राजकमल चौधरी की कविताएँ : हेलो फ्रेंड्स।राजकमल चौधरी जी एक बहुत ही मशहूर उपन्यासकार लेखक और कहानीकार थे। राजकमल चौधरी जी का जन्म उनके ननिहाल में रामपुर हवेली में 13 दिसंबर 1929 को हुआ था। हमेशा से उनकी रुचि लेखन की और थी और उन्होंने भागलपुर से अपने इस हुनर को शुरू किया था। इस मशहूर कवि द्वारा बहुत सारी कृतियां जैसे की अग्नि स्नान, शहर का शहर नहीं था, आदि कथा पत्थर फूल और आंदोलन जैसे उपन्यास अपने शब्दों में लोगों तक पहुंचाएं। तो चलिए दोस्तों आज हम आपको राजकमल चौधरी जी से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारियां और कविताओं के बारे में विस्तार पूर्वक बताने वाले हैं यदि आप भी इस चर्चित लेखक के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारे इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पढ़ें।
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1-राजकमल चौधरी की कविताएँ: चाय के प्याले में
दुख करने का असली कारण है पैसा
पहले से कम चीजें ख़रीदता है ।
कश्मीरी सेव दिल के मरीज़ को चाहिए
तो क्या हुआ ?
परिश्रम अब पहले से कम पैसे ख़रीदता है ।
हम सबके लिए काम इतना ही बचा है कि सुबह वक़्त पर शेव कर सकें ।
शाम को घर में चाय, और
पड़ोसिनों के बारे में घरेलू कहानियाँ,
हज़ार छोटे दंगे-फ़साद होते हैं,
इतिहास और आर्थिक सभ्यता को उजागर करने
के लिए एक बड़ी लड़ाई नहीं होती ।
आदमी केले ख़रीदने में व्यस्त रहता है,
(और) बीते हुए, और नहीं बीते हुए
के बीच कड़ी बनकर एक छोटी-सी
मक्खी पड़ी रहती है, चाय के अधख़ाली प्याले में ।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि आज के समय में लोगों का सबसे बड़ा दुख है पैसा। यदि आपके पास पैसा है आप अपने लिए सारे ऐश ओ आराम खरीद सकते हैं दोस्तों यदि आपके पास पैसा नहीं है तो आप बीमार के लिए दवा तक नहीं खरीद सकते हैं। आज के समय में लोगों की सबसे बड़ी पीड़ा पैसा है। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना है कि आज के समय में लोगों के पास चाय का आधा कप पीने का भी वक्त नहीं क्योंकि हर कोई पैसा कमाने की दौड़ में दूसरों को गिरकर आगे बढ़ना चाहता है।
2- आधी नींद में पूरी बातचीत
आप कह दीजिए बीती हुई किताबों को अब
फिर दुहराएँगे नहीं।
अपनी नींद में भी
शरीर तो अपना ही शरीर होगा।
मारिजुआना… मर्जिना… मरजाना… मरजाना
स्त्रियाँ पुल हैं
एक बार एक जंगल में एक अदद
आदमी रहता था
मैंने एक पुल बना दिया यहाँ-वहाँ यहाँ-वहाँ
बीती हुई किताबों को
मत दुहराइए
आदमी ग़ायब हो गया…
रहता था
जंगल रहता है
जंगल में सिर्फ़ एक औरत अब रहती है
अपनी नींद में भी
आप कह दीजिए
मैं चुप हूँ।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें नींद में बात करने की आदत होती है। बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं जो खुद की तनहाइयों में इतना व्यस्त होते हैं कि नींद में भी उन्हें चुप रहने की आदत होती है। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना है कि कभी भी हकीकत के अलावा सपनों में भी बातों को नहीं दोहराना चाहिए। कई बार बीती हुई बातें किताबों की पन्नों की तरह उलट कर हमारे सामने आ जाती हैं वहां भी आपको चुप रहना चाहिए।
3-राजकमल चौधरी की कविताएँ: रिक्शे पर एक सौ राते
गरदन के नीचे से खींच लिया हाथ। बोली अन्धकार हयनि (नहीं हुआ है ) सड़कों पर अब तक घर-वापसी का जुलूस दफ़्तर, दुकानें, अख़बार अब तक सड़कों पर। किसी मन्दिर के खण्डहर में हम रुकें ? बह जाने दें चुपचाप इर्द-गिर्द से समय ? गरदन के नीचे से उसने खींच ली तलवार ! कोई पागल घोड़े की तेज़ टाप बनकर आता है। प्रश्नवाचक वृक्ष बाँहों में। डालों पर लगातार लटके हुए चमगादड़। रिक्शेवाला हँसता है चार बजे सुबह अन्धकार हयनि (नहीं हुआ है)। सिर्फ़ एक सौ रातों ने हमें बताया कि शाम को बन्द किए गए दरवाज़े सुबह नहीं खुलते हैं।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि बहुत सारे लोग अपनी बेबसी और अपनी गरीबों के कारण परीक्षाओं में अपनी रातें गुजरते हैं। उनकी गरीबी के कारण सर ढकने के लिए छत का सहारा उनकी रिक्शा होती है। बेचारे जो लोग रिक्शा पर अपनी रातें गुजरते हैं उनके लिए कभी सुबह के दरवाजे उनके घर की ओर नहीं खुलते हैं बल्कि उनकी सुबह प्रातः 4:00 बजे चिड़ियों की चेचाआहट से हो जाती है। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना है कि जहां शाम होने पर दफ्तर बंद होने के समय लोग अपने घर जाने की जल्दबाजी में अपना समान समझते हैं वहीं दूसरी और बेचारे रिक्शा वाले अपनी रातें अपनी बेबसी के कारण रास्तों पर गुजरते हैं।
हम उम्मीद करते हैं दोस्तों की आपको हमारी आज की कविताएं अवश्य ही पसंद आई होगी। राजकमल चौधरी जी की कविताओं से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। आगे भी हम आपके लिए इसी तरह से आर्टिकल्स लिखते रहेंगे और आप हमेशा की तरह अपना प्यार और सपोर्ट हमारे लिए को देते रहें।