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दिनकर की कविता : Dinkar Poems in Hindi

Posted on September 30, 2023October 2, 2023 by ANDREW

दिनकर की कविता : रामधारी सिंह दिनकर जी का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार में हुआ था । यह अपने समय के बहुत ही प्रसिद्ध लेखक, कवि, न्यूज़ रिपोर्टर, निबंधकार और स्वतंत्रता सेनानी थे। इस महान कवि ने अपने समय में बहुत सारी कविताएं लिखी और बहुत सारे अवार्ड को अपने नाम किया है।

दोस्तों आज हम आपको दिनकर जी की कविताओं के बारे में विस्तार पूर्वक बताने वाले हैं । यदि आपको भी दिनकर जी की कविताएं पढ़ने और सुना अच्छा लगता है तो हमारे इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पड़े।

Also Read: पाठन के लिए प्रसिद्ध हिंदी कविताएँ

Table of Contents

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  • 1-दिनकर की कविता : करघा
  • 2-दिनकर की कविता : आशा का दीपक 
  • 3- एक विलुप्त कविता 
  • 4-दिनकर की कविता : निराशावादी 

1-दिनकर की कविता : करघा

दिनकर की कविता 

हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं, दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है। हर ज़िन्दगी किसी न किसी, ज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती है। ज़िन्दगी ज़िन्दगी से इतनी जगहों पर मिलती है, कि हम कुछ समझ नहीं पाते और कह बैठते हैं यह भारी झमेला है। संसार संसार नहीं, बेवकूफ़ियों का मेला है। हर ज़िन्दगी एक सूत है और दुनिया उलझे सूतों का जाल है। इस उलझन का सुलझाना हमारे लिये मुहाल है। मगर जो बुनकर करघे पर बैठा है, वह हर सूत की किस्मत को. पहचानता है। सूत के टेढ़े या सीधे चलने का क्या रहस्य है, बुनकर इसे खूब जानता है।

व्याख्या

इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि की जिंदगी कभी ना कभी एक दूसरे से जरूर टकराती है । जहां वह एक दूसरे से मिलकर जीवन भर साथ निभाने के लिए एक हो जाती है। लोगों की जीवन में कुछ ऐसे इस्तेफाक होते हैं जहां हम जिंदगी से कई बार मिल लेते हैं । लेकिन उसे संसार की जुबान में बोल देते हैं कि जिंदगी एक झमेला है यह संसार संसार नहीं है लोगों की नजरों में बेवकूफियां का मेला है।

यह दुनिया बहुत उलझी हुई है और इसको सुलझाना लोगों के लिए नामुमकिन होता जा रहा है । हालांकि मुश्किल है लेकिन अगर कोशिश की जाए तो आप अपने जिंदगी के मसले अवश्य ही एक दिन जरूर सुलझाएंगे। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है। कि जिस प्रकार बनने वाला व्यक्ति करके की सहायता से उलझे हुए भागों को भी सही तरीके से बन देता है। उसी प्रकार हमें भी अपनी जिंदगी के उलझे हुए झमेले को सुलझाने के लिए सफल प्रयास और सुझाव की आवश्यकता पड़ती है।

2-दिनकर की कविता : आशा का दीपक 

वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है; थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नहीं है। चिन्गारी बन गयी लहू की बून्द गिरी जो पग से; चमक रहे पीछे मुड़ देखो चरण-चिह्न जगमग से। बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नहीं है थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नहीं है। अपनी हड्डी की मशाल से हृदय चीरते तम का; सारी रात चले तुम दुख झेलते कुलिश का। एक खेय है शेष, किसी विध पार उसे कर जाओ; वह देखो, उस पार चमकता है मन्दिर प्रियतम का। आकर इतना पास फिरे, वह सच्चा शूर नहीं है; थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है। दिशा दीप्त हो उठी प्राप्त कर पुण्य-प्रकाश तुम्हारा; लिखा जा चुका अनल-अक्षरों में इतिहास तुम्हारा। जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलाएगी ही; अम्बर पर घन बन छाएगा ही उच्छ्वास तुम्हारा। और अधिक ले जाँच, देवता इतना क्रूर नहीं है; थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।

व्याख्या

इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है । कि कभी भी मन में आशा का दीपक बुझने या फड़फड़ाना नहीं देना चाहिए। व्यक्ति को हमेशा अपनी मंजिल को दूर की दृष्टि से नहीं बल्कि पास की दृष्टि से देखना चाहिए क्योंकि यदि आप पास की दृष्टि से अपनी मंजिल को देखते हैं तो आप थक कर नहीं बैठेंगे। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि जब हम अपनी जिंदगी में आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं

तो हमें पीछे खींचने वाले हजारों मिल जाते हैं । लेकिन उन हजारों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना इसे कहते हैं मन में आशा की लो जला। दोस्तों जब तक आपके मन में हौसला जुनून और कुछ कर गुजर जाने का साहस नहीं प्रकाशित होगा । तब तक आप अपनी मंजिल को नहीं पाएंगे और ना ही उसके प्रयास सही ढंग से कर पाएंगे। अपने अपने मन में ठान लिया कि मुझे यही करना है। चाहे इसके लिए मुझे कोई भी रास्ते से गुजर जाना पड़े तो अवश्य ही सफलता आपके कदम चूमेगी।

3- एक विलुप्त कविता 

दिनकर की कविता

बरसों बाद मिले तुम हमको आओ जरा विचारें,. आज क्या है कि देख कौम को ग़म है

कौम-कौम का शोर मचा है, किन्तु कहो असल मे कौन मर्द है जिसे कौम की सच्ची लगी लगन है? भूखे, अनपढ़, नग्न बच्चे क्या नहीं तुम्हारे घर में? कहता धनी कुबेर किन्तु क्या आती तुम्हें शरम है? आग लगे उस धन में जो दुखियों के काम न आए, लाख लानत जिनका, फटता नहीं मरम है। दुह-दुह कर जाती गाय की निजतन धन तुम पा ल दो बूँद आँसू न उनको, यह भी कोई धरम है? देख रही है राह कौम अपने वैभव वालों की

मगर फिकर क्या,उन्हें सोच तो अपनी ही हरदम है हँसते हैं सब लोग जिन्हें गैरत हो वे शरमायें यह महफ़िल कहने वालों की, बड़ा भारी विभ्रम है। सेवा व्रत शूल का पथ है, गद्दी नहीं कुसुम की! घर बैठो चुपचाप नहीं जो इस पर चलने का दम है।

व्याख्या

इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि आज के समय में लोगों के पास एक दूसरे के साथ बैठने का वक्त नहीं लेकिन जब कई वर्षों बाद लोग बैठते हैं। और विचार करते हैं कि दुनिया में कौम का गम भी चल रहा है। दोस्तों आपके कौम क्या है उससे कोई फर्क नहीं पड़ता फर्क पड़ता है सिर्फ इस बात से कि आप एक कैसे इंसान हैं ।अपने देश और अपनों के लिए क्या कर सकते हैं। लोग कहते हैं कि भारत सोने की चिड़िया है जहां कुबेर की कमी नहीं लेकिन शर्म तो तब आती है। देश के बहुत सारे बच्चे भूख से बेहाल अनपढ़ और बिना कपड़ों के दिखाते हैं।

जो पैसा किसी बीमार किसी भूखे को खाना ना मिला सके क्या वह पैसा किसी काम का है । धन लेकर किसी को भी कब्र में नहीं जाना सब यही छोड़ जाना है । तो क्यों ना उन पैसों से आप अच्छे कार्य करें जिससे कि भगवान की नजरों में भी आप एक सच्चे और दिल साफ रखने वाले मनुष्य कहलाए। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि यदि भगवान ने आपको धन दौलत दी है तो उसे पर कभी घमंड या गुरु नहीं करना चाहिए बल्कि दूसरों की मदद के लिए भी उसे पैसे का उपयोग करना चाहिए। आपके खर्च किए गए थोड़े से पैसे से किसी के चेहरे पर मुस्कान आ सकती है। किसी की तकलीफ कम हो सकती है उससे बड़ा पुण्य का कार्य आपके लिए कोई नहीं।

4-दिनकर की कविता : निराशावादी 

पर्वत पर, शायद, वृक्ष न कोई शेष बचा धरती पर, शायद, शेष बची है नहीं घास उड़ गया भाप बनकर सरिताओं का पानी, बाकी न सितारे बचे चाँद के आस-पास क्या कहा कि मैं घनघोर निराशावादी हूँ? तब तुम्हीं टटोलो हृदय देश का, और कहो, लोगों के दिल में कहीं अश्रु क्या बाकी है?. बोलो, बोलो, विस्मय में यों मत मौन रहो ।

व्याख्या

इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि आज संसार में हर तरफ निराशा ही निराश दिखाई देती है। जहां एक और पर्वत पर वृक्ष कर रहे हैं वहीं दूसरी और धरती पर घास नहीं दिखती, नदियों का पानी भी भाप बनकर सूखता चला जा रहा है । तो और चांद के आसपास भी सितारे नहीं दिखते। यह देखकर हम सभी लोगों को निराशा होती है और कहीं ना कहीं जब हम अपने दिल को टटोलते हैं तो उससे भी ज्यादा निराशा होती है। कि देश के लोगों में जो चिंताएं पैदा हो रही हैं और

लोग परेशानियों का सामना कर रहे हैं उसे पर तो लोग एकदम मोन हो जाते हैं। कविता से हमें यह सीख मिलती है कि इस समय देश के जो हालात हैं। बहुत सारे लोगों का बहुत सारी परेशानियों के कारण जीना मुहाल हो रहा है। ऐसे में यदि हमें आवाज उठानी चाहिए और लोगों की समस्याओं का समाधान भी अवश्य निकालना चाहिए।

हम उम्मीद करते हैं दोस्तों की आपको दिनकर की कविता  अवश्य ही पसंद आई होगी और हम चाहते हैं कि इन कविताओं को पढ़कर आप भी कुछ अच्छा सीखे और लोगों की मदद करने की और पहला कदम बढ़ाए। आगे भी हम आपके लिए इसी तरह आगे लेख लिखते रहेंगे और आप हमेशा की तरह अपना प्यार और सपोर्ट हमें यूं ही देते रहें।

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