसी तरह के जानकारी से संबंधित लेख लेकर आते रहेंगे। हमेशा की तरह अपना प्यार और सपोर्ट हमारे आर्टिकल्स को देते रहें। हमारे द्वारा लिखे गए आर्टिकल्स यदि आपको पसंद आते हैं तो आप आगे भी शेयर कर सकते हैं।