: हेलो दोस्तों आज हम आपके लिए केदारनाथ अग्रवाल जी की कुछ चुनिंदा कविताएं लेकर आए हैं आप मुझसे बहुत कम लोग जानते होंगे कि केदारनाथ अग्रवाल जी अपनी कविताओं में ज्यादातर प्रेम भाव की व्याख्या करते थे। अपनी कविताओं को लिखते समय वह प्रकृति से जुड़ी हर उस सौंदर्यता को अपने शब्दों में पिरोकर लोगों के सामने पेश करते थे। अग्रवाल जी अपनी कविताओं में हमेशा गांव की मिट्टी, किसान, हरे भरे खेत, बहता हुआ पानी, झरने आदि का बखान करते थे। बहुत सारे लोग आज भी ऐसे हैं कि अग्रवाल जी की कविताओं को इतना पसंद करते हैं कि उनकी कविताओं को पढ़कर खो जाते हैं। इस मशहूर चर्चित लेखक का जन्म 7 जुलाई 1934 को बनारस के चकिया में हुआ था। आपको भी केदारनाथ जी की कविताएं अच्छी लगती हैं या आप भी उनकी कविताओं को पढ़ना चाहते हैं तो हमारे इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पड़े।
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1-केदारनाथ अग्रवाल : हम न रहेंगे
हम न रहेंगे
तब भी तो यह खेत रहेंगे
इन खेतों पर घन घहराते
शेष रहेंगे जीवन देते
प्यास बुझाते
माटी को मदमस्त बनाते
श्याम बदरिया के
लहराते केश रहेंगे।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि यदि हम जीवन में रहे या ना रहे लेकिन भगवान द्वारा बनाया गया प्राकृतिक सौंदर्य हमेशा रहेगा। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि बीते समय के साथ व्यक्ति बूढ़ा होकर अपनी मृत्यु के नजदीक पहुंच जाता है भगवान द्वारा बनाया गया प्राकृतिक सौंदर्य हमेशा खूबसूरत रहता है चाहे वह बादलों का पारस ना हो या खेतों में हरी घास का लेह लहना हो।
2-इकला चांद
इकला चांद
असंख्य तारे
नील गगन के
खुले किवाड़े
कोई हम को
कहीं पुकारे
हम आएंगे
बाँह पसारे।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि रात्रि के समय जब आसमान में अकेला चांद अनगिनत तारों के साथ नील गगन में हमें अपनी और आकर्षित करता है तो बस मन करता है कि जैसे कोई बारे पसारे हमें अपनी और पुकार रहा है। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि भगवान ने किस तरह प्राकृतिक सौंदर्य को बनाया है और हर उसे प्रकृति में भगवान ने बहुत कुछ ऐसा दिया है जो लोगों को कुछ ना कुछ सीखना है और अपनी और आकर्षित करता है।
3-केदारनाथ अग्रवाल : चंपई आकाश
चम्पई आकाश तुम हो
हम जिसे पाते नहीं
बस देखते हैं
रेत में आधे गड़े
आलोक में आधे खड़े।
असीम सौन्दर्य की एक लहर
नदी से नहीं- समुद्र से नहीं
देखते ही देखते
उमड़ी तुम्हारे शरीर से
छाप कर छा गई
फैल गई मुझ पर।
व्याख्या
कविता के माध्यम से लेखक द्वारा चांद की खूबसूरती की व्याख्या करते हुए कहा जा रहा है कि आकाश में आसमान जब चमकता है तब हम उसे छूकर देख तो नहीं सकते लेकिन देखते रहते हैं। इसी तरह नदिया का बहता पानी की तरह हम उसके साथ वह तो नहीं सकते लेकिन वह हमारे शरीर पर एक अलग ही छाप छोड़कर जाता है।
4-केदारनाथ अग्रवाल : राजनीति
न आग है, न पानी
देश की राजनीति
बिना आग पानी के खिचड़ी पकाती है
जनता हवा खाती है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि देश की राजनीति बिना आग और पानी के देश को लूटने के लिए खिचड़ी पकती है। देश की जनता की देखो जिसे वोट देकर मैं अपने देश को विकास की ओर बढ़ने के लिए जीत की और धकेलती है वही जानता उसे नेता को जीतने के बाद केवल हवा खाती है।
5-धूप धरा पर उतरी
धूप धरा पर उतरी,
जैसे शिव के जटा जूट पर,
नभ से गंगा उतरी
धरती भी कोलाहल करती,
तुम से ऊपर उभरी।
धूप धरा पर बिखरी।
बरसी रवि की गगरी,
जैसे ब्रज की बीच गली में,
बरसी गोरस गगरी।
फूल-कटोरों-सी मुसकाती,
रूप भरी है नगरी।
धूप धरा पर निखरी।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक केदारनाथ जी द्वारा कहा जा रहा है कि जिस तरह सूरज की किरणें धरती पर पढ़ती हैं मानो ऐसा लगता है जैसे नभ से धरती पर धरा बिखेरती हुई गंगा उतरती है। कवि द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि इस रूप भारी नगरी में पेड़ पौधों के फूलों में खुशबू के साथ मुस्कान बिखेरती हुई थी शाम को ढल जाती है।
हम उम्मीद करते हैं दोस्तों की आपको हमारा आज का आर्टिकल और से पसंद आया होगा। हमारे द्वारा लिखे गए आर्टिकल से आपको केदारनाथ अग्रवाल जी किस तरह से अपनी कविताओं में प्राकृतिक सौंदर्य को दर्शाते थे, उसका ज्ञान अवश्य ही हो गया होगा। आगे भी हम आपके लिए इसी तरह के आर्टिकल्स लेकर आते रहेंगे। आप हमेशा की तरह अपना प्यार और सपोर्ट बनाए रखें।