मीरा बाई कविताएँ हिंदी: दोस्तों जैसे कि आप सभी लोग जानते हैं कि मीराबाई को हम सभी लोग कृष्ण की दीवानी भी और यह कृष्ण भगवान से इतना प्रेम करती थी के कृष्ण के लिए विश तक पी लिया था। चलिए दोस्तों आज हम आपको मीराबाई की कुछ ऐसी कविताओं से रूबरू कराने वाले हैं जिसमें उन्होंने केवल अपने एहसासों को कृष्ण की भक्ति में लीन किया है। मीराबाई का जन्म 1498 में राजस्थान के कुड़की ग्राम में हुआ था।
रतन सिंह राठौर की इकलौती संतान थी। ऐसे ही उनके दिल में भगवान श्री कृष्णा के प्रति प्रेम और भक्ति भावना कूट-कूट कर भरी थी। मीराबाई के दिल में कृष्ण के लिए भरा प्रेम किसी से छुपा नहीं था यहां तक के उनके पति राजा भोजराज सिंह से भी नहीं। उनकी बहुत सारी कविताएं और भक्ति दोहे केवल कृष्ण की परी आधारित रहे हैं। दोस्तों यदि आप भी मीराबाई की कविताएं पढ़ना चाहते हैं तो हमारे इस आर्टिकल में अंत तक बन रहे।
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1-मीरा बाई कविताएँ हिंदी: मेरो दरद न जाणै कोय
हे री मैं तो प्रेम-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय घायल की गति घायल जाणै, जो कोई घायल होय। जौहरि की गति जौहरी जाणै, की जिन जौहर होय सूली ऊपर सेज हमारी, सोवण किस बिध होय। गगन मंडल पर सेज पिया की किस बिध मिलणा होय। दरद की मारी बन-बन डोलूँ बैद मिल्या नहिं कोय। मीरा की प्रभु पीर मिटेगी, जद बैद सांवरिया होय।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से मीराबाई अपने दर्द की व्याख्या करते हुए बता रही है कि वह सांवले सलोने कृष्ण के प्रेम में दीवानी हो चुकी है और उनके दर्द को उनके अलावा कोई नहीं जान सकता। मीरा और कृष्ण का मिलन आकाश और धरती की तरह है जो कभी एक नहीं हो सकती अब इस अवस्था में मीरा को नींद कैसे आएगी। जिस प्रकार एक जौहरी की परख जोहरी को होती है इस प्रकार एक घायल के दर्द का एहसास केवल एक घायल व्यक्ति को ही हो सकता है। दर्द से बेचैन मीरा जंगल में मारी मारी फिर रही है। उनका दर्द उस वक्त काम होगा जब कृष्ण आकर उनके दर्द की दवा बनेंगे।
2- हरी तुम हरो जन के भीतर
हरि तुम हरो जन की भीर
द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढायो चीर। भक्त कारण रूप नरहरि, धरयो आप शरीर हिरणकश्यपु मार दीन्हों, धरयो नाहिंन धीर। बूडते गजराज राखे, कियो बाहर नीर दासि ‘मीरा लाल गिरिधर, दु:ख जहाँ तहँ पीर।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से मीराबाई कृष्ण के द्वारा अपने कष्ठो का निवारण करने की बात कह रही हैं। मीरा कह रही हैं कि जिस प्रकार आपने द्रोपदी के चीर हरण में उनकी रक्षा की और जिस प्रकार नरसिंह का रूप धारण कर प्रहलाद की जान बचाई इस प्रकार आप मीरा की भी पीड़ा को हर लो। एक कृष्ण ही है जो मीरा के दुखों का मरहम, दवा और इलाज बन सकते हैं।
3-मीरा बाई कविताएँ हिंदी: मैं म्हारो सुपनमा परनारे दीनानाथ
मैं म्हारो सुपनमा परनारे दीनानाथ
छप्पन कोटा जाना पधराया दूल्हों श्री बृजनाथ।
सुपनामा तोरण बंध्य री शुभ सुपनया गया हाथ
सुपनमा म्हारे परण गया पाया अचल सुहाग।
मीरा रो गिरधर नी प्यारी पूर्व जन्म रो हाड
मातवारो बादल आयो रे
लिसते तो मतवारो बदला आयो रे।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम मीराबाई सपने में भगवान कृष्ण को अपना दूल्हा बना देती है और वह राजा की तरह सर पर तोरण बांध कर उनको लेने आ रहे हैं। इस पंक्ति में मीरा द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि श्री कृष्णा जाकर उनके पैरों को छूते हैं और उनके चुने से मीरा उनकी सुहागन बन जाते हैं।
4- राणा जी महे तो गोविंद का गुण गास्यां
राणा जी माहे तो गोविंद का गुण गास्यां
चरणामृत को नेम हमरो नीत उठ दर्शन जास्यं।
हरि मंदिर में नीरत करास्यां घुंघरिया घमकरास्यां
राम नाम का झाझ चलास्यां भव सागर तर जास्यां। यह संसार बाढ़ का कांटा ज्या संगत नहीं जास्यां।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर निरख परख गुण गास्यां।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम मीरा अपने पति राणा जी से कहती है कि मैं हमेशा ही अपने प्रभु श्री कृष्ण के गुणगान करूंगी क्योंकि उनके दर्शन मेरे लिए चरणअमृत के समान है। कृष्ण की भक्ति में लीन मीरा कहती है कि मैं हर दिन हरि मंदिर जाऊंगी और राम और कृष्ण के नाम का जाप करूंगी ताकि मैं अपने जीवन के भव सागर को पार कर सकूं। जिस तरह पैर में कांटा छुप जाने पर दर्द होता है इस तरह प्रभु श्री कृष्ण के दर्शन किए बिना मीरा को पीड़ा होती है। मेरा कहती है कि है कृष्णा मेरे गुना को परखो और मुझे अपने दर्शन की अनुमति दो।
5-मीरा बाई कविताएँ हिंदी: फूल मंगाओ
फूल मंगाओ हर बनाऊं
मालिन बन कर जाऊं।
के गुण ले समझाऊं
राजधान के गुण ले समाजाऊं।
गलासैली हात सुमरनी
जपत जपत घर जाऊं।
मेरा कहे प्रभु गिरिधर नागर
बैठक हरि गुण गाओ।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम मीराबाई कहती है कि मैं अपने हाथों से एक-एक फूल को बाघों से चुनकर लेकर आऊं और उन्हें अपने हाथों से गूंधकर प्रभु के लिए माला और हर बनाओ। मीरा कहती है कि मैं राज धन का उपयोग करके अपने कृष्ण के नियम माला बनाना चाहती हूं लेकिन यह बात राणा जी को कैसे समझाऊं। अपने श्री कृष्ण के लिए माला बनाने के लिए वह घर-घर जाकर फूलों को मांगती हैं और उनका नाम जप कर माला बनाते हैं। मीरा प्रभु श्री कृष्ण के प्रेम में इतनी ली है कि वह हर वक्त बैठकर उनके गुणगान गति रहती हैं।
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