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गजानन माधव मुक्तिबोध ki Kavita: Gajanan Madhav Muktibodh Poems in Hindi

Posted on September 13, 2023September 15, 2023 by ANDREW

गजानन माधव मुक्तिबोध : दोस्तों आज हम आपको गजानन माधव मुक्तिबोध जी की कुछ बहुत ही प्रसिद्ध कविताएं अपने आर्टिकल के माध्यम से सुनने वाले हैं जो आपको अवश्य ही पसंद आएगी। बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं जिन्हें कविताएं पढ़ने का शौक होता है लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि उसे कविता का लेखक कौन है या उनकी जीवनी क्या है। फिर बिना समय को गवाई हम आपको गजानंद माधव मुक्तिबोध जी की जीवनी के साथ-साथ उनकी कविताएं भी सुनने वाले हैं। आपको कविताएं पढ़ने और लिखना अच्छा लगता है तो हमारे इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य बने।

आज हम आपको जिस लेखक की कविताओं के बारे में बताने वाले हैं सबसे पहले उसे शख्सियत के बारे में जान लेते हैं कि वह कौन थे। आनंद माधव जी का जन्म शिवपुरी में 13 नवंबर 1917 को हुआ था। अपने समय के बहुत ही प्रसिद्ध लेखक, कवि, निबंधकार एवं राजनीतिक आलोचक थे। इस मशहूर लेखक के पिता एक पुलिस इंस्पेक्टर थे जिसकी वजह से उनका समय-समय पर तबादला होता रहता था जिसके कारण गजानन जी की शिक्षा बहुत ही मुश्किलों के साथ पूरी हुई है लेकिन इन कड़ी चुनौतियों का सामना करने के बाद भी इस मशहूर लेखक ने लोगों के दिलों में एक अलग ही जगह बनाई। बहुत ही कम आयु में इस मशहूर लेखक ने दुनिया को अलविदा कहते हुए 11 सितंबर 1964 को भोपाल में अपनी अंतिम सांसे ली।

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Table of Contents

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  • गजानन माधव मुक्तिबोध की कविताएं
  • 1-गजानन माधव मुक्तिबोध : बहुत दिनों से
  • 2- मैं उनका ही होता
  • 3-गजानन माधव मुक्तिबोध : कल और आज
  • 4-विचार आते हैं 
  • 5-गजानन माधव मुक्तिबोध : बेचैन चील

गजानन माधव मुक्तिबोध की कविताएं

1-गजानन माधव मुक्तिबोध : बहुत दिनों से

गजानन माधव मुक्तिबोध

मैं बहुत दिनों से बहुत दिनों से
बहुत-बहुत सी बातें तुमसे चाह रहा था कहना
और कि साथ यों साथ-साथ
फिर बहना बहना बहना
मेघों की आवाज़ों से
कुहरे की भाषाओं से
रंगों के उद्भासों से ज्यों नभ का कोना-कोना
है बोल रहा धरती से
जी खोल रहा धरती से
त्यों चाह रहा कहना
उपमा संकेतों से
रूपक से, मौन प्रतीकों से, मैं बहुत दिनों से बहुत-बहुत-सी बातें
तुमसे चाह रहा था कहना!
जैसे मैदानों को आसमान,
कुहरे की मेघों की भाषा त्याग
बिचारा आसमान कुछ
रूप बदलकर रंग बदलकर कहे।

व्याख्या 

इस माध्यम से लेखक द्वारा यह बताया जा रहा है कि कई हमारे मन में बहुत कुछ चल रहा होता है और हम मन ही मन घुटते रहते हैं क्योंकि जिन लोगों से हम अपने दिल की बात करना चाहते हैं उन्हें किसी कारण बोल नहीं पा रहे होते हैं। कहां जा रहा है कि जब भी उसे इंसान के पास जाता है जिससे वह अपने दिल की बात करना चाहता है तो कोई ना कोई बहाना बीच में आ जाता है और वह अपने मन की बात बाहर नहीं ला पता है। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है के यदि आपके मन में कभी भी कोई बात होती है जिसके कारण आप अंदर ही अंदर घट रहे हैं या आपके मन में बोझ होता है तो बिना किसी बहाने से उसे इंसान के सामने उन भावनाओं को निकाल देना चाहिए जिनके सामने आप खुलकर बात कर पाते हैं।

2- मैं उनका ही होता

मैं उनका ही होता जिनसे
मैंने रूप भाव पाए हैं।
वे मेरे ही लिये बंधे हैं
जो मर्यादाएँ लाए हैं।

मेरे शब्द, भाव उनके हैं
मेरे पैर और पथ मेरा,
मेरा अंत और अथ मेरा,
ऐसे किंतु चाव उनके हैं।

मैं ऊँचा होता चलता हूँ
उनके ओछेपन से गिर-गिर,
उनके छिछलेपन से खुद-खुद,
मैं गहरा होता चलता हूँ।

व्याख्या

इस कविता के माध्यम से कवि द्वारा यह कहा जा रहा है कि जिनके प्रति हमारे मन में भावनाए होती हैं हम केवल उनके ही लिए बने होते हैं। जिन लोगों के लिए हम अपने मन में भावनाएं रखते हैं, हमारी पूरी जिंदगी उनके इर्द-गिर्द घूमती रहती है। लेकिन कुछ लोगों को यह बात पता होने के बाद भी वह हमें मर्यादाओं के बंधन में बांधकर रखते हैं बिना हमारी भावनाओं की परवाह किए। बताया जा रहा है कि मंजिल उसको पार करने का रास्ता उसकी भावनाएं केवल उसकी है लेकिन हमारे शब्द होने के बावजूद सामने वाला कई बार अपने भाव हम पर ठोक देता है। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि आप किसी के लिए केवल वही भावनाएं अपने मन में जागृत करें जो भावनाएं सामने वाला आपके लिए रखता है वरना दुनिया में गिरने वालों की कमी नहीं है।

3-गजानन माधव मुक्तिबोध : कल और आज

गजानन माधव मुक्तिबोध

अभी कल तक गालियाँ
देते थे तुम्हें
हताश खेतिहर,

अभी कल तक
धूल में नहाते थे
गौरैयों के झुंड,

अभी कल तक
पथराई हुई थी
धनहर खेतों की माटी,

अभी कल तक
दुबके पड़े थे मेंढक,
उदास बदतंग था आसमान !

और आज
ऊपर ही ऊपर तन गये हैं
तुम्हारे तंबू,

और आज
छमका रही है पावस रानी
बूंदा बूंदियों की अपनी पायल,

और आज
चालू हो गई है
झींगुरों की शहनाई अविराम,

और आज
जोर से कूक पड़े
नाचते थिरकते मोर,

और आज
आ गई वापस जान
दूब की झुलसी शिराओं के अंदर,

और आज
विदा हुआ चुपचाप ग्रीष्म
समेट कर अपने लाव-लश्कर।

व्याख्या

इस कविता के माध्यम से कवि द्वारा यह बताया जा रहा है कि लोगों लोगों के मन की भावनाओं को बदलने में ज्यादा समय नहीं लगता है। जो लोग कल हमारी हैसियत के हिसाब से हमें गालियां और भला बुरा कहते हैं आज वक्त बदल जाने पर वही लोग हमारे पैरों में गिरने को तैयार रहते हैं। इस कविता का उद्देश्य बहुत ही कम शब्दों में समझाते हुए हम सिर्फ इतना कहना चाहते हैं कि जब आप किसी भी कार्य को करने में असफल रहते हैं या आपका स्टेटस लोगों में बैठने लायक नहीं होता है, तो लोग आपको हर वक्त जलील करते हैं। लेकिन यदि आप अपना स्टेटस या अपने कार्यों को करने में सफल हो जाते हैं और कामयाबी आपके कदम चूमती है तो जो कल तक आपको पीठ पीछे बुरा कहते थे वही लोग आज आपकी पीठ पीछे आपकी तारीफ करते नहीं थकते। एक बहुत प्यारी एडवाइज देते हुए हम आपसे सिर्फ इतना कहना चाहते हैं कि कभी भी अपनी जिंदगी में अपना स्टेटस देखकर लोगों का चुनाव न करें बालकि अपके बुरे वक्त में जो आपके साथ खड़ा होता है वही सच्चा साथी और दोस्त कहलाता है।

4-विचार आते हैं 

विचार आते हैं
लिखते समय नहीं
बोझ ढोते वक़्त पीठ पर
सिर पर उठाते समय भार
परिश्रम करते समय
चांद उगता है व
पानी में झलमलाने लगता है
हृदय के पानी में

विचार आते हैं
लिखते समय नहीं

पत्थर ढोते वक़्त
पीठ पर उठाते वक़्त बोझ
साँप मारते समय पिछवाड़े
बच्चों की नेकर फचीटते वक़्त

पत्थर पहाड़ बन जाते हैं
नक्शे बनते हैं भौगोलिक
पीठ कच्छप बन जाती है
समय पृथ्वी बन जाता है।

व्याख्या

इस कविता के माध्यम से लेखक गजानन मुक्तिबोध जी द्वारा बताया जा रहा है कि लोगों के मन में विचार लिखते समय नहीं आते और ना ही काम के वक्त आते हैं, क्योंकि उनके कंधों पर इस तरह जिम्मेदारियां का बोझ होता है कि उन लोगों के पास कुछ सोचने का समय ही नहीं होता है। दिन रात मेहनत कर बिना वक्त गवाये कठिन परिश्रम करते हैं गूगल वही लोग अपने घर की जिम्मेदारियां को भी पूरा करते हैं और भविष्य में उसे मुकाम पर पहुंचते हैं जहां पहुंचने का सपना बहुत कम लोगों का होता है। सपना केवल सपने देखने से पूरे नहीं होते बल्कि जो लोग खुली आंखों से सपने देखते हैं और उन सपनों को पूरा करने में अपनी मेहनत में कोई कमी नहीं छोड़ते केवल वही लोग अपने सपनों की उड़ान को पंख देते हैं। कहने का उद्देश्य केवल इतना है कि केवल सोच विचार करने आप कभी भी उसे मुकाम तक नहीं पहुंच सकते जहां आप पहुंचाना चाहते हैं।

5-गजानन माधव मुक्तिबोध : बेचैन चील

गजानन माधव मुक्तिबोध

बेचैन चील
उस जैसा मैं पर्यटनशील
प्यासा-प्यासा,
देखता रहूँगा एक दमकती हुई झील
या पानी का कोरा झाँसा
जिसकी सफ़ेद चिलचिलाहटों में है अजीब
इनकार एक सूना।

व्याख्या

इस कविता के माध्यम से कवि द्वारा यह बताया जा रहा है कि जिस प्रकार एक चील इधर-उधर घूम कर अपनी भूख और प्यास मिटाने के लिए बेचैन रहती है इस प्रकार कई बार लोग अपनी मंजिल को ढूंढने के लिए एक प्यास की तरह साहिल की तलाश करते हैं। केवल चमकती आंखों से सपने तक ही  हमारी दुनिया सीमित नहीं रहनी चाहिए बल्कि अपनी मंजिल को सफलतापूर्वक अपने के लिए एक अजीब सी भावना और जोश होना चाहिए। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए किसी भी कठिन परीक्षा से अगर गुजरना पड़ जाए तो बिना कल की परवाह किए उस परीक्षा में दौड़ जाओ।

हम उम्मीद करते हैं दोस्तों की आपको चर्चित लेखक गजानन माधव मुक्तिबोध जी की बायोग्राफी और कविताएं अवश्य ही पसंद आई होगी। इन कविताओं को पढ़कर अवश्य ही आप में भी कुछ कर गुजर जाने की भावना अंदर ही अंदर जागृत हुई होगी। आगे भी हम आपके लिए बहुत सारे आर्टिकल्स इसी तरह प्यार से लिखते रहेंगे और आप इसी तरह अपना प्यार और सपोर्ट हमारे आर्टिकल्स को देते रहे।

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