तीज पर कविता हिंदी में: तीज का त्योहार सभी सुहागन अपने पति की लंबी आयु और कुंवारी कन्याएं एक अच्छा और नेक हमसफर पानी के लिए रखती है क्योंकि कहां जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए 107 जन्मों तक तप किया और उपवास रखें तब कहीं जाकर उनके तप का फल 108 वे जन्मदिन पर उनको मिला। जब भगवान शिव जी ने माता पार्वती जी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
तब से ही तेज का त्यौहार सावन महीने में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है सभी सुहागन और कुंवारी कन्याएं इस दिन व्रत रखती हैं और अपने आराध्य से एक अच्छे वर की कामना करती हैं। तो चलिए दोस्तों आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से तीज पर आधारित कुछ कविताओं के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी प्रदान करना चाहते हैं यदि आपको भी तीज पर लिखी कविताएं अच्छी लगती हैं तो हमारे इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पड़े।
1-तीज पर कविता हिंदी में: लाल चुनरिया (लेखक संजय गुप्ता)
सर लाल चुनरिया से सजती रहे
पैरों की पायल बजती रहे।
माथे की बिंदिया चमकती रहे
मांग का सिंदूर दमकता रहे।
हाथों की चूड़ियां खनकती रहे
दिल उनके लिए धड़कता रहे।
हाथों में मेहंदी रचती रहे
पैरों की बिछिया बजती रहे।
तीखे नैनों में कजरा हो
बालों में सुंदर गजरा हो।
पांव में सदा महावर हो
शौहर पर जान निछावर हो।
हरदम 16 श्रृंगार रहे
शिव पार्वती सा प्यार रहे।
सुहागन का वरदान मिले
गजानन जैसी संतान मिले।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक संजय गुप्ता जी द्वारा बताया जा रहा है कि भले ही सुहाग ने घर में इतना श्रृंगार नहीं करती जितना की तीज पर करती हैं। हर सुहागन इस दिन सर पर लाल चुनरिया ओढ़ कर, पैरों में पायल पहनकर,सर पर बिंदिया और सिंदूर सजाकर और हाथों में चूड़ियां पहनकर अपने पति के साथ अपना व्रत खोलती हैं जिससे कि दोनों के ही दिलों में एक दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान बढ़ता है।
इस दिन सभी सुहागन और कन्याएं 16 श्रृंगार करती हैं और भगवान से प्रार्थना करती हैं कि उनका श्रृंगार हमेशा ऐसे ही बना रहे जिसका वह वरदान मांगती हैं और श्री गणेश जैसी संतान की भी कामना करते हैं। कविता से हमें यह सीख मिलती है कि धर्म चाहे कोई भी हो लेकिन विवाहित स्त्री हमेशा अपने पति की लंबी आयु की दुआ हर वक्त अपने भगवान से करती हैं और उनके लिए सम्मान और नेक संतान के भी प्रार्थना हर वक्त करती हैं।
2- आया तीज का त्यौहार
आया तीज का त्यौहार
सखियों हो जाओ तैय्यार।
मेंहंदी हाथो में रचा के
कर लो सोलह श्रृंगार।
चूड़ी खन खन खनके
पायल छमछम बाजे।
बिंदी की चमक अपार
आया तीज का त्यौहार।
डाली पर झूले डालें,
सखियों संग मौज मनाले।
हरियाली तीज का सब
मिलजुलकर आनंद उठा ले।
देने खुशियां अपार
आया तीज का त्यौहार।
मंदिर में दर्शन को जायें शिव जी का आशीर्वाद पाये,
होगा अमर सुहाग,
आया तीज का त्यौहार।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि जैसे ही सावन का महीना लगता है वैसे ही महिलाओं में तीज के त्यौहार की उत्साह और भी ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि इस दिन सभी सुहाग ने निर्जल व्रत रखती हैं सखियां नेक हमसफर मांगने के लिए स्पीच का व्रत रखती है और शिव जी के दर्शन करने जाती हैं और आशीर्वाद पाती हैं।
इस अवसर पर हर तरह सुहागानों के 16 श्रृंगार के दर्शन होते दिखाई देते हैं बिंदिया चूड़ी, बिछिया, पायल, हर तरफ इन्हीं का शोर सुनाई देता है। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि तीज का त्योहार केवल महिलाओं के लिए ही नहीं बल्कि पुरुषों के लिए भी बहुत खास होता है क्योंकि कुछ ऐसे पुरुष भी होते हैं जो अपने हमसफर के लिए निर्जल व्रत रखते हैं जिससे पता चलता है कि उनके मन में भी एक स्त्री के प्रति प्रेम और सम्मान है और वह जन्मों जन्म तक उनका साथ चाहते हैं।
3-तीज पर कविता हिंदी में: शिव गौरी का मिलन(लेखक महेश कुमार हरियाणवी)
शिव गौरा का मिलन पुनः,
पावन प्रेम का द्वार है।
छम-छम-छम मेघ पुकारे,
ये तीज का त्यौहार है।
ऊँचे-ऊँचे झूलों पर,
झूली लचकतीं डाल हैं।
बस्ती में बस्ती देखो,
चारो तरफ हरियाल हैं।
देख जिसे मन हर्षाया,
घर घेवर की बहार है।
छम-छम-छम मेघ पुकारे,
ये तीज का त्यौहार है।
डर मत बहना सपनों में,
मामा भाई अपनों में।
मिलने को घर पे आएँ,
तौल के जाएँ रत्नों में।
आँख खोल के देख भले,
ख़्वाब तेरा साकार है।
छम-छम-छम मेघ पुकारे,
ये तीज का त्यौहार है।
कितने आए और गए,
कितने अभी तैयार है।
क़दम-क़दम पे वार खड़े,
तैर चलीं पतवार हैं।
घुलमिल कर के संग चले,
यही अपना विस्तार हैं।
छम-छम-छम मेघ पुकारे,
ये प्रीत का त्यौहार है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक महेश कुमार हरियाणवी द्वारा कहा जा रहा है कि तीज के त्योहार पर शिव और पार्वती का मिलन पुणे हो जाता है क्योंकि माता पार्वती ने शिव जी को पाने के लिए कई वर्षों तक तप किये थे इसके बाद उन्हें उनकी तपस्या का फल भगवान शिव उन्हें पति के रूप में मिले। बादलों से बरसता पानी तीज के त्यौहार का उत्सव बड़ी धूमधाम से मानता है जिसे देख लोगों के मन में और भी ज्यादा उत्साह और खुशी भर जाती है।
चारों तरफ घनघोर हरियाली और डालों पर पड़े हुए झूले तीज की उत्साह को दर्शाते हैं। इस त्यौहार के अवसर पर सभी अपने एक दूसरे के घर जाते हैं और बड़े ही उत्साह के साथ तीज की पूजा करते हैं और अपने व्रत खोलते हैं। इस कविता के माध्यम से हमें यह सीख मिलती है कि यदि मन में किसी के प्रति प्रेम हो और उसको पाने के सभी द्वारा बंद हो जाएं तो भगवान कोई ना कोई रास्ता हमेशा खोलते हैं क्योंकि यदि अगर एक रास्ता बंद होता है तो दूसरा द्वारा आवश्यक आपके लिए खुलेगा। यदि आप भी किसी से प्रेम करते हैं तो उसे पाने के लिए माता पार्वती जैसे तब कीजिए और अपने प्रेम को पा लीजिए।
4- वर्षा ऋतु सावन सुखदाई(लेखक बाबूलाल शर्मा)
वर्षा ऋतु सावन सुखदाई
रिमझिम मेघ संग पुरवाई।
मेह अमा हरियाली लाए
तीज पर्व झूले हरषाए।
झूले पटली तरुवर डाली
नेह डोर सखियाँ दे ताली।
लगे मेंहदी मने सिँजारा
घेवर संग लहरिया प्यारा।
झूला झूले नारि कुमारी
गाए गीत नाचती सारी।
करे ठिठोली संग सहेली
हँसे हँसाए तिय अलबेली।
झूले पुरुष संग सब बच्चे
पींग बढ़ाते लगते सच्चे।
धीर सुजान पेड़ लगवाते
सत्य पुण्य ऐसे जन पाते।
धरा ओढती चूनर धानी
गाय बया नग लगे गुमानी।
कीट पतंग जन्मते मरते
ताल तलैया जल से भरते।
वर्षा सावन तीज सुहानी
लगती है ऋतु रात रुहानी।
विज्ञ लिखे मन की चौपाई
मन भाई मन ही मन गाई।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि सावन का महीना आते ही घने बादल छा जाते हैं और वर्षा ऋतु आरंभ हो जाती है। के कारण चारों तरफ हरियाली ही हरियाली और डालों पर झूले डल जाते हैं। इस अवसर पर सारी कन्याएं इस हरियाली और दलों पर डाले झूठों का आनंद लेती हैं और अच्छे और प्रेम करने वाले वर की कामना करती हैं। झूलों पर केवल महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष और बच्चे भी आनंद लेते हैं और सब एक साथ इस पर्व को शिव पार्वती पर अर्पण करते हैं
और निर्जल व्रत रखते हैं। लाल चुनरिया और सुहागन करती 16 श्रृंगार जिसे देखकर पुरुषों के मन में उनके प्रति प्रेम और स्नेह की भावना और भी ज्यादा बढ़ जाती है। इस कविता के माध्यम से हमें यह सीख मिलती है कि धर्म चाहे कोई भी हो लेकिन हर पर्व का अपना इतिहास और उसके पीछे कोई ना कोई वजह अवश्य होती है। यदि आप भी अपने जीवन में एक प्यार करने वाले साथी की कामना करते हैं तो तीज के पर पर निर्जल व्रत रखें और अपने आराध्य को मान ले जिस तरह माता पार्वती ने अपनी तपस्या से शिव जी को मनाया था।
हेलो दोस्तों हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे द्वारा बताई गई जानकारी से पता चल गया होगा की तीज का पर क्यों मनाया जाता है और इसका क्या उद्देश्य है? आगे भी हम आपके लिए इसी तरह के आर्टिकल्स लेकर आते रहेंगे और आप हमेशा की तरह अपना प्यार और सपोर्ट हमारे लेख को देते रहें।