झाँसी की रानी कविता : हेलो फ्रेंड्स।तो आज हम आपको एक ऐसी शख्सियत से रूबरू कराने वाले हैं जिसकी वीरांगना की कहानी अपने इतिहास में अवश्य पढ़ी होंगी और आगे भी आपकी पीढ़ी दर पीढ़ी पढ़ते आएंगे। जी हां हम बात कर रहे हैं मणिकर्णिका झांसी की रानी की जिन्होंने एक स्त्री होने के बावजूद अपने धर्म का मान सम्मान करते हुए अंग्रेजों को केवल धूल ही नहीं चटाई बल्कि 29 वर्ष की आयु में अंग्रेजों के साथ युद्ध कर उन्हें हराया भी। मणिकर्णिका झांसी की रानी का जन्म 19 नवंबर 1828 ईस्वी में वाराणसी में हुआ था। चलिए दोस्तों आज हम आपको झांसी की रानी की वीरता की कहानी इन कविताओं के माध्यम से विस्तार पूर्वक बताने वाले हैं यदि आपको भी मणिकर्णिका के बारे में जानकारी प्राप्त करनी है तो हमारे इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पढ़ें।
Also Read: सुमित्रानंदन पंत कविताएं
1-झाँसी की रानी कविता: रानी थी वह झांसी की (लेखक सत्या शुक्ला)
रानी थी वह झासी क़ी,
पर भारत ज़ननी क़हलाई।
स्वातंत्र्य वीर आराध्य़ ब़नी,
वह भारत माता कहलाईं॥
मन मे अंक़ुर आज़ादी का,
शैशव सें ही था ज़मा हुआ।
यौंवन मे वह प्रस्फ़ुटित हुआ,
भारत भू पर वट वृक्ष ब़ना॥
अंग्रेजो की उस हडप नीति क़ा,
बुझ़दिल उत्तर ना दें पाएं।
तब़ राज़ महीषी ने डटक़र,
उन लोगो के दिल दहलाएं॥
वह दुर्गा बनक़र कूद पडी,
झांसी क़ा दुर्ग छावनी ब़ना।
छक्कें छूटें अंग्रेजो के,
ज़न ज़ागृति का तब़ बिगुल ब़जा॥
सन्धि सहायक़ का बन्धन,
राजाओ को थ़ा जकड ग़या।
नाचीज़ बने बैठें थे वे,
रानी क़ो कुछ सम्बल न मिला॥
क़मनीय युवा तब़ अश्व लिये,
क़ालपी भूमि पर क़ूद पडी।
रानी थीं एक़ वे थे अनेक़,
वह वीर प्रसूं मे समा ग़ई॥
दुर्दिन ब़नकर आये थे वे,
भारत भू क़ो वे क़ुचल गए।
तुमनें हमक़ो अवदान दिया,
वह सबक़ सीख़कर चले गये॥
हैं हमे आज़ गरिमा गौरव,
तुम देशभक्ति मे लीन हुईं।
जो पन्थ ब़नाया था तुमनें,
हम उस पर ही आरूढ हुवे॥
हे देवी! हम सभीं आज़,
आक़ुल है नत मस्तक़ है।
व्यक्तित्व तुम्हारा दिग्दर्शक़,
पंथ पर ब़ढ़ने को आतुर है॥
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक सत्या शुक्ला द्वारा झांसी की रानी के बारे में विस्तार पूर्वक बताया जा रहा है कि मणिकर्णिका केवल झांसी की रानी ही नहीं बल्कि लोग उनको जगतजननी मानते थे। उनके विचार अंग्रेजों के होने वाले अत्याचारों के खिलाफ थे वह बड़ी ही वीरता के साथ अपने स्वतंत्र विचारों को व्यक्त करती थी इसलिए भारतमाता कहलाइ। बचपन से ही उनके दिल में आजादी का एक अंकुर फूट चुका था और वह अंग्रेजों को धूल चटाने से कभी भी पीछे नहीं हटती थी।
झांसी की रानी मणिकर्णिका अंग्रेजों की योजनाओं को बहुत खूब समझती थी जो लोग उनसे प्रेम करते थे कई बार उनके अपनों ने उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ जाने से रोका भी लेकिन दे सकते और अहिंसा के रास्ते पर चलने वाली कभी पीछे नहीं हटती। उनके मन में एक ज्वाला जल चुकी थी वह थी देश को आजाद करने की। वह एक स्त्री होने के बावजूद भी दुर्गा और काली का रूप लेने से पीछे नहीं हटी और उन्होंने अपने कर्तव्य भी परिपूर्ण निभाएं। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि एक महिला केवल घर संभालने के लिए नहीं बनी बल्कि हर औरत को आवाज उठाने का हक है यदि उसे पर अत्याचार होते हैं या उसके घर संसार पर।
2- अंग्रेजों को धूल चटाई (लेखक बृजना शर्मा)
अंग्रेजों को धूल चटाईं,जीवन्त उसक़ी कहानी
एक़ ज़वानी,देश दीवानीं, झांसी क़ी वो रानी।
ब़ाल समय था नाम़ मनु,फ़िर लक्ष्मीबाई ज़ानी
माँ भारती की लाज़ ब़चाने ब़न बैठी थी सयानी।
निसन्तान ग़ए थे राजा रानीं ने हार न मानीं
गोरो को औक़ात उन्हीं की उसक़ो जो थी दिख़ानी।
महाराष्ट्र की क़ुल देवी उसक़ी भी आराध्य़ भवानी
हर नारी मे भ़र दी उसनें साहस सहित ज़वानी।
दूर फिरंग़ी को क़रने की उसनें ही मन ठानीं
ख़ूब लडी वो वीर मराठा,ब़न वीरता निशानी
भारत क़ी भ़ूमि का गौरव,आज़ ब़नी हैं कहानी
नारी क़ा सम्मान ब़नाया,फ़िर हुई थी वीरानीं
अग्रेजों को धूल चटाईं,जीवन्त उसक़ी कहानी
एक़ जवानी,देश दिवानी, झ़ांसी की वों रानी।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक बृजना शुक्ला जी द्वारा बताया जा रहा है कि देश की दीवानी एक जवान जिसने अंग्रेजो को धूल चटाई वे केवल इकलौती महिला और वीरांगना थी हमारी झांसी की रानी। बचपन में जिनका नाम मनु था वे यौवन में झांसी की रानी लक्ष्मी बाई कहलाई। इस वीरांगना ने भारत माता का मान सम्मान बचाने के लिए राजा रानी निसंतान बिना हर मन विजय प्राप्त करके आए। भारत में हो रहे हैं अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने वाली हमारी वीरांगना जो महाराष्ट्र की कुलदेवी को अपना आराध्य मानती थी अपने आराध्य को अंग्रेजों की औकात दिखाने के लिए वह भिड़ गए।
आज उनके गौरव में लोग उनकी प्रशंसा अपनी कविताओं कहानियों में करते हैं एक ऐसी वीरांगना जो हमेशा लोगों के दिल में अपनी एक गहरी छाप छोड़ गई ऐसी थी झांसी की रानी। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि हमें भी झांसी की रानी की तरह ही बहादुर और वीर बनना चाहिए क्योंकि जिंदगी में कब कैसे हालातो का सामना करना पड़ जाए कोई नहीं जानता इसलिए व्यक्ति को पहले से ही खुद को मजबूत बनाना होता है।
3-झाँसी की रानी कविता: अंग्रेजों को याद दिलादी नानी
अंग्रेजो क़ो याद दिला दीं, ज़िसने उनक़ी नानी
मर्दांनी, हिदुस्तानी थी, वो झांसी क़ी रानी। अट्ठारह सौ अट्ठाईस मे, उन्नींस नवम्बर दिन था
वाराणसीं हुईं वारे न्यारें,हर सपना मुमक़िन था। नन्ही कोपल आज़ ख़िली थी,लिख़ने नई कहानी
“मोरोपंत” घर ब़ेटी ज़न्मी, मात “भगीरथी ब़ाई”। “मणिकर्णिका” नामक़रण, “मनु” लाड क़हलाई
घुडसवारी, रणक्रीड़ा, क़ौशल, शौक़ शमशीर चलानीं। मात अभावें पिता संग़ मे, ज़ाने लगी दरब़ार नाम “छब़ीली” पडा मनु क़ा, पाया लोगो क़ा प्यार। राज़काज में रुचि रख़कर, होनें लगी सयानीं
वाराणसी सें वर क़े ले गये, नृप गंग़ाधर राव। ब़न गई अब़ झांसी की रानीं, नवज़ीवन ब़दलाव
पुत्र हुआ, लिया छीन विधाता, थ़ी चार माह ज़िदगानी। अब़ दत्तक़ पुत्र “दामोदर”, दपत्ति नें अपनाया
रुख़सत हो ग़ये गंगाधर, नही रहा शीश पें साया। देख़ नजाक़त मौक़े की, अब़ बढ़ी दाब ब्रितानी
छोड किला अब़ झांसी क़ा, रण महलो मे आईं। “लक्ष्मी” क़ी इस हिम्मत ने, अग्रेजी नीद उडाई
जिसक़ो अब़ला समझा था, हुईं रणचन्डी दीवानी। झांसी ब़न गई केद्र बिन्दु, अट्ठारह सौ सत्तावऩ मे
महिलाओ क़ी भर्ती क़ी, स्वयसेवक सेना प्रबन्धन मे। हमशक्ल ब़नाई सेना प्रमुख़़, “झलक़ारी बाई” सेनानी
सर्वप्रथ़म ओरछा, दतियां,अपनो ने ही ब़ैर क़िया। फ़िर ब्रितानी सेना नें, आक़र झांसी कों घेर लिया
अग्रेजी क़ब्जा होते ही, “मनु” सुमरी मात़ भवानी। लें “दामोदर” छोडी झांसी, सरपट सें वो निक़ल गयी
मिली क़ालपी, “तांत्या टोपें”, मुलाक़ात वो सफ़ल रही। क़िया ग्वालियर पर क़ब्जा, आंखो की भृकुटी तानीं…
नही दूगी मै अपनी झांसी, समझ़ौता नही क़रूंगी मै। नही रुखुगी नही झुकुगी, ज़ब तक नही मरूगी मै
मै भारत मां की ब़ेटी हूं, हूं हिंदू, हिदुस्तानी अट्ठारह जूऩ मनहूस दिव़स, अट्ठारह सौं अट्ठाव़न में।
“मणिकर्णिका” मौन हुईं, “क़ोटा सराय” रण आंग़न मे “शिवराज चौहान” नमऩ उनक़ो, जो ब़न गयी अमिट निशानीं। अंग्रेजो क़ो याद दिला दीं, ज़िसने उनक़ी नानी
मर्दांनी, हिदुस्तानी थी, वो झांसी क़ी रानी।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि अंग्रेजों को धूल चटाकर जिसे याद दिला दी नानी वह वीरांगना थी झांसी की रानी। 19 नवंबर 1828 में एक ऐसी वीरांगना ने वाराणसी में जन्म लिया जिसे भगवान ने अंग्रेजों द्वारा हो रहे अत्याचारों के खिलाफ लड़ने के लिए भेजा था। नई कोमल कली जब इस दुनिया में आई तो प्यार से मनु कहलाई और यौवन में लक्ष्मी बाई कहलाई। जिसके बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारबाजी आम लड़कियों से अलग शौक थे। बचपन से ही मनु अपने पिता के साथ दरबार में जाती थी जहां उन्हें लोगों का बहुत प्यार मिलता था और सब उन्हें प्यार से छबीली बोलते थे। आज का अजमेर रुचि रखने वाली मनु जैसे ही सयानी हुई तब उनका विवाह गंगाधर राव से हो गया।
विवाह हुआ एक पुत्र को जन्म दिया और भाग्य का खेल देखिए 4 माह बाद वह पुत्र भी मर गया। पुत्र के सदमे में राजा गंगाधर राव भी चल बसे और लक्ष्मी बाई ने एक दत्तक पुत्र दामोदर को गोद लिया। इसके बाद झांसी की रानी महल छोड़कर रणभूमि में अंग्रेजों से लड़ने आई और यह देखकर अंग्रेजों के पसीने छूट गए। राजा के जाने के बाद अंग्रेज से अपना समझ रहे थे वह रणचंडी का रूप धारण कर चुकी थी एक बार फिर से झांसी की रानी ने अपनी महिला सशक्त सेना को खड़ा किया और महिलाओं की भरती की।
झांसी की रानी से अंतिम समय में उनके अपनों ने ही चल किया जिसमें से ओरछा, दतिया और उसके बाद ब्रिटिश सेना शामिल थे। लेकिन इन सब हालातो में भी झांसी की रानी किसी भी शण अंग्रेजों के सामने नहीं झुकी यहां तक की मरते दम तक उन्होंने अपना सर झुकाने नहीं दिया ऐसी बनी देश की वीरांगना जो अमर थी अमर है और हमेशा लोगों के दिलों में अमर रहेगी रानी लक्ष्मीबाई।
हमेशा करते हैं दोस्तों की आपको हमारा आज का यह ले अवश्य झाँसी की रानी कविता पसंद आया होगा और आपको भी अपने जीवन में आगे बढ़ाने की प्रेरणा अवश्य मिली होगी। एक महिला को अपने जीवन में हमेशा मजबूत, वीर, बहादुर और निडर रहना चाहिए। अभी हम आपके लिए ऐसे ही लेख लेकर आते रहेंगे जिन्हें पढ़कर आपको आगे बढ़ाने में प्रेरणा मिले यदि आपको हमारे द्वारा लिखे गए लेख अच्छे लगते हैं तो आप हमेशा की तरह अपना प्यार और सपोर्ट बनाए रखें और शेयर करना ना भूले।