अटल बिहारी वाजपेई की कविताएँ: अटल बिहारी वाजपेई जी केवल एक राजनीतिक नेता ही नहीं बल्कि एक उच्च दर्जे के कवि भी रह चुके हैं। यह देश के दसवें प्रधानमंत्री बने इसके बाद इन्होंने तीन बार प्रधानमंत्री की गद्दी का भार संभाला। अटल बिहारी वाजपेई का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था। अटल जी केवल एक राजनीतिक नेता या कवि ही नहीं बल्कि पत्रकार भी थे। चलिए दोस्तों आज हम आपको इस महान पत्रकार और राजनीतिक नेता के कुछ ऐसी कविताओं से रूबरू कराने वाले हैं जिन्हें पढ़ कर आपको अवश्य ही कुछ ना कुछ नया सीखने को मिलेगा। आपको भी अटल जी की कविताएं पढ़नी है तो हमारे इस लेख में अंत तक बने रहें।
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1-अटल बिहारी वाजपेई की कविताएँ: जीवन बीत चला
कल कल करते आज
हाथ से निकले सारे
भूत भविष्यत् की चिंता में
वर्तमान की बाज़ी हारे।
पहरा कोई काम न आया
रसघट रीत चला जीवन बीत चला।
हानि-लाभ के पलड़ों में
तुलता जीवन व्यापार हो गया।
मोल लगा बिकने वाले का
बिना बिका बेकार हो गया।
मुझे हाट में छोड़ अकेला
एक-एक कर मीत चला
जीवन बीत चला।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि कुछ लोग आज का काम कल पर डालते हैं और यह कहते-कहते वक्त बिता चला जाता है। लोग भविष्य के बारे में सोच सोच कर अपना प्रेजेंट खराब कर रहे हैं क्योंकि वे केवल अपने भविष्य के बारे में सोचने में ही सारा वक्त जाया कर देते हैं। यदि आपको अपना भविष्य सुनहरे अक्षरों में लिखना है तो आज से ही मेहनत शुरू करनी होगी, ना की अपने कार्यों में टालमटोल करनी चाहिए।
यदि आप हार जीत और लाभ हानि के चक्कर में फंसे रहोगे तो कभी भी आगे नहीं बढ़ पाओगे। यदि आपके जीवन में कामयाब होना है तो जीतने के लिए आपको अवश्य ही हारना पड़ेगा। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि यदि जीवन में सफलता प्राप्त करनी है तो वक्त को जाया किए बिना आज का काम चल पर नहीं डालना चाहिए, बल्कि पूरी ईमानदारी से और भी ज्यादा मेहनत करनी चाहिए और अपने सपनों की उड़ान को भर लेना चाहिए।
2- दूर कही कोई रोता
दूर कहीं कोई रोता है
तन पर पैहरा भटक रहा मन
साथ है केवल सूनापन।
बिछुड़ गया क्या स्वजन किसी का
क्रंदन सदा करूण होता है।
जन्म दिवस पर हम इठलाते
क्यों ना मरण त्यौहार मनाते।
अन्तिम यात्रा के अवसर पर,
आँसू का अशकुन होता है।
अन्तर रोयें आँख ना रोयें
धुल जायेंगे स्वपन संजाये।
छलना भरे विश्व में केवल
सपना ही सच होता है।
इस जीवन से मृत्यु भली है
आतंकित जब गली गली है।
मैं भी रोता आसपास जब,
कोई कहीं नहीं होता है।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि लोग अपनी जिंदगी में इतने अकेले होते हैं कि मन ही मन में सुना पन भरा होता है और दिल रोता है। लोग आज की दुनिया में ऐसे हैं जो केवल जिंदगी अकेले ही जी रहे हैं ना किसी का साथ है और ना किसी का सहारा। बहुत मुश्किल है जिंदगी का सफर अकेले तय करना लेकिन कई बार यह अकेलापन हमें और भी ज्यादा मजबूत और बहादुर बनता है जब हम अकेले ही सारी चुनौतियों का सामना करते हैं और उन पर सफलता भी पाते हैं तो।
इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि जब इंसान जीवित होता है और उसे किसी के सहारे की जरूरत होती है तो कोई उसके पास नहीं होता लेकिन मरने के बाद हजारों कंधे उनसे सहारा देने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि कभी भी किसी से उम्मीद नहीं लगानी चाहिए यदि आपके जीवन में आपका साथ देने वाला कोई भी नहीं है तो आपको अकेले ही अपनी मंजिल की और आगे बढ़ जाना चाहिए
3-अटल बिहारी वाजपेई की कविताएँ: कदम मिलाकर चलना होगा
बाधायें आती हैं आयें
घिरें प्रलय की घोर घटायें,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालायें,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
उजियारे में,अंधकार में,
कल कहार में,बीच धार में,
घोर घृणा में,पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में,दीघर हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढ़लना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि चाहे पैरों के नीचे कितने भी गरम अंगारे, कितने भी आंधी तूफान, सर पर कितनी ही अंगारों की बारिश और चाहे कितने भी बंधाए क्यों न आ जाए लेकिन हमें हमेशा अपनों के साथ कदम मिलाकर चलना चाहिए। अपनों की पहचान अपनों की पहचान विधाओं में ही होती है जहां एक और आपके सामने अंधेरा है दूर-दूर तक रोशनी की किरण नहीं यदि कोई आपका साथ देने को तैयार है ।
कम से कदम मिलाकर चलने को तैयार है तो इसका मतलब सच में आपसे बहुत प्रेम करता है लेकिन कुछ लोग विपदा के कारण दूसरों का साथ छोड़ जाते हैं इस अवस्था में आप समझ सकते हैं कि वह केवल आपके साथ अपने स्वार्थ के कारण जुड़ा था। बहुत सारे लोग आज के समय में ऐसे होते हैं जो अपनो के खातिर हर जिम्मेदारी को शिद्दत से पूरा करते हैं लेकिन जब उन्हें अपनों की जरूरत होती है तो कोई भी उनके साथ नहीं देता। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि आज के समय में यदि कोई हमारे लिए 10% भी अच्छा करता है तो हमें भी उसके साथ उसके कठिन वक्त में कम से कदम मिलाकर चलना चाहिए ना कि उसका साथ छोड़ना चाहिए।
4- झुकी ना अलके
झुकी न अलकें
झपी न पलकें
सुधियों की बारात खो गई
रोते रोते रात सो गई
दर्द पुराना
मीत न जाना
बातों ही में प्रात हो गई
रोते रोते रात सो गई
घुमड़ी बदली
बूंद न निकली
बिछुड़न ऐसी व्यथा बो गयी।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि कुछ लोग अपने जीवन में इतने दर्द झेल चुके होते हैं कि उनकी पलकें झपती नहीं और रोते रोते सदियां गुजर जाती हैं। कई बार हमारे दिल में कुछ दर्द या तकलीफ ऐसे होते हैं जो समय के साथ-साथ बहुत पुराने होते हैं और हम भूल नहीं पाते ऐसे वक्त में हमें कोशिश करनी चाहिए उसे दर्द से बाहर निकालने की क्योंकि दर्द जितना पुराना हो इतनी तकलीफ देता है।
यदि आप किसी से प्रेम करते हैं तो यह भी जरूरी है कि सामने वाला व्यक्ति भी आपसे प्रेम करें क्योंकि किसी एक का दूसरे के प्रति गलत व्यवहार उसकी अंधेरी खाई में धकेल सकता है। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि यदि आपके जीवन में भी कोई ऐसा इंसान है जिससे आप बहुत ज्यादा मान सम्मान और प्रेम देते हैं तो इस बात का भी ध्यान रखें कि वह भी आपके लिए बिल्कुल ऐसी ही सोच रखता हो।
5-अटल बिहारी वाजपेई की कविताएँ: आओ फिर से दिया जलाएं
आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ
हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि जिस तरह अंधकार के बाद एक रोशनी की सुबह हमारा इंतजार करती हैं वैसे ही हमें अपने जीवन को भी जीना चाहिए। यदि आपके जीवन में आज अंधेरा है तो कल उजाला भी होगा और अगर उजाले की कोई उम्मीद नहीं है तो आपको कोशिश करनी चाहिए कि दोबारा उठ खड़े हो और दिया जलाने की कोशिश करें। एक छोटे से दिए की रोशनी से पूरे कमरे में रोशनी की जा सकती है तो सोचिए आपकी एक कोशिश से आप कहां से कहां पहुंच सकते हैं। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि जीवन एक ऐसी चीज है जहां आपको हर स्थिति देखने को मिलती है जैसे की सुख-दुख, हर जीत और प्रेम और घृणा। हर बात में नेगेटिव नहीं सोचना चाहिए कुछ चीजों को पॉजिटिव भी सोचना चाहिए।
हम उम्मीद करते हैं दोस्तों की आपको हमारे महान पत्रकार राजनीतिक नेता अटल बिहारी वाजपेई की कविताएँ अवश्य ही पसंद आई होगी और आपके जीवन में आगे बढ़ाने की प्रेरणा भी इन कविताओं से अवश्य मिली होगी। आगे भी हम आपके लिए इसी तरह के लेख लिखते रहेंगे और हम कामना करते हैं कि आप और भी ज्यादा जीवन में आगे बढ़े। आपको हमारे आर्टिकल्स अच्छे लगते हैं तो आप इन्हें आगे भी शेयर कर सकते हैं और हमेशा की तरह अपना प्यार और सपोर्ट बनाए रखें।