अज्ञेय : हेलो दोस्तों आज हम आपको एक बहुत ही चर्चित लेखक, कथाकार, संपादक, निबंधकार और एक बहुत ही सफल अध्यापक के बारे में अपने आर्टिकल के माध्यम से जानकारी प्रदान करने वाले हैं। इस मशहूर लेखक का नाम है सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय। इस मशहूर लेखक का जन्म उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में 7 मार्च 1911 को हुआ था। बचपन से ही उनकी रुचि लेखक बनने के और थी। इस महान हस्ती ने क्रांतिकारी आंदोलन में जुड़कर कई बार अपने दिन जेल में भी गुजारे है। तो चलिए फिर आज हम आपको इस मशहूर लेखक द्वारा लिखी गई कविताओं के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। यदि आपको भी कविताएं पढ़ने का शौक है तो हमारे इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पड़े।
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सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय जी की प्रसिद्ध कविताएं
तो दोस्तों बिना वक्त गवाएं हम आपको सच्चिदानंद जी की कुछ प्रसिद्ध कविताएं नीचे बताने वाले हैं जो कि इस प्रकार है कि –
1.अज्ञेय : जीवन
चाबुक खाए
भागा जाता
सागर-तीरे
मुँह लटकाए
मानो धरे लकीर
जमे खारे झागों की—
रिरियाता कुत्ता यह
पूँछ लड़खड़ाती टांगों के बीच दबाए।
कटा हुआ
जाने-पहचाने सब कुछ से
इस सूखी तपती रेती के विस्तार से,
और अजाने-अनपहचाने सब से
दुर्गम, निर्मम, अन्तहीन
उस ठण्डे पारावार से।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि कुछ लोग जिंदगी में इतने बेबस होते हैं कि वह दूसरों की मार भी कहते हैं और जिंदगी से कहीं दूर भागे भी चले जाते हैं। ऐसे बेबस लोग सागर किनारे मुंह लटका कर बैठ जाते हैं और सिर्फ अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों को बर्दाश्त करते हैं।इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि कभी भी अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए अगर कोई आपके साथ गलत कर रहा है तो उसका मुंह तोड़ जवाब देना चाहिए। आप एक बार उसे अत्याचार को अपने ऊपर होने देते हैं तो सामने वाले व्यक्ति को आपको और ज्यादा तकलीफ देने का मौका मिल जाता है। हमेशा सच के साथ रहे और अपने जीवन में सफल होने के रास्ते को अहमियत दें।
2. समय क्षण-भर थमा
समय क्षण-भर थमा सा:
फिर तोल डैने
उड़ गया पंछी क्षितिज की ओर:
मद्धिम लालिमा ढरकी अलक्षित।
तिरोहित हो चली ही थी कि सहसा
फूट तारे ने कहा: रे समय,
तू क्या थक गया?
रात का संगीत फिर
तिरने लगा आकाश में।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि लोग समझते हैं कि वक्त पल-पल के लिए थमता है लेकिन यह लोगों की गलतफहमी है। कभी किसी के लिए नहीं थम था बल्कि वक्त हाथों से रेत की तरह फिसलता हैं। यदि आपको अपने जीवन में आगे बढ़ाना है तो आपको बिना रुके और बिना थके समय से चार गुना तेज दौड़ना होगा। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि पल भर में कब कैसे वक्त बदल जाए किसी को नहीं पता इसलिए खुद को ऐसा बनाएं कि आप वक्त बदलने की ताकत रखे।
3.अज्ञेय : ओ एक ही कली की
ओ एक ही कली की
मेरे साथ प्रारब्ध-सी लिपटी हुई
दूसरी, चम्पई पंखुड़ी!
हमारे खिलते-न-खिलते सुगन्ध तो
हमारे बीच में से होती
उड़ जायेगी।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि जिंदगी में सफल होने के लिए किसी का साथ होना बेहद जरूरी है क्योंकि कई बार जब आप ठोकर खाकर गिरते हैं तो आपको संभालने वाला भी कोई होना चाहिए।इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि आपकी जिंदगी में कोई एक व्यक्ति ऐसा होना चाहिए जो आपके अच्छे वक्त से ज्यादा आपके बुरे वक्त में साथ देता हो।
4. गति मनुष्य की
कहा न झीलों से न सागर से,
नदी-नालों, पर्वत-कछारों से,
न वसन्ती फूलों से, न पावस की फुहारों से
भरेगी यह—
यह जो न ह्रदय है, न मन,
न आत्मा, न संवेदन,
न ही मूल स्तर की जिजीविषा—
पर ये सब हैं जिस के मुँह
ऐसी पंचमुखी गागर
मेरे समूचे अस्तित्व की—
जड़ी हुई मेरी आँखों के तारों से
पड़ी हुई मेरे ही पथ में जाने को
जहाँ-तहाँ, जहाँ-तहाँ।
प्यासी है, प्यासी है गागर यह
मानव के प्यार की
जिस का न पाना पर्याप्त है,
न देना यथेष्ट है,
पर जिस की दर्द की अतर्कित पहचान
पाना है, देना है, समाना है…
ओ मेरे क्रूर देवता, पुरुष,
ओ नर, अकेले, समूहगत,
ओ न-कुछ, विराट् में रूपायमान!
मुझे दे वही पहचान
उसी अन्तहीन खड्गधार का सही सन्धान मुझे
जिस से परिणय ही
हो सकती है परिणति उस पात्र की।
मेरे हर मुख में,
हर दर्द में, हर यत्न, हर हार में
हर साहस, हर आघात के हर प्रतिकार में
धड़के नारायण! तेरी वेदना
जो गति है मनुष्य मात्र की।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि मनुष्य की गति सागर की झीलों के समान और फूलों की खुशबू की तरह बिना रुके निरंतर आगे बढ़ती रहनी चाहिए। यदि क्षण भर के लिए भी कोई अपने मंजिल से भटक गया तो बहुत मुश्किल होता है मंजिल के रास्ते की और दोबारा चलना। इसलिए कभी भी अपने हृदय और मन को रास्ते से कभी भी भड़कने देना नहीं चाहिए। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि जैसे नदिया की लहरें कभी रुकती नहीं और फूलों की सुगंध कभी कम नहीं होती उसी तरह आपको भी अपनी जिंदगी को वैसे ही बनना चाहिए। हमेशा आगे बढ़ाने के लिए हृदय में उमंग और जोश की लालसा होने आवश्यक है क्योंकि जब आपके मन में आगे बढ़ाने की चाह ही नहीं होगी तो आप अपने अधूरे मन से कितने भी मेहनत कर ले आप कभी भी सफल नहीं हो सकते।
5.अज्ञेय : गुल-लाल
लालः के इस
भरे हुए दिल-से पके लाल फूल को देखो
जो भोर के साथ विकसेगा
फिर साँझ के संग सकुचाएगा
और (अगले दिन) फिर एक बार खिलेगा
फिर साँझ को मुंद जाएगा।
और फिर एक बार उमंगेगा
तब कुम्हलाता हुआ काला पड़ जायेगा।
पर मैं वह भरा हुआ दिल
क्या मुझे फिर कभी खिलना है?
जिस में (यदि) हँसना है
वह भोर ही क्या फिर आयेगा?
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि जिस तरह गुलाब को पता है कि खुशी काली बनाकर एक दिन फूल बनकर महकना है और लोगों ऊपर अपनी खुशबू से मुस्कान लानी है और उसके बाद उसे शाम तक मुरझा कर टूट जाना है। यह सब पता होने के बाद भी फूल हमेशा मिलते भी हैं और मुरझाते भी हैं। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि जिस प्रकार फूलों को पता होने के बाद भी वह निरंतर अपनी खुशबू और खूबसूरती से लोगों को प्रभावित करते हैं उसी तरह आपको की अपने जीवन में कुछ ऐसे ही कार्य करने चाहिए जो दूसरों को खुशी दी जाए और आपका जीवन सफल हो जाए। हमें भी फूलों की तरह ही निरंतर अपने कार्य को करते रहना चाहिए बिना कल की चिंता किए।
6.तुम्हें नहीं तो किसे और में दू
तुम्हें नहीं तो किसे और
मैं दूँ
अपने को
(जो भी मैं हूँ)?
तुम जिस ने तोड़ा है
मेरे हर झूठे सपने को—
जिस ने बेपनाह
मुझे झंझोड़ा है
जाग-जाग कर
तकने को
आग-सी नंगी, निर्ममत्व
औ’ दुस्सह
सच्चाई को—
सदा आँच में तपने को—
तुम, ओ एक, निःसंग, अकेले,
मानव,
तुम को—मेरे भाई को।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि कई बार हमारी जिंदगी में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बचपन से ही हमारे छोटे सपनों को तोड़ने में बहुत रुचि दिखाते हैं। एक तरह से वह लोग हमारे लिए बहुत अच्छा ही काम करते हैं क्योंकि झूठे सपने देखना और उनका पूरा करने का ख्वाब सजाना एक ऐसा भ्रम है जो कभी पूरा नहीं हो सकता। इस कविता का उद्देश्य उद्देश्य सिर्फ इतना ही है कि बंद आंखों से हर कोई सपना देखा है लेकिन जो लोग खुली आंखों से सपने देखते हैं एक दिन में अपने सपनों की मंजिल को अवश्य ही पाते हैं।
7.अज्ञेय : मन बहुत सोचता है
मन बहुत सोचता है कि उदास न हो
पर उदासी के बिना रहा कैसे जाए?
शहर के दूर के तनाव-दबाव कोई सह भी ले,
पर यह अपने ही रचे एकांत का दबाब सहा कैसे जाए।
नील आकाश, तैरते-से मेघ के टुकड़े,
खुली घासों में दौड़ती मेघ-छायाएँ,
पहाड़ी नदीः पारदर्श पानी,
धूप-धुले तल के रंगारग पत्थर,
सब देख बहुत गहरे कहीं जो उठे,
वह कहूँ भी तो सुनने को कोई पास न हो
इसी पर जो जी में उठे वह कहा कैसे जाए।
मन बहुत सोचता है कि उदास न हो
पर उदासी के बिना रहा कैसे जाए?
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बहुत प्यारी सीख देते हुए कहा जा रहा है कि परिस्थिति चाहे कोई भी हो लेकिन हमेशा अपने मन को खुश रखना चाहिए क्योंकि उदास मन से ना ही कोई कार्य ठीक होता है और हम उदासी के कारण अच्छे वक्त को भी कई बार हाथों से गवा देते हैं। वक्त चाहे कैसा भी हो अच्छा हो या बुरा हो हमेशा पूरे मन के साथ हर कार्य को खुशी-खुशी करना चाहिए चाहे वह अपना कार्य हो या किसी दूसरे का। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि जो लोग उदासी को अपना साथी बने हुए हैं उसका साथ छोड़कर एक बार अपने ही हृदय में खुशी की भावना भरकर किसी भी कार्य को करने में जुड़ जाएं हम विश्वास के साथ कह सकते हैं की यकीनन आप उसे कार्य में विजई प्राप्त करेंगे।
8- आत्म स्वीकार
किसी का सत्य था,
मैंने संदर्भ में जोड़ दिया। कोई मधुकोष काट लाया था,
मैंने निचोड़ लिया। किसी की उक्ति में गरिमा थी
मैंने उसे थोड़ा-सा संवार दिया, किसी की संवेदना में आग का-सा ताप था
मैंने दूर हटते-हटते उसे धिक्कार दिया। कोई हुनरमन्द था
मैंने देखा और कहा,यों। थका भारवाही पाया
घुड़का या कोंच दिया, क्यों। किसी की पौधा थी,
मैंने सींची और बढ़ने पर अपना ली। किसी की लगाई लता थी,
मैंने दो बल्ली गाड़ उसी पर छवा ली। किसी की कली थी
मैंने अनदेखे में बीन ली। किसी की बात थी
मैंने मुँह से छीन ली। यों मैं कवि हूँ,आधुनिक हूँ, नया हूँ
काव्य-तत्त्व की खोज में कहाँ नहीं गया हूँ ? चाहता हूँ आप मुझे
एक-एक शब्द पर सराहते हुए पढ़ें। पर प्रतिमा–अरे, वह तो
जैसी आप को रुचे आप स्वयं गढ़ें।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि आज के समय में लोग अपनी बातों से मुंह कर जाते हैं और स्वीकारते नहीं है बल्कि इंसान में आत्म स्वीकार का गुण होना आवश्यक है। इसी तरह कविता में भी बताया जा रहा है कि यदि कोई किसी बात को कहना चाहता था तो सामने वाला व्यक्ति उसकी बात को मुंह से छीन कर खुद पूरा कर देता है कोई पौधा लगता है तो दूसरा उसे चीज देता है बहुत सारी ऐसी चीज होती हैं कि शुरू कोई और करता है लेकिन खत्म कोई और करता है तो इस अवस्था में यदि आप ऐसा कुछ कर रहे हैं तो उन्हें स्वीकार करना भी चाहिए।
बहुत से लोग ऐसे होते हैं कि जब चीज़े अच्छी होती है तो स्वीकार कर लेते हैं और अगर चीजे खराब होती है तो अस्वीकार या मुंह कर जाते हैं ऐसा करना गलत है। किस कविता का उद्देश्य केवल इतना ही है कि यदि आप किसी के अधूरे काम को पूरा कर रहे हैं तो केवल खुद को ही उसका श्रेय नहीं देना चाहिए बल्कि जिस इंसान ने उसे कार्य को करने की शुरुआत की है उसे भी अपने साथ इंवॉल्व करना चाहिए। केवल अच्छे कार्यों में ही खुद को क्रेडिट नहीं देना चाहिए बल्कि कुछ कार्य गलत भी होते हैं तो सामने आकर स्वीकार करना चाहिए कि हमसे हुआ है।
9- देखिये न मेरी कारगुज़ारी
अब देखिये न मेरी कारगुज़ारी
कि मैं मँगनी के घोड़े पर सवारी पर ठाकुर साहब के लिए उन की रियाया से लगान
और सेठ साहब के लिए पंसार-हट्टे की हर दुकान से किराया वसूल कर लाया हूँ ।
थैली वाले को थैली, तोड़े वाले को तोड़ा
और घोड़े वाले को घोड़ा सब को सब का लौटा दिया
अब मेरे पास यह घमंड है। कि सारा समाज मेरा एहसानमन्द है ।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा कहा जा रहा है कि कुछ लोगों को अपनी करगुजारी पर बड़ा घमंड होता है। जिस तरह से इस कविता में भी दर्शाया गया है। यदि आप किसी की कोई चीज लौटा रहे हैं तो अच्छी बात है, लेकिन इस बात पर यह घमंड करना कि लोग मेरे एहसान मंद है कि मैने उन्हें उनकी चीज को वापस किया यह सोच गलत है। आप यह भी सोच सकते हैं कि मेरी वजह से किसी की मदद हुई और जो चीज आपने उनकी लौटाई है ,वह इंसान के लिए कितनी अहम थी बल्कि वह खुद आपका एहसान मानेगा उसके लिए आपको खुद पर घमंड नहीं बल्कि गर्व करने की जरूरत है। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि यदि आप किसी के काम आ रहे हैं तो यह आपके लिए गर्व की बात है ना कि घमंड और एहसान वाली बात है।
10- सत्य तो बहुत मिले
खोज़ में जब निकल ही आया
सत्य तो बहुत मिले। कुछ नये कुछ पुराने मिले
कुछ अपने कुछ वीराने मिले। कुछ दिखावे कुछ बहाने मिले
कुछ अकड़ू कुछ मुँह-चुराने मिले। कुछ घुटे-मँजे सफेदपोश मिले
कुछ ईमानदार ख़ानाबदोश मिले। कुछ ने लुभाया
कुछ ने डराया। कुछ ने परचाया-
कुछ ने भरमाया। सत्य तो बहुत मिले
खोज़ में जब निकल ही आया । कुछ पड़े मिले
कुछ खड़े मिले। कुछ झड़े मिले
कुछ सड़े मिले। कुछ निखरे कुछ बिखरे
कुछ धुँधले कुछ सुथरे। सब सत्य रहे
कहे अनकहे। खोज़ में जब निकल ही आया
सत्य तो बहुत मिले पर तुम
नभ के तुम कि गुहा-गह्वर के तुम। मोम के तुम, पत्थर के तुम तुम किसी देवता से नहीं निकले
तुम मेरे साथ मेरे ही आँसू में गले। मेरे ही रक्त पर पले
अनुभव के दाह पर क्षण-क्षण उकसती। मेरी अशमित चिता पर
तुम मेरे ही साथ जले । तुम- तुम्हें तो भस्म हो
मैंने फिर अपनी भभूत में पाया। अंग रमाया
तभी तो पाया। खोज़ में जब निकल ही आया,
सत्य तो बहुत मिले।
व्याख्या
इस कविता के माध्यम से लेखक द्वारा बताया जा रहा है कि जब आप जिंदगी के सफर में आगे बढ़ते हैं तो आपको बहुत सारे ऐसे लोग मिलते हैं और बहुत सारे ऐसे रास्ते मिलते हैं जहां आपको सत्य की पहचान भी होती है और सत्य पता भी चलते हैं। इस कविता का उद्देश्य केवल इतना है कि जिंदगी की हकीकत केवल ऐश ओ इशरत में नहीं कठिन परिस्थितियों में पता चलती है कि कौन आपके साथ असल में है और कौन आपके साथ दिखावे के लिए है। कुछ लोग आपका साथ केवल इसलिए देते हैं कि आप उनके अच्छे दोस्त हैं और कुछ लोग आपका साथ केवल आपके स्टेटस की वजह से देते हैं।
मंजिल के रास्ते में कुछ नए, कुछ पुराने, कुछ अच्छे, कुछ बुरे, कुछ मॉम जैसे दिल के तो कुछ पत्थर दिल लोग भी मिलेंगे। आपको उसे कठिन रास्ते में हर तरह के लोग मिलेंगे और उन लोगों से आपको अवश्य ही कुछ ना कुछ सीखने को मिलेगा और कुछ लोगों से आगे बढ़ाने की प्रेरणा भी मिलेगी। इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि घर में रहकर सत्य का पता नहीं चलता जब इंसान जिंदगी में ठोके खाता है तब सही और गलत लोगों का ज्ञान भी होता है और आगे बढ़ाने की प्रेरणा भी मिलती है। यही एक वाहिद रास्ता होता है जहां आपको अपने और पराए का फर्क पता चलता है। इस रास्ते में कुछ अपने बेगाने भी मिलेंगे और कुछ बेगाने आपके अपने भी हो जाएंगे।
हम आशा करते हैं दोस्तों की आपको इन लेखक की कविताएं अवश्य ही पसंद आई होंगे और आपके जीवन में आगे बढ़ाने के लिए बहुत सारी मोटिवेशन भी मिली होगी। हम आपके प्यार और सपोर्ट को ऐसे ही बनाए रखने के लिए आगे भी बहुत सारे लेख आपकी रुचि के अनुसार लेकर आते रहेंगे। आप ऐसे ही हमारे आर्टिकल्स को अपना प्यार देते रहे।